डा लक्ष्मीनारायण वैष्णव /भोपाल/ लोकतंत्र में मतदाता और चुनाव दोनो का विशेष महत्व बतलाया गया है मतदाता के लिये उसका मत रूपी हथियार का प्रयोग और राजनैतिक दलों के लिये सत्ता प्राप्त करने के लिये चुनावी समर में कूदना आवश्यक होता है। मतदाता अपने हथियार का प्रयोग करते हुये चुनावी मैदान में खडे जनप्रतिनिधियों में से निर्वाचित कर उनको राज्य या देश की सत्ता तक पहुंचाते हैं। एैसा ही कुछ होने वाला अगले नबम्बर माह में जहां देश के पांच राज्यों क्रमश:मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ,दिल्
राजनैतिक जानकारों की माने तो यह सेमीफाईनल के रूप में चुनाव लडे जाने वाले हैं जिसको देखकर ही बहुत कुछ आंकलन प्रारंभ हो जायेगा क्योंकि २०१४ में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। देखा जाये तो बर्ष के अंत में उक्त राज्यों में नई सरकार अपना कार्य संभाल चुकेगी। उक्त राज्यों में देखा जाये तो प्राय: दो ही प्रमुख दलों के मध्य सीधा मुकाबला होने जा रहा है परन्तु कुछ राजनैतिक दलों के द्वारा खेल बनाने और बिगाडने में एक अहम भूमिका निभाई जायेगी इस बात से इंंकार नहीं किया जा सकता है। बात करें मध्यप्रदेश की तो यहां पर भारतीय जनता पार्टी पिछले १० बर्षों से सत्तारूढ है प्रदेश के ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतत्व में भाजपा सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं एवं शिव की छबि ने एक अमिट छाप मतदाताओं के मन में छोडने में कामयाबी हासिल की है । हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि शिव के अनेक गणों एवं कुछ विधायकों के प्रति जनता में आक्रोश है। शायद यही वह एक कारण है कि भाजपा एवं शिव ने इस बात को भांपते हुये पूर्व से ही यह कहना प्रारंभ कर दिया था कि शिवराज और कमल के फूल को देखो और वह काफी हद तक इसमें कामयाब भी हो चुके हैं। वहीं कांग्रेस भले ही हम साथ साथ हैं के गीत को गुन गुनाते हुये जनता में उक्त संदेश देने का प्रयास करे परन्तु उसकी आंतरिक कलह की बातें तो छन छनकर सामने आ ही रही हैं। यह कहा जाये कि शिव अपने आपको प्रदेश मंदिर,जनता भगवान और शिवराज पुजारी की छबि को बनाने में जहां कामयाब हुये हैं तो वहीं दूसरी और ज्योतिरादित्य सिंधिया महाराज की छबि से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं । शिव जहां अपने कुछ गणों के कारण परेशान हैं तो वहीं ज्योति अपनों के साथ ही अन्य राजनैतिक दलों द्वारा उसके पारंपरिक वोट बैंक में लगाये जाने वाले सैंध से परेशान देखे जा सकते हैं। सूत्रों की माने तो भाजपा को कुछ नुकसान पूर्व में भारतीय जनशक्ति पार्टी से हुआ था जबकि वह अब भाजपा में सम्मिलित हो चुकी है। जबकि कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान बहुजन पार्टी ,गौंडवाना पार्टी,समाजवादी पार्टी जैसे दलों ने दलित,मुस्लिम और आदिवासी वोटों में सेंध लगाना प्रारंभ कर दिया है जो कि कांग्रेस का ही वोट बैंक माना जाता है। जबकि भाजपा को अब खोने को कुछ नहीं है अपितु इस धु्रवीकरण से फायदा ही होना है एैसा राजनीति के जानकार बतलाते हैं। भारतीय जनता पार्टी अपनी सत्ता को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती