Saturday , 5 October 2024

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किशनगंगा मुद्दा : भारत को राहत, पाकिस्तान की आपत्तियाँ खारिज

Indian Muslims hold national flag on India (L) and Pakistan during a protest rally in Mumbaiभारत को बड़ी राहत देते हुए हेग स्थित अन्तरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत ने पाकिस्तान की आपत्तियों को खारिज कर दिया और जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा नदी से पानी का प्रवाह मोड़कर विद्युत उत्पादन करने के नई दिल्ली के अधिकार को बरकरार रखा है।

भारत-पाकिस्तान मध्यस्थता मामले में अन्तिम फैसला सुनाते हुए अदालत ने यह भी निर्णय दिया कि भारत को किशनगंगा जल विद्युत परियोजना के नीचे से ‘हर वक़्त’ किशनगंगा-नीलम नदी में कम से कम नौ क्यूमेक्स (घन मीटर प्रति सेकेंड) पानी जारी करना होगा। जबकि पिछली 18 फरवरी को दिए गए आंशिक फ़ैसले में न्यूनतम प्रवाह का मुद्दा अनसुलझा रहा था।
अदालत ने शुक्रवार को दिए अपने अन्तिम फ़ैसले में निर्णय दिया है कि ‘किशनगंगा नदी से जल प्रवाह की दिशा प्रथम बार मोड़ने के सात वर्ष के बाद’ भारत और पाकिस्तान दोनों स्थाई सिन्धु आयोग और सिन्धु जल समझौते की रूपरेखा के मुताबिक निर्णय पर ‘पुनर्विचार’ कर सकते हैं।
आंशिक फैसले में अदालत ने सर्वसम्मति से निर्णय किया था कि जम्मू-कश्मीर में 330 मेगावाट की परियोजना में सिन्धु जल समझौते की परिभाषा के तहत नदी का प्रवाह बाधित नहीं होना चाहिए।
मध्यस्थता अदालत ने कहा कि विद्युत उत्पादन के लिए किशनगंगा-नीलम नदी से पानी के प्रवाह की दिशा मोड़ने के लिए भारत स्वतन्त्र है। अदालत ने भारत को परियोजना के लिए पानी मोड़ने का अधिकार दे दिया है और निर्बाध पानी के प्रवाह के पाकिस्तान की माँग को स्वीकार कर लिया है।
पाकिस्तान ने दावा किया है कि परियोजना के कारण नदी जल में इसका क़रीब 15 फ़ीसदी हिस्सा ग़ायब हो जाएगा। इसने भारत पर आरोप लगाए कि वह पाकिस्तान के नीलम-झेलम जल विद्युत परियोजना को नुक़सान पहुँचाने के लिए नदी जल को मोड़ने का प्रयास कर रहा है।
अदालत ने कहा कि किशनगंगा जल विद्युत परियोजना भारत ने पाकिस्तान की नीलम-झेलम जल विद्युत परियोजना से पहले बनाई थी और परिणामस्वरूप भारत की किशनगंगा जल विद्युत परियोजना को ‘प्राथमिकता’ मिलती है। यह अन्तिम फ़ैसला दोनों देशों के लिए बाध्यकारी है और इस पर अपील नहीं की जा सकती है।
पाकिस्तान ने सिन्धु जल सन्धि 1960 के प्रावधानों के तहत 17 मई 2010 को भारत के ख़िलाफ़ अन्तरराष्ट्रीय अदालत का रुख किया था। सिन्धु जल समझौता एक अन्तरराष्ट्रीय समझौता है जिस पर भारत और पाकिस्तान ने 1960 में दस्तख़त किए थे और जिसमें दोनों देशों द्वारा सिन्धु नदी के जल के उपयोग को लेकर दिशा-निर्देश हैं।
किशनगंगा जल विद्युत परियोजना की रूपरेखा इस तरह से तैयार की गई है कि उसके तहत किशनगंगा नदी में बाँध से जल का प्रवाह मोड़कर झेलम की सहायक नदी बोनार नाला में लाया जाना है।
सात सदस्यीय मध्यस्थता अदालत के अध्यक्ष अमरीका के न्यायाधीश स्टीफन एम० स्वेबेल हैं जो अन्तराराष्ट्रीय न्यायालय के पूर्व अध्यक्ष थे। अन्य सदस्यों में फ्रैंकलिन बर्मन और होवार्ड एस व्हीटर (ब्रिटेन), लुसियस कैफलिश (स्विट्जरलैंड), जान पॉलसन (स्वीडन) और न्यायाधीश ब्रूनो सिम्मा (जर्मनी) पीटर टोमका (स्लोवाकिया) है।
मध्यस्थता अदालत ने जून 2011 में किशनगंगा परियोजना स्थल एवं आसपास के इलाकों का दौरा किया था।
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