पटना, 21 फरवरी (आईएएनएस)। बॉलीवुड में समानांतर सिनेमा के ‘आइकॉन’ रहे गोविंद निहलानी ने यहां मंगलवार को कहा कि आज समानांतर सिनेमा और व्यावसायिक सिनेमा के भेद मिट रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि किसी भी विषय के तह तक जाकर फिल्मों का निर्माण किया जाए।
गैर सरकारी संगठन ग्रामीण स्नेह फाउंडेशन (जीएसएफ) की ओर से आयोजित आठ दिवसीय बोधिसत्व फिल्म महोत्सव 2017 के छठे दिन मंगलवार को आयोजित एक परिचर्चा में गोविंद निहलानी ने कहा, “एक समय था, जब सिनेमा के दो अलग वर्ग हो गए थे। एक व्यावसायिक सिनेमा देखने वाले और दूसरे सामानांतर सिनेमा देखने वाले। हमारी फिल्मों में स्टार नहीं हुआ करते थे।”
‘आघात’, ‘तमस’ जैसी कई यादगार फिल्मों का निर्देशन करने वाले गोविंद निहलानी ने आगे कहा कि जैसे-जैसे समय गुजरता गया, अंतर मिटता गया। उन्होंने कहा कि दर्शकों ने उस समय भी उनकी फिल्में को पसंद किया।
जानेमाने फिल्म समीक्षक अजय ब्रम्हात्मज ने कहा कि समानांतर सिनेमा के लिए धन जुटाना आज भी थोड़ा मुश्किल है। उन्होंने तर्क देते हुए कहा, “भारतीय सिनेमा ‘पोपुलर कल्चर’ की शिकार है, यही वजह है कि अब फिल्म बनाने से ज्यादा उन्हें दर्शकों तक पहुंचाने की चुनौती है। भारत में मल्टीप्लेक्स जमींदार की तरह काम कर रहे हैं।”
इस मौके पर वरिष्ठ प्रशासनिक सेवा के अधिकारी त्रिपुरारी शरण ने अपने विचार रखते हुए कहा कि सिनेमा में न सिर्फ अनुभव की जरूरत है, बल्कि सार्थक फिल्मों का निर्माण भी जरूरी है।
उन्होंने 50-60 के दशक को भारतीय सिनेमा के लिए सबसे महत्वपूर्ण समय बताया, जब कई तरह की संस्थाएं थीं। उन्होंने कहा कि फिल्मों को समझने के लिए लोगों को अपनी सोच का दायरा भी बढ़ाना होगा।
इस परिचर्चा में फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम, समीक्षक धीरेंद्र कुमार तिवारी, ग्रामीण स्नेह फाउंडेशन की अध्यक्ष स्नेह राउत्रे और सचिव गंगा कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए।