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 झारखंड में न तो लोकायुक्त और न ही मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष | dharmpath.com

Saturday , 30 November 2024

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झारखंड में न तो लोकायुक्त और न ही मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष

रांची, 31 जुलाई (आईएएनएस)। झारखंड में विपक्षी दलों का कहना है कि राज्य की भाजपा-आजसू सरकार ने लोकायुक्त और राज्य मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष का पद कई महीनों से खाली रखकर हजारों शिकायतकर्ताओं को मुश्किल स्थिति में छोड़ दिया है।

झारखंड प्रदेश कांग्रेस के महासचिव आलोक दूबे ने आईएएनएस से कहा, “सरकार डींग हांकती है कि वह भ्रष्टाचार से लड़ रही है जबकि लोकायुक्त का पद खाली रखे हुए है। यह एक ऐसी सरकार है जो केवल बड़े उद्योगपतियों की सेवा करती है। इसने जनता को खुद का बचाव करने के लिए छोड़ दिया है।”

न्यायमूर्ति अमरेश्वर सहाय राज्य के लोकायुक्त थे। चार महीने पहले उनका कार्यकाल पूरा हो गया। उसके बाद से ही यह पद खाली है। जब तक सहाय पद पर थे, लोग अपनी शिकायतें दर्ज करा पाते थे। अब ऐसा नहीं है।

विपक्षी दलों का आरोप है कि मुख्यमंत्री रघुबर दास की सरकार द्वारा पद खाली रखना जानबूझकर चली गई चाल है ताकि उसके दायरे के भ्रष्टाचार के मामलों की जवाबदेही से बचा जा सके।

विपक्षी दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस हौर झारखंड विकास मोर्चा-प्रजातांत्रिक का कहना है कि सरकार लोकायुक्त की लंबे समय से होती आ रही उपेक्षा समाप्त करने को इच्छुक नहीं है। लोकायुक्त को और अधिकार और आधारभूत सुविधाएं मुहैया कराने की जरूरत है ताकि वह भ्रष्टाचार की शिकायतों पर प्रभावी ढंग से काम कर सके।

राज्य मानवाधिकार आयोग की स्थिति भी ऐसी ही है। आयोग का इस साल जनवरी से ही कोई अध्यक्ष नहीं है। इसके अध्यक्ष नारायण राय का कार्यकाल जनवरी में समाप्त हुआ था। शिकायतों के पंजीकरण की तमाम प्रक्रियाएं और उन पर कार्रवाई पर तभी से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

लोकायुक्त के पास या राज्य मानवाधिकार आयोग के पास या तो लोग अपनी शिकायत ही नहीं दर्ज करा पा रहे हैं या ऐसा महसूस कर रहे हैं कि उनकी शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।

राज्य मानवाधिकार आयोग से की गईं शिकायतें इसलिए भी अग्रसारित नहीं हो सकतीं क्योंकि उसके साथ भेजे जाने वाले पत्र पर अध्यक्ष का हस्ताक्षर नहीं है। ऐसे यहां करीब 650 मामले लंबित पड़े हैं।

जनता का पैसा उस आयोग पर खर्च होता जा रहा है, जो वास्तव में काम ही नहीं कर रहा है। चालू वित्तीय वर्ष में इसके कमचारियों के वेतन पर हर माह करीब 17 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं।

झारखंड में हाल के हफ्तों में मानवाधिकारों के उल्लंघन की कई घटनाएं घटी हैं। यदि राज्य मानवाधिकार आयोग काम कर रहा होता तो उसने उन मामलों का स्वत: संज्ञान ले लिया होता या शिकायतें प्राप्त करता।

पीड़ितों के पास अब ऐसी कोई जगह नहीं बची जहां वे शिकायत लेकर जा सकें।

यही नहीं, राज्य में अल्पसंख्यक आयोग का भी बीते छह माह से कोई अध्यक्ष नहीं है। इस वजह से अल्पसंख्यकों से जुड़े कई मामले लटके हुए हैं।

झारखंड विकास मोर्चा-पी के विधायक प्रदीप यादव ने आईएएनएस से कहा कि रघुबर दास सरकार की इच्छा सत्ता को अपने हाथ में समेटे रहने की है। पंचायतों तक अधिकारों का विकेंद्रीकरण नहीं किया गया है।

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