अनिल सिंह(भोपाल)-मध्य प्रदेश में लगभग 7 करोड़ मतदाता हैं,जिनमे से 40 % मतदाता यानी 2.80 करोड़ इन्टरनेट और सोशल साइट्स का उपयोग करते है,ये वे मतदाता हैं जो अपने कार्य के समय ही दुनिया–देश की ख़बरों को इन्टरनेट,न्यूज़ वेब पोर्टल्स और सोशल साइट्स पर प्राप्त करते और अपने विचार व्यक्त करते हैं , प्रदेश के राजनेता फेसबुक,टिव्टर और मेल को अपना अस्त्र-शस्त्र बना रहे है। तकनीक दक्ष कई राजनेता ने तो चलते फिरते अपने मंसूबे पूरे कर रहा है। कोई भी राजनैतिक दल इस श्रेष्ठि वर्ग को छोडऩा नहीं चाह रहा है। माजरा बस विधानसभा चुनाव जीतकर अपना परचम लहराना है। बदले हालात में गुजरात के गौरव नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय फलक पर छा जाने के बाद का है। प्रदेश के सबसे पहले सायबर तकनीक पसंद राजनेता है अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव दिग्विजयसिंह जो टिविट् कर अपनी बेबाक टिप्पणी देने के लिए हमेशा मौजूद रहते है। फिर मसला राष्ट्रीय हो या फिर प्रादेशिक स्तर का।
कैलाश विजयवर्गीय आईटी मंत्री भी है इसलिए आईटी विशेषज्ञ ताजातरीन अपडेट से इनको ताजा रखते है। एसएमएस से पोलिटिकल जोक्स भेजना इनका प्रिय शगल है। जनता से क्लाउड टेलिफोनी और एसएमएस के माध्यम से जुडऩे वाले प्रदेश के पहले नेता है। देर आए दुरस्त आए मोदी अंदाज को फालों कर रहे है मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने पहले आईडिया फार सीएम की शुरुआत की लेकिन ज्यादा सफल नहीं हो पाए। अब टिव्टर के माध्यम से माहौल बना रहे है।
हालिया सायबर प्रेमी के तौर पर प्रतिपक्ष के नेता अजयसिंह की वेबसाईट की लांचिंग रही है । मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महासचिव मोहन प्रकाश ने इन्हें सरकार के खिलाफ आरोप-पत्र तैयार करने की जवाबदारी सौंपी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी के प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए गोर्की बैरागी सायबर तकनीक का भरपूर इस्तेमाल करते थे।
अब भाजपा में ऐसी ही जिम्मेदारी मीडिया इंचार्ज हितेश बाजपेयी उठा रहे है। बैठक सम्मेलन के नतीजे महत्वपूर्ण टिप्स तत्काल मीडिया के दोस्तों तक पहुंचाने में देर नहीं करते है। इसके बाद भी डैमेज कंट्रोल न कर पाना इनकी परेशानी बन जाती है। कांग्रेस के मीडिया प्रमुख मुकेश नायक इन दिनों इस तकनीक को तेजी से इस्तेमाल करना सीख रहे है। नायक ने अपने आफिस को सायबर तकनीक से सुसज्जित करा दिया है। भाजपा के आईटी प्रकोष्ठ के संयोजक विकास बोन्द्रिया भी तेजी से आईटी तकनीक में माहिर जी-जीन लड़ा देते है। पूरे प्रदेश के ब्लाक अध्यक्ष के 4500 नंबर इकठ्ठे कर रखे है। जिलों में भी आईटी योग्य व्यक्ति की नियुक्ति कर चुके है। शिवराजसिंह हो, तोमर हो या फिर प्रभात झा या कोई बड़ा नेता और उसका कार्यक्रम तेज गति से अपलोड कर देते है। बस संगठन का व्यक्ति इन्हें वीडियो उपलब्ध करा दे।
मध्यप्रदेश जनसंपर्क के अधिकारी वेब पत्रकारिता को ध्वस्त करने की कोशिश में हैं
एक अधिकारी हैं अशोक मनवानी जो मंत्रालय में प्रेस अधिकारी हैं ,इनका मानना है कि वेब पत्रकारों को कैबिनेट की ब्रीफिंग में शामिल नहीं होने देना चाहिए और ये बाकायदा इसके लिए विरोध भी दर्शाते हैं।
हाँ यह अलग मामला है की कुछ पत्रकार जो इनके तय किये मापदंडों में न आने के बाद भी इनकी सहमती से कैबिनेट ब्रीफिंग और विधानसभा कार्यवाही में शरीक होते हैं।उनके लिए महाशय को कोई आपत्ति नहीं है।
विधानसभा की कार्यवाही में शामिल होने में भी भेद भाव
विधानसभा की कार्यवाही के लिए प्रवेश पत्र जारी होते हैं,लेकिन वेब न्यूज़ पोर्टल के पत्रकारों से यहाँ भी दोयम दर्जे का व्यवहार अधिकारी करते हैं,यहाँ भी उनका उत्तर वही है जो अशोक मनवानी का है।इनके अनुसार समाज,प्रदेश,देश के सर्वांगीण विकास में वेब और स्वतंत्र पत्रकारों की कोई भूमिका नहीं है।इसी लिए एक सर्वे अनुसार स्वतन्त्र पत्रकारिता में भारत का स्थान विश्व के पायदान पर 148 वां है ,यह पत्रकारिता की विषम स्थिति की ओर संकेत है।
वेब-पत्रकारों को सुविधाएँ
अन्य सभी सुविधाएँ जो अन्य समूहों के पत्रकारों को प्राप्त हैं जैसे अधिमान्यता,आवासीय पात्रता,विज्ञापन प्राप्ति लेकिन जहाँ मंत्रालय और विधानसभा की बात आती है इनके तेवर अघोषित रूप से बदल जाते हैं।अलगाव वादी सिद्धांत ये अधिकारी ही पैदा कर रहे है।
क्या पत्रकारों में भी भेद है
प्रिंट मीडिया के पत्रकार .इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार ,वेब पोर्टल्स के पत्रकार तथा स्वतंत्र पत्रकार ये केटेगरी है लेकिन पत्रकारिता तो एक ही है ,खबर तो एक ही है मात्र खबर के सम्प्रेषण के तरीके अलग हैं,ख़बरों को एकत्रित करने,उसे समझने,अपनी नजर से विश्लेषित और संप्रेषित करने का अधिकार पत्रकार का है न की अधिकारी तय करेंगे,यदि किसी को नहीं आने देना है तो जनसंपर्क के पास खुद की व्यवस्था है,खबर ,फोटो,वीडिओ स्वयं ही भेज दे क्यों पत्रकारों की भीड़ बढाता है,क्यों बजट देश का फूंका जाता है बात दरअसल यह है की अधिकारीयों में दंभ भर गया है,निरंकुश हो गए हैं अधिकारी वे अपने अन्दर भरी हुई गन्दगी को अपने कार्य क्षेत्र में भी फैलाते हैं, पत्रकारों को इसके विरोध में आवाज उठानी होगी नहीं तो अधिकारी बेडा गर्क कर देंगे,इन्हें आइना दिखाना ही होगा।