धर्मपथ-बसरा के एक बड़े ही गरीब परिवार में संत राबिया का जन्म हुआ था.उनकी तीन बड़ी बहने थीं.713 ई.में उनका जन्म बसरा,ईराक में हुआ और 801 ई. में इनकी मृत्यु जेरुसलम में हुई.इनके माता-पिता की मृत्यु के बाद इन्हें किसी ने एक संपन्न व्यक्ति के हाथों में बेच दिया.वह व्यक्ति क्रूर था और राबिया के बुरी तरह काम लेता था और मारता-पीटता भी था.एक दिन अँधेरी रात में राबिया वहां से भाग निकली.अँधेरी रात और रास्ता बीहड़ था.राबिया ठोकर खा कर गिर पड़ी और उसका दाहिना हाथ टूट गया.उस दारुण दशा में राबिया ने धरती पर मस्तक टेककर प्रार्थना की-हे प्रभु,मुझे अपनी दुर्दशा पर शोक नहीं है.मैं तुझे क्यों भूलूँ -तू मुझ पर प्रसन्न रहे,बस यही एक प्रार्थना है.
कुरआन पढने और एकांत में साधना करने का राबिया को व्यसन सा था.आधी रात को जब सब सो जाते थे,राबिया प्रभु की प्रार्थना करती रहती थी.जिस धनी के घर राबिया सेवा करती थी वह राबिया को जान गया की यह पवित्र आत्मा है उसने राबिया से माफ़ी मांगी और राबिया को मुक्त किया.
महात्मा हुसैन उन दिनों बसरा में थे.राबिया उनके सत्संग में जाया करती थी.और धर्म-चर्चा में भाग लेती थी.राबिया ने अपनी आयु का शेष भाग मक्का में ही बिताया.
एक बार राबिया बीमार हो गयी,उसे देखने अंदुल उमर और सूफी संत आये,और राबिया से कहा की प्रभु से अपनी सेहत के लिए प्रार्थना करे,राबिया ने मना कर दिया की क्या इस बीमारी में प्रभु की इच्छा नहीं है क्या ?
राबिया ने प्रार्थना की,प्रभु यदि मैं नरक से डरती हूँ तो मुझे नरक में जला देना,यदि मैं स्वर्ग के लोभ से तेरी सेवा करती हूँ तो वह स्वर्ग मेरे लिए हराम है.किन्तु यदि मैं तेरी ही प्राप्ति के लिए तेरी पूजा करती हूँ तो तू अपने आपार सुन्दर रूप से मुझे वंचित न रखना.