यूं तो भक्तों के मन में राम, कृष्ण या उनके आराध्य देवी-देवताओं की मूरत सजती है, लेकिन राम की नगरी में श्रीकृष्ण रच-बस से गए हैं। वह चाहे सावन, छठ, दशहरा या अन्य कोई भी मौका हो। कृष्ण जन्माष्टमी में तो सब कुछ कृष्णमय ही हो जाता है।
राजसदन की कृष्ण झांकी बरबस ही मन मोह रही है। करीब 200 वर्षो से राजसदन परंपरागत तरीके से कृष्ण भ1ित का बखान कर रहा है। श्रावण झूला मेला में राम के साथ कृष्ण भी अयोध्या के अधिकांश मंदिरों में छाये रहे।
साकेत आदर्श रामलीला मंडल ने कृष्ण प्रसंगों को कई मंदिरों में विभिन्न मनोभाव में पेश किया है। 1944 से यह टीम अयोध्या, मधुबनी व सीतामढ़ी के कलाकारों के साथ अयोध्या में कृष्ण छटा बिखेर रही है। जयराम दास पत्थर मंडली ने भी भगवान कृष्ण की लीला को आत्मसात कर लिया है। बरेली से आए पंडित कामेश्वर नाथ शर्मा अयोध्या आकर कृष्ण भक्ति का बखान कर रहे हैं।
जानकी महल ट्रस्ट में कृष्ण रासलीला को देखने के लिए भारी भीड़ जुट रही है। कनक भवन, हनुमानगढ़ी, मणिराम छावनी का बाल्मिकी भवन, काले राम मंदिर, यहां के संस्कृत विद्यालय व अन्य मंदिरों में कृष्ण लीला हो चुकी है।
राजसदन के वंशज शैलेंद्र मोहन मिश्र उर्फ चुन्नू बाबू का कहना है कि 200 साल पहले राजा अयोध्या प्रताप नारायण सिंह ने श्रावण मेला में कृष्ण झूला की परंपरा शुरू की थी। अयोध्या के सावन झूला मेले में भगवान श्रीराम व जानकी जी के साथ ही राधा-कृष्ण, लक्ष्मी-नारायण तथा हनुमान जी को 5ाी हिंडोले पर झुलाए जाने की परंपरा है। कई मंदिरों में श्रीराधा कृष्ण के विग्रहों को झूले पर विराजमान कर उनके समक्ष गायन, वादन व नृत्य प्रस्तुत किया जा रहा है।
अशर्फी सावन में चांदी के भव्य झूले पर भगवान नारायण व लक्ष्मी, भूदेवी व श्रीदेवी के विग्रह विराजमान किए गए हैं। डेढ़ सौ वर्ष पूर्व जगदगुरु स्वामी मधुसूदनाचार्य ने इस पीठ की स्थापना कर झूलनोत्सव की परंपरा को आरंभ किया था। अयोध्या ही नहीं है, कस्बाई क्षेत्र भी भगवान राम के साथ-साथ कृष्ण के प्रति प्रेम में सराबोर दिखता है। विभिन्न आयोजनों में कृष्ण रासलीला व झांकी जगह-जगह देखने को मिलती है। जन्माष्टमी के मौके पर अयोध्या, फैजाबाद शहर, बीकापुर, गोसाईगंज, महबूबगंज, सोहावल व रुदौली आदि क्षेत्रों में कृष्ण झांकी की तैयारियां चल रहीं हैं।