भारतीय सरकार ने वन सर्वेक्षण करवाने के बाद एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसमें देश में वन क्षेत्रफल के तैयार किए गए आँकड़े दिखाते हैं कि वर्ष 2010 से 2012 के बीच भारत में वनों का क्षेत्रफल 5800 किलोमीटर बढ़ गया है।
लेकिन प्रकृति संरक्षण कार्यकर्ताओं का कहना है कि भारत की हरितिमा में 0.18 प्रतिशत की यह वृद्धि वनों के बढ़ने की वजह से नहीं हुई है।
वृक्षारोपण आन्दोलन और व्यावसायिक वन लगाने की वजह से यह सुखद एहसास होता है कि भारत में वनक्षेत्र बढ़ता जा रहा है। लेकिन घने प्राकृतिक वन घट रहे हैं और जो वृक्षारोपण हो रहा है, वह उतना प्रभावी नहीं कि घने वनों की कमी की भरपाई कर सके। घने वनक्षेत्रों में इस बीच 2000 वर्ग किलोमीटर की कमी हुई है।
इस सिलसिले में सरकार द्वारा जो रिपोर्ट पेश की गई है, उसमें बताया गया है कि छितरे वन क्षेत्रों की वज़ह से वनक्षेत्रों का कुल क्षेत्रफल बढ़ गया है। इन छितरे वन क्षेत्रों में बस 10 से 40 प्रतिशत इलाके में ही वन हैं। यानी बात फलों के बग़ीचे लगाने तथा सड़क किनारे वृक्षारोपण करने की है।
इस सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, आधे से ज़्यादा जंगलों में नए पेड़ बहुत कम मात्रा में लगाए जाते हैं और देश का 30 प्रतिशत ऐसा इलाका, जो वनक्षेत्र के रूप में दिखाया जाता है, पूरी तरह से वनहीन इलाका है।
भारत के पर्यावरण मण्त्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस सिलसिले में यह आवाह्न किया है कि जनता को देश के वनीकरण के लिए आगे आना चाहिए और जहाँ वन घट रहे हैं वहाँ वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाना चाहिए। भारत में वनों का क़रीब 8 प्रतिशत क्षेत्रफल यानी क़रीब 7 करोड़ 90 लाख हैक्टेयर के क्षेत्र में नए वृक्ष लगाने की ज़रूरत है।