अन्तरराष्ट्रीय कृष्ण चेतना समाज ’इस्कॉन’ ने भारत के वृन्दावन नगर में दुनिया का सबसे ऊँचा मन्दिर बनाने की घोषणा की है।
’इस्कॉन’ की आलोचना भारत में भी होती रही है, लेकिन ’इस्कॉन’ यह मन्दिर बनाकर यह जतलाने की कोशिश कर रहा है कि वह भी उसी भारतीय धर्म-परम्परा का एक हिस्सा है, जिससे वास्तव में उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। लेकिन सवाल तो यह उठता है कि ’इस्कॉन’ यह कोशिश क्यों कर रहा है? क्या यह सिर्फ़ एक व्यवसाय है या पश्चिमी देशों में ’इस्कॉन’ जैसा संगठन बनाने वाली ताक़तें भारतीय समाज पर भी अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहती हैं?
’चन्द्रोदय मन्दिर’ नामक इस नए मन्दिर का निर्माण यमुना नदी के किनारे किया जाएगा। यह मन्दिर क़रीब 210 मीटर ऊँचा होगा और न सिर्फ़ हिन्दू मन्दिरों में, बल्कि किसी भी दूसरे धर्म के पूजास्थलों में भी सबसे ऊँचा होगा। विशालता की बात करें तो भारत के राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता और धार्मिक नेता हमेशा विशालता पर मोहित होते रहे हैं। ज़रा नरेन्द्र मोदी द्वारा हाल ही में रखी गई सरदार वल्लभ भाई पटेल स्मारक की नींव को याद करें। दक्षिणी गुजरात में नर्मदा नदी पर सरदार पटेल का विशाल स्मारक बनाया जाएगा। यह स्मारक नए चन्द्रोदय मन्दिर से कुछ ही छोटा होगा। उसकी ऊँचाई 180 मीटर होगी।
लेकिन बात सिर्फ़ इनकी विशालता की ही नहीं है, इन दोनों परियोजनाओं में बड़ी मात्रा में धन भी लगेगा। रेडियो रूस के विशेषज्ञ बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा — ये दोनों परियोजनाएँ बेहद महँगी होंगी। हालाँकि इन दोनों परियोजनाओं में निजी तौर पर इकट्ठा किया गया पैसा लगाया जाएगा, लेकिन एक बात बार-बार मन को कुरेदती है कि जितना धन इन दोनों योजनाओं की पूर्त्ति में खर्च किया जाएगा, उसमें न जाने कितने शौचालय भारत में बनाए जा सकते थे। बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा :
’इस्कॉन’ का तात्कालिक उद्देश्य साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा है। आज जब हिन्दू धर्म के परम्परागत अनुयायियों द्वारा ’इस्कॉन’ को कोई मान्यता नहीं दी जाती है, पवित्र नगरी वृन्दावन में इस मन्दिर के निर्माण से आम हिन्दुओं की नज़र में ’इस्कॉन’ की प्रतिष्ठा काफ़ी बढ़ जाएगी। और फिर समय बीतने के साथ-साथ धीरे-धीरे कुछ दशकों के बाद परम्परागत हिन्दू अनुयायियों का रवैया भी ’इस्कॉन’ के प्रति पूरी तरह से बदल जाएगा। वैसे भी हिन्दू धर्म में सहिष्णुता सबसे ज़्यादा है और हिन्दू धर्म में अनेक सम्प्रदाय, अनेक शाखाएँ फैली हुई हैं।
लेकिन फिर भी यह याद किया जाना चाहिए कि बीसवीं शताब्दी के साठवें दशक में अपनी स्थापना के बाद से अपने पूरे इतिहास में ’इस्कॉन’ ने अभी तक क्या भूमिका निभाई है। हिन्दू धर्म की साँस्कृतिक परम्पराओं का इस्तेमाल करके सारी दुनिया में दान या चन्दे के रूप में धन-सम्पत्ति इकट्ठा करने की यह अब तक की एक सबसे सफल व्यावसायिक परियोजना रही है।
