स्विट्जरलैंड में महाप्रयोग के दौरान ब्रह्मांड का सबसे छोटा कण खोजने वाले दो वैज्ञानिकों को इस साल भौतिक शास्त्र के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है. इस कण ही खोज पिछले साल हुई है.
ब्रिटेन के 80 साल के वैज्ञानिक पीटर हिग्स और बेल्जियम के फ्रांसोआ आंगलेया को भौतिकी के लिए 2013 का नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा. उन्होंने इस अति सूक्ष्म कण हिग्स बोसोन के अस्तित्व के बारे में 1964 में ही भविष्यवाणी की थी. नोबेल पुरस्कार समिति ने कहा है कि इस भविष्यवाणी के बाद यह बताना संभव हुआ कि दिव्य कण का भी द्रव्यमान होता है.
दोनों वैज्ञानिकों को 80 लाख क्रोनर की इनामी राशि दी जाएगी. पिछले साल जुलाई में दुनिया के सबसे बड़े प्रयोग के बाद स्विट्जरलैंड की सर्न प्रयोगशाला ने इस सूक्ष्म कण के अस्तित्व का एलान किया था. इसके बाद से ही इन दोनों को नोबेल पुरस्कार का दावेदार बताया जाने लगा. पुरस्कार की घोषणा करते हुए रॉयल स्वीडिश अकादमी ऑफ साइंसेज ने एक बयान में कहा, “पुरस्कृत सिद्धांत पार्टिकल फीजिक्स के मानक का केंद्रीय हिस्सा है, जो बताता है कि हमारे ब्रह्मांड का निर्माण कैसे हुआ.”
हिग्स कण का सिद्धांत 1964 में एडिनबरा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रोफेसर पीटर हिग्स ने अपनी टीम के पांच सदस्यों के साथ दिया. प्रोफेसर हिग्स ने तब कहा था कि एक दिन विज्ञान हिग्स कणों तक पहुंच जाएगा. उन्होंने इस दिन के बारे में कभी कहा था, “मुझे अपने जीवन में ऐसा होने की उम्मीद नहीं है और मैं अपने परिवार वालों से कहूंगा कि वह फ्रिज में कुछ शैंपेन रख दें.” एक न एक दिन विज्ञान यहां तक पहुंच ही जाएगा, तब फ्रिज वाली शैंपेन निकाल कर जश्न मनाया जाएगा. बोसोन कणों का सिद्धांत भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस ने खोजा. बोस के ही नाम पर इन कणों को बोसोन कहा जाता है.
हालांकि हिग्स के जीते जी न सिर्फ इस कण के अस्तित्व का पता चला, बल्कि उन्हें इस विशाल खोज के लिए नोबेल पुरस्कार भी दिया जा रहा है. यानी उनके लिए फ्रिज से शैंपेन निकालने का वक्त आ गया है. इस साल नोबेल पुरस्कारों की कड़ी में यह दूसरा पुरस्कार है. सोमवार को चिकित्सा का नोबेल तीन वैज्ञानिकों को दिया गया है. भौतिकी का पहला नोबेल पुरस्कार 1901 में एक्सरे की खोज करने वाले जर्मनी के विल्हेल्म कोनराड रोएंटगेन को दिया गया था.
एमजे/एजेए (रॉयटर्स)