नई दिल्ली, 30 अप्रैल (आईएएनएस)। देश के करोड़ों मरीजों को बेहतर उपचार उपलब्ध कराने के लिए जल्द ही नई आयुर्वेदिक दवाएं मिल सकेंगी। केंद्रीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने 36 प्रयोगशालाओं में आयुर्वेद के फामूर्लो से नई दवाएं खोजने का फैसला लिया है। इसके लिए सीएसआईआर ने केंद्रीय आयुष मंत्रालय के साथ करार किया है। दोनों विभागों ने उम्मीद जताई है कि इससे आने वाले समय में देश में लाइलाज बीमारियों की नई दवाओं की खोज का रास्ता साफ होगा।
सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ. शेखर सी. मांडे का कहना है कि सीएसआईआर ने पूर्व में आयुर्वेद से जुड़े कई अहम अध्ययन किए हैं। एक अध्ययन में इस बात की पुष्टि हुई है कि मनुष्य की जेनेटिक संरचना की प्रकृति अलग-अलग होती है। इसे आयुर्वेद के वात, कफ और पित्त प्रकृति के अनुरूप पाया गया है। यानी तीनों प्रकृतियों की जेनेटिक संरचना के लोगों के लिए अलग-अलग दवाएं होनी चाहिए।
इस शोध में प्रकृति के आधार पर भी दवाएं विकसित करने की दिशा में कार्य किया जाएगा। आयुष मंत्रालय से करार होने के बाद परंपरागत चिकित्सा ज्ञान से नई दवाओं की खोज होगी। साथ ही कुछ फामूर्लों को खाद्य पदार्थ के रूप में पेश किया जाएगा, जिनसे लोगों का बीमारियों से बचाव हो सके।
सीएसआईआर पहले ही बड़े पैमाने पर पौधों से निर्मित प्राकृतिक दवाओं पर गहन अनुसंधान गतिविधियों में शामिल हो चुका है। इसी के तहत दुनिया के कई देशों में तेजी से बढ़ते मधुमेह रोग के लिए बड़े पैमाने पर सीएसआईआर-एनबीआरआई और सीएसआईआर सीमैप द्वारा विकसित किया गया है।
जानकारी के अनुसार, बीजीआर-34 एक वैज्ञानिक रूप से विकसित दवा जो विभिन्न चिकित्सकीय परीक्षणों को पूरा कर बनाई गई है और मधुमेह को नियंत्रित करने में अत्यंत लाभकारी है।
आयुष मंत्रालय के सचिव डॉ. राजेश कोटेचा का कहना है कि हाल ही में आयुर्वेद को लेकर डिजिटल लाइब्रेरी विकसित की जा चुकी है, जिसमें आयुर्वेद के सभी फामूर्लो को कई विदेशी भाषाओं में लिपिबद्ध किया गया है। इससे आयुर्वेद के नुस्खों पर विदेशों में होने वाले पेटेंट पर रोक लग गई है। लेकिन अब इन्हीं फामूर्लों को खंगालकर सीएसआईआर नई दवा विकसित करेगा।