(खुसुर-फुसुर)– मप्र विधानसभा का शीत सत्र आरम्भ होते ही पत्रकारों को बाँधने का जो तुगलकी आदेश निकाला गया था वह विरोध होते ही तुरत-फुरत वापस ले लिया गया लेकिन सुबह के समय विधानसभा के सुरक्षाकर्मियों ने जो व्यवहार पत्रकारों और फोटोग्राफरों के साथ किया वह चिंताजनक स्थिति लोकतंत्र के लिए प्रगट करता है.
सुबह विधानसभा परिसर में प्रवेश के समय पत्रकारों एवं फोटोग्राफरों के पर्स तक तलाशे गए.महिला पत्रकारों के पर्स के प्रत्येक खाने की तलाशी ली गयी.हद तो तब हो गयी जब फोटोग्राफरों से पहने हुए मोज़े तक उतरवाए गए.सुरक्षा व्यवस्था का यह आलम था की विपक्षी विधायकों को चुन-चुन कर तलाशी अभियान का हिस्सा बनाया गया.यह सब कवायद किसके इशारे पर की गयी और क्यों की गयी अभी यह कोई जिम्मेदार कहने को तैयार नहीं है.
जनसंपर्क अधिकारी विधानसभा द्वारा जारी किये गए प्रवेश-पत्र को मानने से इनकार कर दिया गया था जब फोटोग्राफरों ने कहा की कौन सा प्रवेश-पत्र मान्य है तो उन्हें मुख्य सुरक्षा अधिकारी के पास जाने को कहा गया लेकिन पत्रकारों ने इसका वरोध जताते हुए कहा की यह आप लोगों का अधिकार क्षेत्र है की किस प्रवेश-पत्र को मानी किया जाय यह आप पता करें.
विधानसभा में इस तरह का बर्ताव कभी देखने में नहीं आया,किसने यह सुझाव दिया था,किसके निर्देश पर सुरक्षा अधिकारीयों ने ऐसा बर्ताव किया अभी इस विषय पर कोई बोलने को तैयार नहीं है लेकिन लोकतंत्र के मंदिर में उसके सहभागियों के साथ दुर्व्यवहार और तालिबानी फरमान चिंताजनक है.भले ही इसे वापस ले लिया गया हो लेकिन यह शुरुआत लोकतंत्र की उस बीमारी को इंगित करता है जिसका यदि इलाज नहीं किया गया तो इसका खामियाजा आने वाली पीढ़ी को भुगतना होगा.