बक्सर.- निस्तब्ध निशा को तोड़ती वे बुदबुदाहट सिहरन पैदा करती है।
आखिर कहां से आती है ये ध्वनि ?
मन पूछता है, कदम ठिठकते हैं,हृदय से ध्वनि आती है शायद मंदिर की दस
महाविद्याएं वार्तालाप में व्यस्त हैं।
मंदिर के गर्भगृह से ऐसी ध्वनि सुनकर एक पल ठिठक जाते हैं पुनः भयवश
आगे बढ़ जाते हैं।
आखिर क्या है इसका रहस्य जो छुपा है बक्सर जिले के डुमरांव के बगलामुखी
के गर्भगृह में।
डुमरांव थाना रोड के सामने लाला टोली रोड स्थित मां भगवती का यह पुराना मंदिर
कौतूहल उत्पन्न करता है।
इस मंदिर में मां जगदम्बा दस महाविद्याओं धूमावती,बग्लामुखी,तारा माता,
छिन्नमस्तिका,उग्रतारा,कमला,मातंगी,त्रिपुरसुंदरी देवी आदि विद्यमान हैं।
इसके साथ ही पंच भैरव, दत्तात्रेय,बटुक,अन्नपूर्णा,काल भैरव,मातंगी भैरवद्ध
इस मंदिर के संरक्षक द्वारपाल हैं।
यह एक पूर्णतः तांत्रिक मंदिर है।
लगभग साढ़े तीन सौ वर्ष पुरातन इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यह
मंदिर शाहाबाद; (अब चार जिले भोजपुर, बक्सर, कैमूर, रोहतासद्ध) का एकमात्र
तंत्र मंदिर है।
यहां निस्तब्ध निशा में मूर्तियों के वार्तालाप करने का भ्रम होता है।
यह भ्रम है या आस्था यह कहा नहीं जा सकता पर इस सत्य से इंकार भी नहीं है कि
ऐसा होता है।
मंदिर के पास से गुजरने वाले हर व्यक्ति इसका प्रमाण है।
बहुत पहले तो मूर्तियों के इस बात से लोगों ने इंकार किया,लेकिन आगे चलकर
जब बात धीरे-धीरे उजागर हुई तो भक्तों ने मंदिर के पुजारी से इस बात की चर्चा की।
इतना सुनना था कि पुजारी जी ने भक्तों की जिज्ञासा को यह कहते हुए शांत कराया
कि ये सच है।
टूटी-फूटी भाषा में रात के बारह बजे के बाद आपस में बात करते आवाज सुनाई देती है।
दो भूजावाली दक्षिणेश्वरी मां का दरबार अति दुर्लभ है।
इस दरबार से आज तक सच्चे मन से मांगी गई मन्नत पूर्ण होती है।
इस मंदिर की एक अलग मान्यता है।
इस मंदिर में नवरात्रि में कभी भी कलश स्थापना नहीं किए जाने का प्रावधान है।
यहां अन्न का नहीं बल्कि मेवा का भोग लगाया जाता है।
माता के दरबार में सावन माह के चतुर्दशी को बहुत बड़ा मेला लगता है।
यहां दूर-दूर से लोग पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं।