राधाष्टमी 13 सितंबर को मनाई जाएगी। इस अवसर पर दो प्रमुख संप्रदायों की बात करना बेहद जरूरी है। यवनों के आक्रमण से जड़ हुए ब्रज में वैष्णव धर्म की नवक्रांति लाने वाले धर्माचार्य देश के कोने-कोने से यहां आए थे।
भक्ति की वे पांच प्रमुख सरिता आज भी ब्रज में अविरल बह रही हैं। इनका कल-कल नाद मंदिरों में संगीत की राग-रागनियों सा सुनाई देता है। निंबार्क, चैतन्य, बल्लभ, राधावल्लभ, स्वामी हरिदास का सखी, ये संप्रदाय राधा-कृष्ण भक्ति के पांच स्तंभ बनकर खड़े हैं।
पांचों संप्रदायों में सबसे प्राचीन निंबार्क और राधावल्लभ दो संप्रदाय हैं। दक्षिण के आचार्य निंबार्क जी ने सर्वप्रथम राधा-कृष्ण की युगल उपासना का प्रचलन किया। राधावल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक श्रीकृष्ण वंशी अवतार कहे जाने वाले और वृंदावन के प्राचीन गौरव को पुर्नस्थापित करने वाले रसिकाचार्य हित हरिवंश जी महाप्रभु के संप्रदाय की प्रवर्तक आचार्य राधा हैं।
इन दोनों संप्रदायों में राधाष्टमी के उत्सव का विशेष महत्व है। निंबार्क व राधावल्लभ संप्रदाय का प्रमुख गढ़ वृंदावन है। निंबार्क संप्रदाय के विद्वान व वृंदावन शोध संस्थान से जुड़े छीपी गली निवासी वृंदावन बिहारी कहते हैं कि कृष्ण सर्वोच्च प्रेमी थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। वैष्णवाचार्यों ने भी अपने-अपने तरीकों से उनकी आराधना की है।
निंबार्क संप्रदाय कहता है कि श्याम और श्यामा का एक ही स्वरूप हैं। भगवान कृष्ण ने अपनी लीलाओं के लिए स्वयं से राधा का प्राकट्य किया और दो शरीर धारण कर लिए।
राधा कृष्ण स्वरूप हैं और कृष्ण राधा स्वरूप। दोनों में कोई भेद नहीं है। स्वामी हरिदास जी ने लिखा है कि माई री सहज जोरी प्रगट भई गौर-श्याम की, घन दामिनी जैसे, अंग-अंग की उजराई, सुघराई-सुंदरता वैसे…।
उन्होंने कहा, ‘यह सच है कि कृष्ण से जुड़े ग्रंथों में राधा का नाम नहीं है। सुखदेव जी ने भी भागवत में राधा का नाम नहीं लिया। इसका कारण राधा का रहस्यमय होना है। उन्हीं सुखदेव ने भागवत में स्पष्ट दिखा दिया कि यही तो राधा है। रहस्य रहस्य ही रहेगा, यही रहस्य का सिद्धांत है।
यह हमारी गलती है कि हम उसे खोजने चले हैं। श्री ठाकुर जी ने गीता में एक श्लोक में कहा है कि प्रकृति और पुरुष दोनों शाश्वत हैं। श्रीकृष्ण ने किसी कारण से ही प्रकृति को पहले रखा जो नारी का प्रतीक है। हर जगह रहस्यवादी ढंग से ही लिखा गया। निंबार्काचार्य जी ने राधा-कृष्ण का विशेष महत्व स्थापित किया।
कृष्ण की तरह राधा भी बहुआयामी हैं। उनके सभी आयामों को सामने लाने वाला निंबार्क संप्रदाय ही है। संपूर्ण ब्रह्मंड की आत्मा भगवान कृष्ण हैं और कृष्ण की आत्मा राधा हैं। आत्मा को देखा है किसी ने तो राधा को कैसे देख लोगे। राधा रहस्य थीं और रहेंगी।’