लुधियाना, जागरण संवाददाता। रामलीला मैदान दरेसी में जारी छठे विशाल संत सम्मेलन और श्री शक्ति महायज्ञ में स्वामी विवेक भारती जी महाराज की अध्यक्षता में संत-महात्माओं ने अपने प्रवचनों में दुख-सुख, लाभ-हानि, उतार-चढ़ाव, संयोग-वियोग पर प्रकाश डाला। स्वामी मुक्तानंद जी ने कहा कि मनुष्य के जीवन में ऐसा कभी हो ही नहीं सकता कि उसे हर पल लाभ ही हो। कभी कभार हानि भी उठानी पड़ती है। इस हानि में मनुष्य अपना आपा खो बैठता है और तनाव में रहते हुए ऐसे काम कर जाता है, जो समाज में निंदनीय होते हैं।
स्वामी महिंद्रानंद जी ने कहा कि संयोग और वियोग एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। संयोग से रिश्ते जुड़ जाते हैं और वियोग से वर्षो पुराने बने-बनाए रिश्ते टूट जाते हैं। साध्वी ज्योति गिरि ने कृष्ण लीलाओं का वर्णन किया।
साध्वी प्रियंका भारती ने कहा कि जैसे-जैसे सूर्य आकाश में उभरता जाता है, वैसे-वैसे इस संसार में रोशनी होती जाती है। इसी तरह जैसे-जैसे मनुष्य अच्छे कर्म करता है, उसका नाम इस संसार में फैलता जाता है।
पुरुषार्थ से ही भाग्य बनता है: शून्य प्रभु मनुष्य संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। बुद्धिशाली जीव होकर भी यदि मनुष्य अपने जीवन का अंत करे तो यह परमात्मा का अपमान है। अक्सर लोग जीवन में आने वाले दुखों से घबरा कर मरने की सोचने लगते हैं। ईश्वर ने अगर रोटी, कपड़ा और सर छिपाने की जगह दी है, तो व्यक्ति अपने जीवन को आनंद से बिता सकता है। मनुष्य चाहे तो अपने भाग्य को बदल सकता है। ऐसा कहना कि जो किस्मत में लिखा है, वही मिलना है या समय से पहले किस्मत से ज्यादा किसी को नहीं मिलता, गलत है। पुरुषार्थ से ही भाग्य बनता है।