ऐ नए साल बता, तुझमें नया-पन क्या है हर तरफ़ ख़ल्क़ ने क्यूँ शोर मचा रक्खा है
भोपाल– रात 10 बजे एक परिचित पुलिस अधिकारी का फ़ोन आया क्या कर रहे हो चलो भोपाल देखते हैं क्या हो रहा है नव-वर्ष पर मैं भोजन कर चुका था वे भी अपनी अम्मा के हाथों की बनी बाजरे की रोटी और दाल खा चुके थे हम निकल पड़े भोपाल की गतिविधियाँ देखने कुछ अय्यार मित्रों को फ़ोन लगाया उनसे सूचनाएं लीं और पहुंचे सबसे पहले भोपाल में महंगे होटल मेरियट.नीचे एक जगह पार्टी चल रही थी जिसमें एंट्री नहीं थी खोज-खबर की तो पता चला भोपाल के बड़े व्यवसायी ने अपने मित्रों के लिए इसे आयोजित किया है कुछ प्रतिष्ठित व्यवसायी कानफोडू स्वर गूंजते उस हाल में समा नहीं पा रहे थे और जिस तरह उनके हाथों में पकड़ा जाम छलक रहा था उसी तरह वे भी उस हाल से बाहर छलक रहे थे सब के मुखड़े नशे की तरंग में फूले हुए थे नोटबंदी का असर नहीं महसूस हो रहा था.जैसे ही उनमें से एक की नजर मुझ पर पड़ी वह आमंत्रित करने लगा लेकिन मुझे तो बहुत काम था और मैं वहां से निकल गया उसे भी कोई फर्क नहीं पड़ा वो अपनी मस्ती में लबरेज था .
वहां से पहुंचे मेरियट होटल के प्रवेश द्वार पर वहां भी प्रवेश चिन्हित व्यक्तिओं के लिए ही था जो नोट्बंदी से मुक्त थे या सब से अधिक असर उनपर हुआ था.हमने प्रवेश की कोशिश की लेकिन मुख्य द्वार पर नियुक्त अधिकारी ने स्पष्ट मना कर दिया कुछ लालच दिया लेकिन रिश्वत न लेने की परंपरा के उस वाहक ने मना कर दिया खैर हम देते भी क्या कुछ रुपये जेब में थे जिसे दिखाने पर उस होटल की बेइज्जती होती.
अब मैंने अपना अय्यारी अस्त्र इस्तेमाल किया तुरंत होटल के ऊपरी मंजिल से एक व्यक्ति नीचे आया और हमें अन्दर आने का इशारा किया और वहां तक ले गया जहाँ बाहर के माहोल से विपरीत सिर्फ कानफोडू स्वर गूँज रहा था डीजे के तेज स्वर पर सैकड़ों शरीर उछल-कूद मचाये हुए थे हाँ एक बात विशेष थी इस ठण्ड में पुरुष पूरे परिधान में थे लेकिन महिलाओं को ठण्ड नहीं लग रही थी,ड्रेस कोड के अनुसार इतने “लेग पीस” एक साथ वह भी ठंडी रात में मैंने कभी दर्शन नहीं किये थे खैर वहां हो रही उत्सवी हरकतों का बयान यहाँ मुश्किल है लेकिन कुछ तो आपको बता सकता हूँ.
हम हिंदुस्थानी अपना नव-वर्ष गुडी-पड़वा पर मनाते हैं लेकिन वह भी कृषक जगत तक सीमित रह गया है एवं शहरों में एक परंपरा.वैश्वीकरण के चलते अंग्रेजी कैलेण्डर वर्ष का नव-वर्ष अधिक प्रचलन में है लेकिन होता क्या है वह हमने देखा….युवा ,युवतियां ,प्रौढ़ नव-वर्ष उत्सव मनाने के नाम पर अपने विकारों को बाहर लाते हैं इसे वे एक गुट बना प्रदर्शित करते हैं ,नशे में झूमती अधनंगी युवतियां,पूरे कपडे पहने युवक ,कुछ नशे में धुत दम्पति और दो-चार वे जोड़े जो इतना माँगा टिकट खरीद कर इस माहौल में अपने आप को फंसा हुआ महसूस कर रहे थे .होटल में लड़के नहीं नशे में झूमती लड़कियां लडखड़ा कर आप पर गिर रहीं थीं ,कुछ जोड़े नशे में धुत ऐसी अवस्था में थे की दीखना एवं लिखना असंभव है ….क्या यही भारत है ……महानगरों में इस विष-बेल को पनपते हमने सिर्फ सुना था लेकिन यहाँ इतनी मंहगी जगह पहली दफे दीदार किया .
नव-वर्ष उत्सव की आड़ में अपने विकारों को बाहर लाना और समाज के सामने प्रस्तुत करना क्या यही संस्कार मिलते हैं उस धनाड्यता से?कुछ बच्चे जो झोपड़पट्टी के थे और उस ठण्ड में भी माल के अन्दर चल रहे कार्यक्रमों का आनंद सिर्फ आवाज सुन ले आनंदित हो रहे थे जब मैंने उनसे पूछा की घर वालों से दूर यहाँ क्या कर रहे हो तब बड़ा मासूम जवाब मिला …भैया हो सकता है कुछ अच्छा खाने को मिल जाए इस पार्टी के बाद ………हे ईश्वर ऐसी विडम्बना …क्या यही उत्सव है ?
मेरा मन घबरा गया और मैंने उन अधिकारी महोदय से निवेदन किया की मैं अब घर जाऊँगा और देखने-घूमने का मन नहीं है …….कुछ भोपाल के अय्यारों से बात की तो पता चला सभी होटलों में यही हाल है …….सभी जगह एक ही दृश्य….वापसी में एक मेडिकल माफिया का घर-नुमा रेस्ट हॉउस पड़ा जो एक नर्सिंग-होम के बगल में है …अस्पताल का लिहाज नहीं करते हुए कानफोडू ध्वनि में उस खानदान के युवाओं की धींगा-मस्ती को देखते हुए अपनी कुटिया में घुस कम्बल में दुबक निद्रा देवी के आगोश में आनंद ले नया वर्ष मनाने में ही बेहतरी समझी और आनंद के गहराइओं में उतर गया ……………..
अनिल सिंह भोपाल से