शिमला, 14 अप्रैल (आईएएनएस)। हिमाचल प्रदेश के 20 फीसदी सरकारी स्कूलों में 2014-15 की परीक्षा में 10वीं कक्षा के आधे और 12वीं कक्षा के 14 प्रतिशत छात्र फेल हो गए। यह खुलासा ऑडिट रिपोर्ट से हुआ है।
शिमला, 14 अप्रैल (आईएएनएस)। हिमाचल प्रदेश के 20 फीसदी सरकारी स्कूलों में 2014-15 की परीक्षा में 10वीं कक्षा के आधे और 12वीं कक्षा के 14 प्रतिशत छात्र फेल हो गए। यह खुलासा ऑडिट रिपोर्ट से हुआ है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट के अनुसार, 2011-15 के दौरान 10वीं कक्षा के परिणाम काफी खराब रहे। राज्य के कुल 2,230 सरकारी स्कूलों में दो से 16 स्कूलों में एक भी छात्र पास नहीं कर सके जबकि 134 से 232 स्कूलों में 25 फीसदी से कम छात्र उत्तीर्ण हुए।
इसी तरह 12वीं कक्षा में 2014-15 की परीक्षा में कुल 1375 सरकारी स्कूलों में 10 स्कूलों में एक भी छात्र उत्तीर्ण नहीं हुए, जबकि 48 स्कूलों में 25 फीसदी से भी कम छात्र पास हुए।
रिपोर्ट के अनुसार, 463 स्कूलों में 10वीं की परीक्षा में 26 से 50 प्रतिशत छात्र ही पास हुए, जबकि इस अवधि में 204 स्कूलों में 12वीं की परीक्षा में उत्तीर्ण छात्रों का प्रतिशत 26 से 50 के बीच ही था।
गत सप्ताह सरकारी लेखा परीक्षक ने विधानसभा में रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में 2009 में शुरूकिए गए राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) के क्रियान्वयन में खामियों का भी जिक्र है।
रिपोर्ट के अनुसार 2014-15 में आरएमएसए के तहत राज्य को 348.47 करोड़ मिले थे, लेकिन शिक्षा विभाग 218.67 करोड़ ही खर्च कर पाया। यानी 129.80 करोड़ रुपये (37 प्रतिशत) का उपयोग ही नहीं हो पाया।
इतना ही नहीं, रिपोर्ट में राज्य के स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी का भी जिक्र किया गया है ।
2014-15 में राज्य के 2230 माध्यमिक और 1375 उच्च माध्यमिक स्कूलों में क्रमश: 14 और 39 प्रतिशत शिक्षकों की कमी थी।
स्कूलों के परिणामों के आकलन, खराब परिणामों के कारणों का पता लगाने के लिए जनवरी, 2010 में सरकार ने एक नीति बनाई थी।
इस नीति के तहत जिन स्कूलों के परीक्षा परिणाम 25 फीसदी से कम होते, उनके शिक्षकों को दंडित किया जाना था। ऐसे स्कूलों के शिक्षकों की वार्षिक गोपनीय रपट में प्रतिकूल टिप्पणी के साथ भावी वेतन वृद्धि रोकने का प्रावधान था।
सीएजी ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि विभाग ने 25 फीसदी से कम परिणाम वाले स्कूलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
सीएजी ने कहा कि नौवीं कक्षा से 12वीं कक्षा तक (14 से 18 साल) में बच्चों के नामांकन की संख्या राज्य की जनसंख्या के अनुरूप नहीं है।
यह दर्शाता है कि आरएमएसए के निर्देशों के तहत स्कूलों के जरिए माध्यमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण का इच्छित परिणाम नहीं मिला है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2010 से 2015 तक स्कूल छोड़ने वाले लड़के और लड़कियों का कुल प्रतिशत 1.66 से 9.11 के बीच था।
हाल में समाप्त बजट सत्र के दौरान विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने राज्य में शिक्षा के स्तर में तेजी से गिरावट और स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि पर चिंता जताई थी।
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा है कि शिक्षकों के खाली पदों को भरना उनकी पहली प्राथमिकता है।
उन्होंने आईएएनएस से कहा, “मेरी सरकार ने 2013-14 से ही शिक्षा विभाग में खाली पदों को भरना शुरू कर दिया है जो अब भी जारी है। इस वित्तीय वर्ष में 5000 से अधिक शिक्षकों की भर्ती की जाएगी।”
मुख्यमंत्री ने इस साल मार्च में शिक्षण संस्थानों के निरीक्षण और शिक्षा में सुधार के लिए ब्रिटिश व्यवस्था को पुनर्जीवित करते हुए शिक्षा निरीक्षणालय का गठन किया।
इससे राज्य के सभी स्कूलों में कक्षा एक से गणित, हिन्दी और अंग्रेजी की पढ़ाई सुनिश्चित की जाएगी।
इसके अलावा इस बार बजट में मुख्यमंत्री ने एक योजना की घोषणा की जिसके तहत प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के दो उच्च माध्यमिक स्कूलों में उत्कृष्ट आधारभूत संरचनाओं और पढ़ाई की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।