नई दिल्ली, 25 जनवरी (आईएएनएस)। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बुधवार को यहां कहा कि बदलते दौर में प्रगतिशील और वृद्धिगत विकास में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की उन्नति से पैदा हुए तीव्र व्यवधानों को समायोजित करना होगा। नवाचार, और उससे भी अधिक समावेशी नवाचार को जीवनशैली बनाना होगा। उन्होंने कहा कि शिक्षा को प्रौद्योगिकी के साथ आगे बढ़ना होगा।
68वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन में मुखर्जी ने कहा, “मनुष्य और मशीन की दौड़ में, जीतने वाले को रोजगार पैदा करना होगा। प्रौद्योगिकी अपनाने की रफ्तार के लिए एक ऐसे कार्यबल की आवश्यकता होगी, जो सीखने और स्वयं को ढालने का इच्छुक हो। हमारी शिक्षा प्रणाली को, हमारे युवाओं को जीवनर्पयत सीखने के लिए नवाचार से जोड़ना होगा।”
राष्ट्रपति ने कहा, “हमारी अर्थव्यवस्था चुनौतीपूर्ण वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद, अच्छा प्रदर्शन करती रही है। 2016-17 के पूर्वाद्ध में, पिछले वर्ष की तरह, इसमें 7.2 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई और इसमें निरंतर उभार दिखाई दे रहा है। हम मजबूती से वित्तीय दृढ़ता के पथ पर अग्रसर हैं और हमारा मुद्रास्फीति का स्तर आरामदायक है। यद्यपि हमारे निर्यात में अभी तेजी आनी बाकी है, परंतु हमने विशाल विदेशी मुद्रा भंडार वाले एक स्थिर बाह्य क्षेत्र को कायम रखा है।”
उन्होंने कहा, “काले धन को बेकार करते हुए और भ्रष्टाचार से लड़ते हुए, विमुद्रीकरण से आर्थिक गतिविधि में, कुछ समय के लिए मंदी आ सकती है। लेन-देन के अधिक से अधिक नकदीरहित होने से अर्थव्यवस्था की पारदर्शिता बढ़ेगी।”
मुखर्जी ने कहा, “स्वतंत्र भारत में जन्मी, नागरिकों की तीन पीढ़ियां औपनिवेशिक इतिहास के बुरे अनुभवों को साथ लेकर नहीं चलती हैं। इन पीढ़ियों को स्वतंत्र राष्ट्र में शिक्षा प्राप्त करने, अवसरों को खोजने और एक स्वतंत्र राष्ट्र में सपने पूरे करने का लाभ मिलता रहा है। इससे उनके लिए कभी-कभी स्वतंत्रता को हल्के में लेना; असाधारण पुरुषों और महिलाओं द्वारा इस स्वतंत्रता के लिए चुकाए गए मूल्यों को भूल जाना; और स्वतंत्रता के पेड़ की निरंतर देखभाल और पोषण की आवश्यकता को विस्मृत कर देना आसान हो जाता है। लोकतंत्र ने हम सब को अधिकार प्रदान किए हैं। परंतु इन अधिकारों के साथ-साथ दायित्व भी आते हैं, जिन्हें निभाना पड़ता है।”
मुखर्जी ने इस संदर्भ में महात्मा गांधी का उद्धरण दिया, जिन्होंने कहा था, “आजादी के सर्वोच्च स्तर के साथ कठोर अनुशासन और विनम्रता आती है। अनुशासन और विनम्रता के साथ आने वाली आजादी को अस्वीकार नहीं किया जा सकता; अनियंत्रित स्वच्छंदता असभ्यता की निशानी है, जो अपने और दूसरों के लिए समान रूप से हानिकारक है।”
प्रणब ने कहा, “आज युवा आशा और आकांक्षाओं से भरपूर हैं। वे अपने जीवन के उन लक्ष्यों को लगन के साथ हासिल करते हैं, जिनके बारे में वे समझते हैं कि वे उनके लिए प्रसिद्धि, सफलता और प्रसन्नता लेकर आएंगे। वे प्रसन्नता को अपना अस्तित्वपरक उद्देश्य मानते हैं, जो स्वाभाविक भी है। वे रोजमर्रा की भावनाओं के उतार-चढ़ाव में, और अपने लिए निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति में प्रसन्नता खोजते हैं। वे रोजगार के साथ-साथ जीवन का प्रयोजन भी ढूंढ़ते हैं। अवसरों की कमी से उन्हें निराशा और दुख होता है, जिससे उनके व्यवहार में क्रोध, चिंता, तनाव और असामान्यता पैदा होती है। लाभकारी रोजगार, समुदाय के साथ सक्रिय जुड़ाव, माता-पिता के मार्गदर्शन और एक जिम्मेदार समाज की सहानुभूति के जरिए उनमें समाज अनुकूल आचरण पैदा करके इससे निपटा जा सकता है।”