भगवान श्री कृष्ण के नाम से पहले हमेशा भगवती राधा का नाम लिया जाता है। कहते हैं कि जो व्यक्ति राधा का नाम नहीं लेता है सिर्फ कृष्ण-कृष्ण रटता रहता है वह उसी प्रकार अपना समय नष्ट करता है जैसे कोई रेत पर बैठकर मछली पकड़ने का प्रयास करता है।
श्रीमद् देवीभाग्वत् नामक ग्रंथ में उल्लेख मिलता है कि जो भक्त राधा का नाम लेता है भगवान श्री कृष्ण सिर्फ उसी की पुकार सुनते हैं। इसलिए कृष्ण को पुकारना है तो राधा को पहले बुलाओ। जहां श्री भगवती राधा होंगी वहां कृष्ण खुद ही चले आएंगे।
पुराणों के अनुसार भगवान कृष्ण स्वयं कहते हैं कि राधा उनकी आत्मा है। वह राधा में और राधा उनमें बसती है। कृष्ण को पसंद है कि लोग भले ही उनका नाम नहीं लें लेकिन राधा का नाम जपते रहें।
इस नाम को सुनकर भगवान श्री कृष्ण अति प्रसन्न हो जाते हैं। इसका उल्लेख श्री कृष्ण जी ने नारद से किया है। इस संदर्भ में कथा है कि व्यास मुनि के पुत्र शुकदेव जी तोता बनकर राधा के महल में रहने लगे।
शुकदेव जी हमेशा राधा-राधा रटा करते थे। एक दिन राधा ने शुकदेव जी से कहा कि अब से तुम सिर्फ कृष्ण-कृष्ण नाम जपा करो। शुकदेव जी ऐसा ही करने लगे। इन्हें देखकर दूसरे तोता भी कृष्ण-कृष्ण बोलने लगे।
राधा की सखी सहेलियों पर भी कृष्ण नाम का असर होने लगा। पूरा नगर कृष्णमय हो गया, कोई राधा का नाम नहीं लेता था। एक दिन कृष्ण उदास भाव से राधा से मिलने जा रहे थे। राधा कृष्ण की प्रतीक्षा कर रही थी।
तभी नारद जी बीच आ गए। कृष्ण के उदास चेहरे को देखकर नारद जी ने पूछा कि प्रभु आप उदास क्यों है। कृष्ण कहने लगे कि राधा ने सभी को कृष्ण नाम रटना सिखा दिया है। कोई राधा नहीं कहता, जबकि मुझे राधा नाम सुनकर प्रसन्नता होती है।
कृष्ण के ऐसे वचन सुनकर राधा की आंखें भर आईं। महल लौटकर राधा ने शुकदेव जी से कहा कि अब से आप राधा-राधा ही जपा कीजिए। उस समय से ही राधा का नाम पहले आता है फिर कृष्ण का।
राधा कृष्ण की तरह सीता का नाम भी राम से पहले लिया जाता है। असल में राम और कृष्ण दोनों ही एक हैं और राधा एवं सीता भी एक हैं। यह हमेशा नित्य और शाश्वत हैं।
क्योंकि यही लक्ष्मी और नारायण रूप से संसार का पालन करते हैं। नारायण लक्ष्मी से अगाध प्रेम करते हैं। यह हमेशा अपने हृदय में बसने वाली राधा का नाम सुनना चाहते हैं। इसलिए ही कृष्ण नाम से पहले राधा नाम लिया जाता है।