पानीपत से लगभग सात किलोमीटर दूर जाटल रोड पर बसे गांव भादौड़ में स्थित प्रगटेश्वर महादेव मंदिर में जहां भगवान शिव के पिंडी स्वरूप के दर्शनों के लिए दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, वहीं समय-समय पर यहां विशाल मेले भी लगते हैं।
भगवान भोलेनाथ विभिन्न स्वरूपों में पूरे ब्रह्मांड में अलग-अलग स्थानों पर विराजमान हैं। उनके विराजमान होने तथा प्रकट होने के संबंध में श्रद्धालुओं की धारणाएं भी अलग-अलग हैं। इन्हीं धारणाओं और विश्वास के अनुसार माना जाता है कि पानीपत जिले के भादौड़ गांव में स्थित प्रगटेश्वर महादेव मंदिर के स्थान पर प्राचीन काल में भगवान शिव पिंडी स्वरूप में दूध की धारा से प्रस्फुटित हुए थे।
पानीपत से सात किलोमीटर दूर जाटल रोड पर बसे गांव भादौड़ में स्थित यह प्रगटेश्वर महादेव मंदिर असंख्य श्रद्धालुओं की आस्था को समेटे हुए है। यहां शिवरात्रि के दिन लगने वाले विशाल मेले में अनेक श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए मन्नत मांगते हैं। इस प्राचीन तथा ऐतिहासिक मंदिर में प्रतिदिन भगवान शिव के पिंडी स्वरूप के दर्शनों के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। इस मंदिर में जहां शालिग्राम रूप में स्थापित शिवलिंग है, वहीं शिव, पार्वती, गणेश तथा हनुमान की प्रतिमाएं भी सुशोभित हैं।
मंदिर के बाहर शिव वाहन नंदी की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। प्राचीन काल में यहां पर शिवशक्ति के प्रकट होने की धारणा के चलते इस मंदिर को प्रगटेश्वर महादेव धाम के नाम से भी जाना जाता है। श्रद्धालुओं के अनुसार प्राचीन समय में यहां पर स्थित विशाल तालाब के बीच टापू पर गांव का एक व्यक्ति घास खोदने गया और घास खोदते-खोदते उसका खुरपा पिंडी रूप शालिग्राम पर लगा जिसके कारण उस पिंडी के अंदर से दूध की धारा निकलनी शुरू हो गई और वहां पर शिवशक्ति प्रकट हुई। उस व्यक्ति द्वारा गांव में यह वृतांत सुनाने पर ग्रामीणों ने वहां जाकर विनती की कि हे महाशक्ति तुम सचमुच शिवशक्ति हो तो हमारी प्रार्थना स्वीकार करना और विशाल तालाब के टापू की बजाय तालाब के बाहर पूर्वी किनारे पर प्रकट होना ताकि हम आपका मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना कर सकें। माना जाता है कि भगवान शिव पूर्वी किनारे पर प्रकट हुए और उसके बाद यहां पर मंदिर का निर्माण किया गया।
बुजुर्ग श्रद्धालुओं का मानना है कि इस प्राचीन मंदिर में पानीपत की लड़ाई में भाग लेने आए सदाशिवराम राजा भाऊ की सेना ने भी पड़ाव डाला था तथा राजा भाऊ ने शिव के चमत्कार से प्रभावित होकर इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। भगवान शिव के इस मंदिर में श्रावण और फाल्गुन मास में विशाल मेला लगता है तथा भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। फाल्गुन मास की शिवरात्रि को यहां पर कुश्ती दंगल का आयोजन भी किया जाता है और श्रावन मास में अनेक शिवभक्तों द्वारा यहां कांवड़ भी चढ़ाई जाती हैं।
श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में श्रद्धा से मांगी गई हर मन्नत पूर्ण होती है तथा प्रगटेश्वर महादेव की अपने भक्तों पर सदैव कृपा बरसती है। इस मंदिर में समय-समय पर दिखाई देने वाले सर्प को भगवान शिव का ही रूप माना जाता है। विभिन्न अवसरों पर श्रद्धालु इस प्राचीन मंदिर के सामने कई वर्षो से उगे झाड़ की पूजा भी करते हैं। इस मंदिर में स्थित शिव कुंड का जल दूध मिले पानी जैसा प्रतीत होता है।
शिवभक्त मानते हैं कि इस कुंड में स्नान करने से चरम रोगों से निजात मिलती है। दो-तीन वर्ष पूर्व आरंभ हुए इस शिव कुंड को विशाल कुंड बनाने का कार्य अभी निर्माणाधीन है। इस प्रगटेश्वर महादेव मंदिर में जहां यजुर्वेदाचार्य वैदिक पंडित श्याम प्रसाद पूजा-अर्चना करते हैं, वहीं शिव मंदिर प्रबंधक कमेटी भी गांव और शिवभक्तों के सहयोग से सभी धार्मिक कार्यक्रमों की देखरेख भली-भांति करती है।