अनिल सिंह (भोपाल )-बुखार और जुकाम की शिकायत के बाद वरिष्ठ कैमरामैन संतोष जोशी को 31 जुलाई को नेशनल अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी मौत हो गई थी।
कई इलेक्ट्रानिक चैनलों में काम कर चुके संतोष जोशी को लंबे समय से बुखार की शिकायत थी.
राजधानी के श्यामला हिल्स क्षेत्र का रहने वाला था। उसकी की उम्र करीब 38 साल थी। वह एक लोकल चैनल में कैमरामेन का काम करता था। उसे 31 जुलाई को नेशनल अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसकी हालत शुरू से ही गंभीर बनी थी।राजधानी के श्यामला हिल्स क्षेत्र का रहने वाला था। उसकी की उम्र करीब 38 साल थी। वह एक लोकल चैनल में कैमरामेन का काम करता था। उसे 31 जुलाई को नेशनल अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसकी हालत शुरू से ही गंभीर बनी थी।
भोपाल में मीडियाकर्मी की मौत के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने त्वरित निर्णय लेते हुए शासकीय सेवा में उसकी पत्नी को शामिल करने की घोषणा कर दी,सभी मुख्य समाचारपत्रों में यह खबर बड़े-बड़े अक्षरों में प्रकाशित हुई लेकिन हुआ क्या यह जानिये
आज कल मीडियाकर्मी की विधवा अपने बच्चे और पिता के साथ भाजपा मुख्यालय के चक्कर काटती देखी जाती है,उसे संविदा नियुक्ति दे कर उस घोषणा को पलीता दिखा दिया गया,महिला यह निवेदन करती दिखती है की जब मुख्यमंत्री जी ने घोषणा की तो उसे पूरा क्यों नहीं किया,संविदा नियुक्ति की कोई गारंटी नहीं कब बाहर का रास्ता दिखा दिया जाय।
भाजपा कार्यालय मंत्री आलोक संजर कहते हैं
संजर जी विद्वान व्यक्ति माने जाते हैं हमारे सामने ही उन्होंने महिला से कहा जो की अपने सोते हुए बच्चे को गोद में सम्भाले हुए थी की मैडम आपको योग्यता अनुसार नियमित नहीं तो संविदा नियुक्ति तो मिल ही गयी अब क्या है,महिला ने कहा भाई साब इस नौकरी का भरोसा नहीं है तब भाईसाब बड़े प्रेम से जिंदगी का भी भरोसा नहीं होता की फिलासफी समझाने लगे हम हतप्रभ रह गए क्या यही शब्द शिवराज जी पूरी मीडिया के सामने कह सकते हैं यदि हिम्मत हो तो कह कर दिखाएँ।
मामा जी की इसी जबानी लोकप्रियता ने उन्हें मशहूर बना दिया है।जिस समय यह संवाद चल रहा था कार्यालय में भाजपा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर भी उपस्थित थे लेकिन उनसे मिलवाने की किसी ने जरूरत नहीं समझी।
अब पूरा मीडिया भी चुप है,पत्रकारों के संगठन भी अपने खर्चीले आयोजनों में मशगूल
एक दो दिन गला फाड़ वार्ता के बाद अब मीडियाकर्मी की विधवा किस स्थिति में है,उसे क्या संघर्ष करने पड़ रहे हैं ,किसी क्या उस मीडियाकर्मी के संस्थान को ही फिक्र नहीं है।