है और देखा जाये तो उसने इसके लिये प्रयास पिछले दो बर्षों से ही प्रारंभ कर दिये थे । वह प्रचार प्रसार में काफी आगे निकल चुकी है जबकि १० बर्षों से वनवास भोग रही कांग्रेस पुन: सत्ता प्राप्ति के लिये जद्दोजहद कर रही है। ज्योति के नाम की घोषणा और उसके बाद उनका कमान संभालने कुछ ही समय बाद आचार संहिता लगने के कारण मुश्किलों का पहाड सामने खडा होने की बात से इंकार नही किया जा सकता है। सुशासन बनाम कुशासन जैसे नारे को लेकर भाजपा मैदान में है तो भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर कांग्रेस मैदान में है। शिव आचार संहिता लगने के पूर्व ही साठ से सत्तर प्रतिशत क्षेत्रों में पहुंच चुके थे जबकि कांगे्रस की यहां से शुरूआत हुई थी ।
फायदे में जाती भारतीय जनता पार्टी
आगामी माह में होने वाले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को फायदे में जाती दिखलायी दे रही है। इसके पीछे का कारण राजनैतिक पंडित बहुजन समाज पार्टी,समाजवादी पार्टी एवं गोंडवाना पार्टी के द्वारा जो वोटों का धु्रवीकरण होने की संभावना को मानते हैं। क्योंकि जो सेंध लगेगी वह भाजपा के नहीं अपितु कांग्रेस के पारंपरागत वोट में ही लगने वाली है। ज्ञात हो कि गत वर्ष 2008 में भाजपा, कांग्रेस एवं बसपा को प्राप्त हुए मतों को देखा जाये तो गुणा-भाग करने पर कुछ इस तरह का नजारा सामने आता है कि मान लो भाजपा-बसपा साथ होती तो प्रदेश में कांग्रेसी विधायकों की संख्या ७१ की जगह लगभग दो या तीन दर्जन के करीब होती । और इसका फायदा यह होता की भारतीय जनता पार्टी दो-तिहाई से अधिक 184 के आंकड़े को प्राप्त कर लेती। जानकार बतलाते हैं कि स्वयं जीती सीटों के अलावा 34 सीटों पर बसपा को इतने मत हासिल हुए थे कि उसके भाजपा के साथ होने पर ये सीटें कांग्रेस की बजाय भाजपा की झोली में होती। सवाल यह खडा होता है कि कांग्रेस को इन बनते बिगडते समीकरणों को रोक पाना आसान ही नहीं असंभव सा प्रतीत हो रहा है क्योंकि सत्ता के शीर्ष पर बैठालने जैसे समझोतों से उक्त दल समझोता करने वाले नहीं हैं तो वहीं कांग्रेस अपनी अंदरूनी कलह से परेशानी से निपटे कि बाहर के दलों से इसका सीधा फायदा भाजपा को होता देखा जा सकता है। क्योंकि भाजपा से ही अलग हुई साधवी सुश्री उमा भारती अब भाजपा में हैं और उनको प्रचार की कमान देने के संकेत पार्टी के नेताओं ने कर ही दिये हैं जो कि प्रचार प्रसार के साथ ही जनता की नब्ज पकडने और प्रतिद्वन्दी पर प्रहार करने में माहिर हैं ही जिसका फायदा शिव को पूरा पूरा यानि भाजपा को मिलेगा। कहने का मतलब उमा पुन: भाजपा को वरदान साबित होने वाली हैं।
एक नजर इधर भी
2008 में विभिन्न दलों को प्राप्त सीटें
भाजपा-143
कांगेस-071
बसपा- 07
भाजश- 05
सपा- 01
निर्दलीय-03
कुल सीटें- 230
2008 बसपा का प्रदर्शन
विजय 07 सीटें
निकटतम- नम्बर दो पर 19 सीटें
25 से 40 हजार तक प्राप्त मत 14 सीटें
10 से 20 हजार तक प्राप्त मत 68 सीटें
5 हजार तक प्राप्त मत 35 सीटें
5 हजार से कम प्राप्त मत 92 सीटें
गठबंधन की स्थिति में
कांग्रेस-बसपा साथ होते तो 135 सीटें
भाजपा 79 सीटें
भाजपा-बसपा साथ होते तो 184 सीटें
कांग्रेस 037 सीटें