नई दिल्ली, 2 जनवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को अपने फैसले में किसी प्रत्याशी या नागरिकों के धर्म, जाति, नस्ल या भाषा के आधार पर वोट मांगने को अवैध करार दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनाव धर्मनिरपेक्ष कार्य है और निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को भी धर्मनिरपेक्ष होकर काम करना चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी.एस.ठाकुर के नेतृत्व वाली सात न्यायमूर्तियों की संवैधानिक पीठ ने चुनावी कदाचारों से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान जन प्रतिनिधि अधिनियम की धारा 123(3) के आधार पर तीन के मुकाबले चार मतों से यह फैसला दिया।
असहमति जताने वालों में न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित रहे, जबकि प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति ठाकुर, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकूर, न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे और न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव के फैसले पर अंतिम फैसला तय हुआ।
अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सरकारी कामकाज में धर्म के घालमेल की इजाजत नहीं है, क्योंकि किसी व्यक्ति और परमात्मा के बीच संबंध व्यक्तिगत पसंद का मामला है।
फैसले से मत भिन्न रखने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति गोयल और न्यायमूर्ति ललित ने हालांकि धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय और भाषा के आधार पर लोगों को भड़का कर वोट मांगने को भ्रष्ट आचरण मानने पर सहमति तो जताई, लेकिन यह भी कहा कि चुनावी मैदान में खड़े लोगों को जनता के मुद्दों पर बोलने से रोकना लोकतंत्र को कमतर कर अमूर्त बना देना है।
शीर्ष अदालत के इस फैसले का देश के सभी राजनीतिक दलों और धार्मिक समूहों ने स्वागत किया है।
याचिकाओं में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता अभिराम सिंह की अर्जी भी शामिल थी। सन् 1990 में महाराष्ट्र विधानसभा के लिए अभिराम के चुनाव को बंबई उच्च न्यायालय ने इस आधार पर रद्द कर दिया था कि उन्होंने हिंदू धर्म के नाम पर वोट देने की मतदाताओं से अपील की थी।
फैसले का स्वागत करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) नेता डी. राजा ने कहा कि न्यायालय ने कड़ा संदेश दिया है।
राजा ने आईएएनएस से कहा, “यह एक कड़ा संदेश है, लेकिन हमें इसका इंतजार करना होगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) व संघ परिवार के अन्य संगठन तथा विभिन्न कट्टरवादी संगठन इस फैसले का पालन करते हैं या नहीं।”
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता बृंदा करात ने कहा कि इस फैसले का असर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के मुद्दों को उठाने पर नहीं पड़ना चाहिए।
बृंदा ने आईएएनएस से कहा, “यह महत्वपूर्ण है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात को दोहराया है कि चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि है। जहां तक जाति की बात है, तो हमें लगता है कि इसकी बराबरी धर्म से नहीं करनी चाहिए।”
तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुखेंदु शेखर रॉय ने कहा कि फैसले से अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के मुद्दों पर विपरीत असर नहीं पड़ेगा।
रॉय ने आईएएनएस से कहा, “हम सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं, जो चुनाव को धर्मनिरपेक्ष बनाता है। हमारी पार्टी मानती है कि धर्म-जाति को राजनीति का विषय नहीं बनाना चाहिए।”
कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि यह फैसला धर्म व जाति आधारित राजनीति के मद्देनजर बेहद अहम है।
उन्होंने आईएएनएस से कहा, “भारतीय राजनीति में आगे बढ़ने के लिए कुछ पार्टियों ने धर्म व जाति को अपनी विचारधारा का हिस्सा बना लिया है, जिसे हतोत्साहित करने की जरूरत है।”
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रवक्ता मनोज झा ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला उसके पिछले फैसले की विसंगतियों को दूर करेगा।
उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति जे. एस. वर्मा की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायालय ने 1995 में अपने फैसले में कहा था कि हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगना भ्रष्ट आचरण नहीं है।
उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि भारतीय राजनीति और समाज में यह फैसला एक नया कीर्तिस्तंभ है।”
शीर्ष अदालत के फैसले पर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने कहा कि जाति, समुदाय और धर्म के नाम पर होने वाली राजनीति ने देश का नुकसान किया है।
विहिप के अंतर्राष्ट्रीय महासचिव सुरेंद्र जैन ने आईएएनएस से कहा, “हम सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं। धर्म, जाति, क्षेत्र और भाषा के नाम पर होने वाली राजनीति ने हमारे देश का बहुत नुकसान किया है और इससे राष्ट्रीय एकता भी खंडित हुई है।”
जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) के महासिचव मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने कहा कि धर्म के नाम पर वोट मांगने पर तत्काल प्रतिबंध लगा देना चाहिए।
सलीम इंजीनियर ने आईएएनएस से कहा, “सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कोई नई बात नहीं कही है और देश का मौजूदा कानून वोट की खातिर सांप्रदायिक भावना भड़काने से प्रतिबंधित करता है, इसके बावजूद इस फैसले का अक्षरश: और आत्मा से पालन होना चाहिए।”