चीन की नदी में फेंके सूअरों की संख्या 14,000 से ज्यादा पहुंच गई है. पिछले दो हफ्तों से शव निकाले जा रही है. संख्या के बढ़ने की आशंका है. पीने के पानी के दूषित होने और बाजार में दूषित मांस के बेचे जाने पर भी उठे सवाल.
बीते हफ्ते पता चला कि शंघाई के पास झेजिआंग प्रांत की हुआंगपु नदी में मरे हुए सूअर तैर रहे हैं. प्राथमिक जांच के बाद कहा गया कि नदी में 2,000 सूअर बहाए गए. अब 14,600 से अधिक शव मिलने की रिपोर्टें आ रही है. स्थानीय अखबार जिंघुआ शिबाओ ने लिखा है कि इनमें से 10,000 तो शंघाई के पास ही मिले, पर बाकी के 4,600 को करीब 100 किलोमीटर दूर से निकाला गया. आठ फार्मों पर जुर्माना लगाया गया है.
स्थानीय मीडिया में चल रही रिपोर्टों के अनुसार जिआशिंग के जुलिन गांव में जनवरी और फरवरी में 18,000 सूअर मारे गए. शंघाई के पशु चिकित्सा विभाग के जिआंग हाओ ने बताया कि इस इलाके में हर साल 70 लाख सूअर पाले जाते हैं. इनकी मृत्यु दर तीन प्रतिशत से भी कम होती है.
“सामान्य संख्या”
शंघाई के लिए यह नदी इसलिए भी अहम है क्योंकि शहर में 20 फीसदी पीने का पानी इसी से आता है. शंघाई की आबादी करीब 2.3 करोड़ है और निवासी दूषित पानी को लेकर चिंतित हैं. सरकार ने आश्वासन दिया है कि पानी दूषित नहीं है और उसकी लगातार जांच हो रही है. पिछले हफ्ते जिआशिंग अखबार ने एक अधिकारी के हवाले से लिखा था कि सूअरों की मौत का कारण समझाना मुश्किल है, ऐसे मामलों में जिस तरह से मौत होती है उसे देखते हुए “यह संख्या सामान्य” है.
लाशों की जांच से एक वायरस का पता चला है. दावा है कि वायरस इंसानों में फैलने वाला नहीं है. अधिकारी इसे महामारी कहने से भी इनकार कर रहे हैं. कृषि मंत्रालय के प्रमुख पशु चिकित्सक यूं कांगजेन ने कहा कि इस साल अधिक सर्दी पड़ने के कारण सूअरों की जान गई. चीन में सूअर का मांस काफी खाया जाता है. लेकिन इस मामले के बाद लोगों में खाने की गुणवत्ता को लेकर भी चिंताएं हैं.
यू कहते है, “यह स्थिति इसलिए पैदा हुई है क्योंकि कुछ फार्म हाउस हैं जो कानून का ठीक से पालन नहीं करते, जिनकी आदतें बुरी हैं, जहां चीजों पर ठीक से नजर नहीं रखी जाती और जो बीमारी का इलाज करने की हालत में भी नहीं हैं.”
एक अन्य मामले में 46 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इन लोगों ने 1,000 बीमार सूअरों के मांस को बाजार में बेचा. खाने पीने की चीजों में मिलावट को लेकर चीन की खराब छवि है. 2008 में बच्चों के दूध में मिलावट के कारण छह बच्चों की जान गई और तीन लाख बीमार हुए