दिल्ली में हुमायूं के मकबरे की ना सिर्फ मरम्मत की गई है बल्कि मूल भवननिर्माण सामग्री और तकनीकों का इस्तेमाल कर उसके सौंदर्य की पुनर्प्रतिष्ठा भी कर दी गई पर दिल्ली और देश के बाकी धरोहरों का क्या?
छह वर्षों से इस परियोजना काम चल रहा था और पिछले माह ही पूरा हुआ. अगर इस परियोजना को पूरा करने में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण को आगा खां संस्कृति निधि का सहयोग न मिला होता तो यह संभव नहीं था. सच्चाई तो यह है कि पुरातात्विक सर्वेक्षण ने पिछले दशकों में मकबरे की मरम्मत के नाम पर जो कुछ किया, उसके कारण उसे नुकसान ही अधिक हुआ क्योंकि सरकारी विभाग होने के कारण इस संस्था की वित्तीय सीमाएं हैं और उसके पास हमेशा वित्तीय संसाधनों की कमी रहती है. हमारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के प्रति सरकारी उदासीनता का हाल यह है कि दो दशकों से भी अधिक समय तक सर्वेक्षण के महानिदेशक के पद पर आईएएस अधिकारियों की ही नियुक्ति होती रही. इसके अलावा यह भी एक बेहद कड़वी सचाई है कि अब इस संस्था के पास इस प्रकार का संरक्षण करने के लिए पर्याप्त निपुण लोग भी नहीं हैं. आगा खां संस्कृति निधि की ओर से वित्तीय सहयोग मिल रहा था, इसलिए हुमायूं के मकबरे के संरक्षण के लिए उज्बेकिस्तान तक से कुशल कारीगर और टाइल बनाने के विशेषज्ञों को बुलाया गया.