अनिल सिंह(भोपाल)– मध्यप्रदेश पुलिस भी अजब है गजब है उसने दो अधिकारीयों को जो अन्यायपूर्ण कार्य EOW में कर आये उन्हें पारितोषिक स्वरुप मुख्यधारा से जोड़ दिया।अभी तो हम आपके समक्ष एक उदहारण प्रस्तुत कर रहे हैं यदि गंभीरता से जांच की जाय तो इनके हिस्से कई कर्तव्य सम्बन्धी पाप हैं।
ये दो अधिकारी हैं वर्तमान में पुलिस अधीक्षक भोपाल (दक्षिण)अरविन्द सक्सेना और महिला थाना प्रमुख रेनू मुराब।इन्होने जो कार्य EOW में रहते किया वह कई जिंदगियों के साथ खिलवाड़ हुआ।भावनात्मक रूप से तथा अधिकारीयों पर विश्वास करके राष्ट्र के नागरिकों का जो विश्वास इन्होने तोडा ,अपने पद की जिम्मेदारी से जो गद्दारी की वह माफ़ी योग्य नहीं है।
क्या मामला था ?
भोपाल में स्थित सहयोगी गृह निर्माण सह . सहकारी संस्था मर्यादित के विरुद्ध शिकायत सदस्यों ने EOW में की,शिकायत दर्ज करने के पश्चात जांच अधिकारी रेनू मुराब को नियुक्त किया गया,उन्होंने शिकायतकर्ता सदस्यों को नोटिस भेज कर तलब किया और उनके बयान दर्ज किये ,वहीँ उन्होंने संस्था के अध्यक्ष को भी तलब किया लेकिन वह कभी वकील कभी अपने बेटे को भेजता रहा।बार- बार नोटिस भेजने और फ़ोन पर जांच अधिकारी रेनू मुराब द्वारा संपर्क करने पर भी वह उपस्थित नहीं हुआ।
दबाव डलवाया गया अधिकारीयों पर
संस्था अध्यक्ष द्वारा अपने राजनैतिक और प्रशासनिक रसूख का इस्तेमाल करते हुए तत्कालीन पुलिस अधीक्षक EOW अरविन्द सक्सेना पर दबाव डलवाया जिसके तहत अरविन्द सक्सेना ने मामले पर खात्मा लगाने हेतू मौखिक निर्देश दे दिए और मामले की लीपापोती करते हुए मामले को ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया।
पुनः अरविन्द सक्सेना से संपर्क किया गया
सदस्यों ने न्याय की आस में जब रेणू मुराब से संपर्क किया तो उन्होंने पुलिस अधीक्षक से संपर्क करने को कहा ,जब पुलिस अधीक्षक से मिले तब उन्होंने कहा की मेरे नाम से पुनः आवेदन दे दीजिये उस मामले पर तो खात्मा लग गया है ,मैं फिर से जांच करवाता हूँ। पुनः आवेदन देने पर उन्होंने न तो उसकी कोई रसीद दी अपितु आश्वासन दिया की मुझ पर भरोसा रखिये मैं न्याय करूंगा।
कैसा न्याय किया अरविन्द सक्सेना ने
अपने फर्ज से दगाबाजी करते हुए इस अन्यायप्रिय,चापलूस अधिकारी ने कोई भी कार्यवाही नहीं की।पता चला था की उसकी नयी पोस्टिंग का समय था अतः उसने इतने लोगों के साथ अन्याय करते हुए अपने फायदे को देखा और पुलिस अधीक्षक भोपाल (दक्षिण) का पद हथियाने में कामयाब हो गया।वहीँ समयकाल से रेणू मुराब को भी मलाईदार पद से उपकृत करवा दिया।
कैसे इनकी कार्यप्रणाली के बारे खुलासा हुआ
जब इन्होने लीपा-पोती कर दी तो इसकी तुलना ऐसे हुई की सहकारिता विभाग की तरफ से भी एक आवेदन जिला पुलिस को दिया गया था और जिला पुलिस ने जांच करते हुए भोपाल के थाना हबीबगंज में दिनांक 28-06-2012 को FIR क्रमांक 361 धारा 406/420 एवं अन्य धाराओं में दर्ज की गयी।
क्या न्याय के भारत में दो मापदंड हैं
अब सवाल यह उठता है की ऐसा क्यों हुआ,क्या अधिकारी अयोग्य थे EOW के,क्या जिला पुलिस की पढाई अलग से होती है ,क्या अरविन्द सक्सेना और रेनू मुराब जैसे अधिकारीयों से न्याय की किसी भी रूप में आशा की जा सकती है,क्या ऐसे अधिकारी पद पर बैठाने या सेवा में रहने योग्य हैं ,यदि इन्हें सबक नहीं सिखाया गया तो क्या आने वाले अधिकारीयों पर इनकी कार्य प्रणाली को लेकर गलत सन्देश नहीं जायेगा।
जिन पदों पर ये रहे उस कार्यकाल की जांच होनी चाहिए
ये अधिकारी जहाँ भी रहे वहां के कार्यकाल की जांच होनी चाहीये ताकि इन्हें भी सबक मिले और आगे भी अधिकारी सतर्क रहें अपने फर्ज के प्रति क्या यह मामला उजागर होते ही इन्हें तत्काल इनके वर्तमान पदों से हटा देना उचित नहीं होगा।
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