दुनिया की सबसे सस्ती कार का सपना दिखाने वाली टाटा मोटर को नैनो ने इतने बुरे सपने दिखाए कि इस कार के रूप को बदल देने का फैसला किया गया है. नैनो एक जबरदस्त फ्लॉप साबित हुई.
टाटा मोटर्स ने कहा है कि वह नैनो को अब “स्मार्ट सिटी कार” के तौर पर बाजार में लाना चाहती है. चार साल पहले पूरी दुनिया ने टाटा की वाहवाही की थी, जब सिर्फ एक लाख रुपये की कार बाजार में उतारी गई. लेकिन कार प्रेमियों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया.
भारत में दोपहिया वाहनों से ऊपर उठ कर कार का सपना पूरा करने वालों के लिए टाटा मोटर्स ने 2009 में नैनो पेश की. दुनिया भर में इसकी तारीफ हुई, सुर्खियां बनीं लेकिन कार फ्लॉप हो गई. कंपनी को इसकी बिक्री में घाटा उठाना पड़ा. इसकी सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठाए गए. टाटा ने जिस “सस्ती कार” को अपनी खूबी बनते देखा था, वह दरअसल उसके नाम के साथ बुरा टैग साबित हुआ. हालांकि टाटा के पास जैगुआर और लैंड रोवर जैसी महंगी और बड़ी ब्रांड वाली कारें भी हैं.
टाटा के चेयरमैन साइरस मिस्त्री ने मुंबई में शेयरधारकों की बैठक में कहा, “अब हमारा ध्यान नैनो के मूल्य और उसकी खासियत की ओर रहेगा. हर नए मॉडल के लांच के साथ इसका ध्यान रखा जाएगा.” कंपनी ने तय किया है कि अब मिडिल क्लास की इस कार को युवाओं की कार के तौर पर पेश करने की कोशिश होगी. मिस्त्री का कहना है, “अब हम ध्यान दे रहे हैं कि यह एक स्मार्ट सिटी कार हो, जो युवा वर्ग को अपनी तरफ खींच पाए.”
कंपनी की योजना थी कि स्कूटर मोटरसाइकिल चलाने वाली जनता इस कार को हाथों हाथ लेगी. लेकिन इस साल मार्च तक इसकी बिक्री 27 फीसदी गिर गई और टाटा के पूर्व प्रमुख रतन टाटा ने भी माना कि कार के साथ छवि की समस्या है. नए प्रमुख साइरस मिस्त्री ने कहा है कि अब कार पर खास ध्यान दिया जाएगा. इसमें पावर स्टीयरिंग लगाई जाएगी और इंटीरियर भी बेहतर किया जाएगा. मिस्त्री के मुताबिक कार को पेट्रोल के लिहाज से भी किफायती बनाने पर जोर दिया जाएगा. कंपनी जल्द ही गैस से चलने वाली नैनो कार भी बाजार में उतारने वाली है.
भारतीय मीडिया की खबरों के मुताबिक गुजरात में टाटा नैनो की फैक्ट्री में क्षमता से आधा काम हो रहा है. कंपनी ने हाल में अपनी सालाना रिपोर्ट में मुनाफे में कमी का भी खुलासा किया है.
कि जर्मन और अमेरिकी कारों को भी भारत में नुकसान उठाना पड़ रहा है.
मिस्त्री का कहना है कि टाटा को “घरेलू कार बाजार की धीमी गति का खामियाजा उठाना पड़ा है, साथ ही ऊंची कर्ज दर और औद्योगिक क्षेत्र में ठहराव से भी नुकसान हुआ है.”