संयुक्त राष्ट्र, 20 जनवरी (आईएएनएस)। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रकृति को ‘अप्रतिनिधिक’ करार देते हुए कहा कि इस वैश्विक संस्था का मौजूदा स्वरूप राजनीतिक समावेशीकरण पर राष्ट्रों को परामर्श देने के लिए वैध नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र, 20 जनवरी (आईएएनएस)। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रकृति को ‘अप्रतिनिधिक’ करार देते हुए कहा कि इस वैश्विक संस्था का मौजूदा स्वरूप राजनीतिक समावेशीकरण पर राष्ट्रों को परामर्श देने के लिए वैध नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई उप प्रतिनिधि एस. बिश्नोई ने कहा, “अनिवार्य राजनीतिक समावेशीकरण के सुझाव सुरक्षा परिषद की ओर से प्रभावित लोगों पर थोपे नहीं जाने चाहिए। हालांकि सुरक्षा परिषद को अपने सदस्यों के बहुमत से कोई भी कार्य करने का अधिकार है, लेकिन इसकी ‘अप्रतिनिधिक’ प्रकृति को देखते हुए राजनीतिक समावेशीकरण पर विभिन्न देशों को दिए जाने वाले इसके परामर्श वैध नहीं जान पड़ते।”
‘अंतर्राष्ट्री शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने के लिए समेकित विकास’ विषय पर आहूत सुरक्षा परिषद के सत्र में बिश्नोई ने इस वैश्विक वैश्विक संस्था में सुधार पर जोर देते हुए इसकी मौजूदा प्रकृति को लेकर सवाल उठाए।
सुरक्षा परिषद में पांच स्थाई और 10 अस्थाई सदस्य हैं। सभी स्थाई सदस्यों को वीटो का अधिकार प्राप्त है। स्थाई सदस्य वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र के गठन के समय से ही इसके सदस्य हैं, जब संयुक्त राष्ट्र के मौजूदा सदस्यों में से अधिकांश ब्रिटेन या फ्रांस के उपनिवेश थे। उस समय संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों की संख्या भी केवल 51 थी, जो अब बढ़कर 193 हो गई है।
ऐसे में भारत सहित कई अन्य देश इसमें सुधार व विस्तार की मांग कर रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि पांच स्थाई सदस्यों में से तीन ब्रिटेन, फ्रांस तथा रूस यूरोप से हैं, जबकि तीन ब्रिटेन, फ्रांस औ अमेरिका नाटो के सदस्य हैं। इसके स्थाई सदस्यों में न तो लैटिन अमेरिका और न ही अफ्रीका से सदस्यों को शामिल किया गया है। यहां तक कि अर्थव्यवस्था की दृष्टि से मजबूत राष्ट्रों जापान एवं जर्मनी और जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया के दूसरे बड़े देश भारत को भी इसमें जगह नहीं मिली है, जो संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक दल में सर्वाधिक योगदान करता है।
भारत ने शांति अभियानों में विभिन्न सदस्य राष्ट्रों को शामिल किए जाने के मुद्दे पर भी उनसे बेहतर तरीके से विचार-विमर्श करने में विफल रहने का आरोप सुरक्षा परिषद पर लगाया। साथ ही इसकी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता के अभाव की बात भी कही।
बिश्नोई ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा तीन बातों- शांति एवं सुरक्षा, विकास और मानवाधिकार पर आधारित है और इन तीनों कार्यो के लिए संयुक्त राष्ट्र के अलग-अलग अंग हैं। जहां तक सतत विकास की बात है तो यह आर्थिक एवं सामाजिक परिषद का मामला है। सुरक्षा परिषद को उसके क्षेत्राधिकार में अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।
बिश्नोई ने दुनिया के विभिन्न देशों में संघर्ष के मद्देनजर वहां होने वाले अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप के प्रति भी आगाह किया और कहा कि ऐसा अक्सर जमीनी हकीकत को समझे बगैर किया जाता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।