गणेश चतुर्थी हर मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है। इस तिथि में व्रत करने से सभी विघ्न भगवान गणेश हर लेते हैं। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी शनिवार को विशेष नक्षत्र में पड़े तो इसका अपना अलग महत्व है। विशाखा नक्षत्र में चतुर्थी के आने से इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इसके लिए व्रत रखकर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को दुर्वा (घास) और मोदक (लड्डू) चढ़ाने चाहिए। इससे सभी मनोरथ पूरे होते हैं और सभी पापों का विनाश होता है।
बहुधा लोग किसी कार्य में प्रवृत्त होने के पूर्व संकल्प करते हैं और उस संकल्प को कार्य रूप देते समय कहते हैं कि हमने अमुक कार्य का श्रीगणेश किया। कुछ लोग कार्य का शुभारंभ करते समय सर्वप्रथम श्रीगणेशाय नम: लिखते हैं। यहां तक कि पत्रादि लिखते समय भी ऊँ या श्रीगणेश का नाम अंकित करते हैं। श्रीगणेश को प्रथम पूजन का अधिकारी मानते हैं? लोगों का विश्वास है कि गणेश के नाम स्मरण मात्र से उनके कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं- इसलिए विनायक के पूजन में विनायको विघ्नराजा-द्वैमातुर गणाधिप स्त्रोत पाठ करने की परिपाटी चल पड़ी है। यहां तक कि उनके नाम से गणेश उपपुराण भी है।
गजानन, गणपति, लंबोदर, या गणेश, कोई भी नाम हो पर है सर्वोत्तम। क्योंकि ये सारे विघ्न को हरने वाले विघ्नहर्ता हैं। सनातन धर्म में कुछ त्योहार हर महीने आते हैं, जो कि किसी ईष्ट देव के प्राकट्य दिवस की तिथि को आता है। इनमें शिवरात्रि, प्रदोष और गणेश चतुर्थी मुख्य हैं। इनमें गणेश चतुर्थी के व्रत को हर महीने पड़ने वाले त्योहारों में मुख्य माना जाता है।
विघ्नहर्ता के जन्मदिवस से संबंधित इस तिथि में खास नक्षत्र पड़ने से व्रत करने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। इसे पूरे भारत में विशेषकर महाराष्ट्र में मनाई जाती है। हर मास आने वाली गणेश चतुर्थी का भी शास्त्रों में विशेष महत्व है।