आज सिर्फ़ अकेले भारत में ही ’इस्कॉन’ के क़रीब साठ मन्दिर बने हुए हैं। ये सभी मन्दिर बेहद ख़ूबसूरत हैं और इनकी वास्तुकला भी अद्भुत्त है। चन्द्रोदय मन्दिर भी बेहद ख़ूबसूरत होगा। इसके अलावा चन्द्रोदय मन्दिर कमाई का साधन भी होगा। मन्दिर की सबसे ऊँची मंज़िल पर जाकर दर्शक वृन्दावन, कृष्ण जन्मभूमि मथुरा और आगरा को, आगरा के ताजमहल को भी देख सकेंगे। इतनी ऊँचाई पर जाकर यह अनुपम दृश्य देखने की होड़ लग जाएगी और लाखों तीर्थ-यात्रियों के साथ-साथ लाखों पर्यटक भी ’इस्कॉन’ के इस मन्दिर को देखने के लिए पहुँचेंगे। इससे ’इस्कॉन’ का खजाना भी भरेगा। बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा :
लेकिन यदि दीर्घकालीन सम्भावना के आधार पर देखा जाए तो ’इस्कॉन’ इस चन्द्रोदय मन्दिर का निर्माण करके सिर्फ़ व्यावसायिक लाभ ही नहीं उठाना चाहता है। भक्तवेदान्त स्वामी प्रभुपाद ने बीती सदी के सातवें दशक में ’अन्तरराष्ट्रीय कृष्ण चेतना समाज’ या ’इस्कॉन’ की स्थापना की थी और कई हज़ार अमरीकियों को हिन्दू धर्म की दीक्षा दी थी। यहाँ इस बात का उल्लेख भी किया जा सकता है कि हिन्दू धर्म की परम्परा के अनुसार सच्चा हिन्दू सिर्फ़ वही होता है जो हिन्दू परिवार में पैदा होता है यानी हिन्दू धर्म की दीक्षा लेकर कोई आदमी हिन्दू नहीं बन सकता है। लेकिन धीरे-धीरे ’अन्तरराष्ट्रीय कृष्ण चेतना समाज’ या ’इस्कॉन’सारी दुनिया में फैल गया और उसकी जड़ें विभिन्न देशों में दिखाई देने लगीं। इन देशों में ’अन्तरराष्ट्रीय कृष्ण चेतना समाज’ के अनुयायी ही गुरु और उपदेशक की भूमिका निभाने लगे।
’अन्तरराष्ट्रीय कृष्ण चेतना समाज’ या ’इस्कॉन’ की गतिविधियाँ इतने व्यापक रूप में फैल गई हैं कि आज भारत के अलावा शेष दुनिया के ज़्यादातर देशों में स्वामी प्रभुपाद को ही हिन्दू धर्म का मुख्य प्रतिनिधि माना जा रहा है और उनके उपदेशों को हिन्दू धर्म की परम्पराओं के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।
कभी-कभी तो इसके कुपरिणाम भी सामने आते हैं। जैसे सन् 2011-12 में रूस में हुआ था। तब रूस के तोमस्क नगर के अभियोजन विभाग ने स्वामी प्रभुपाद की एक पुस्तक ’भगवद् गीता क्या है? पर प्रतिबन्ध लगा दिया था और उसे उग्रवाद को बढ़ावा देने वाली क़िताब घोषित कर दिया था। बात तब स्वामी प्रभुपाद की क़िताब की ही हो रही थी, जिसमें भगवद् गीता का संस्कृत से अँग्रेज़ी में और अँग्रेज़ी से रूसी भाषा में ग़लत-सलत अनुवाद करके और गीता के श्लोकों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है। लेकिन तब भारत में और रूस में भी बहुत से लोगों ने यह मान लिया था कि मानो रूस में गीता पर ही प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है। जबकि रोक स्वामी प्रभुपाद की उस क़िताब ’भगवद् गीता क्या है?’ पर लगाई गई थी।
यह बात भी सच है कि ’इस्कॉन’ के ज़्यादातर कर्ता-धर्ता और गुरु व साधु उन्हीं विदेशी अनुयायियों में से चुने जाते हैं, जिनका हिन्दू परम्पराओं से सीधा कोई सम्बन्ध नहीं होता है, लेकिन जिन्हें ’इस्कॉन’ में अपना ही आदमी माना जाता है। ’इस्कॉन’ में शामिल होने का इन लोगों का उद्देश्य क्या होता है, इसका तो सिर्फ़ अनुमान ही लगाया जा सकता है।