नई दिल्लीः केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) को चेताते हुए उन्हें आरटीआई अधिनियम का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने को कहा है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य सूचना आयुक्त यशोवर्धन कुमार सिन्हा ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के उपसचिव और सीपीआईओ प्रवीण कुमार यादव को सचेत करते हुए 19 अप्रैल को अपने आदेश में उन्हें भविष्य में आरटीआई एक्ट के प्रावधानों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने को कहा.
यह आदेश इंडियन एक्सप्रेस द्वारा दायर शिकायत के बाद आया है, जब एक आवेदन में 28 मार्च 2020 से विभिन्न विभागों, संस्थानों, पीएसयू और अन्य संगठनों द्वारा पीएम केयर्स फंड में किए गए योगदान के साथ सरकारी कर्मचारियों एवं अन्य प्रमुखों के वेतन से भी फंड में किए गए योगदान का ब्योरा मांगा गया था, जिसका गृह मंत्रालय ने कोई जवाब नहीं दिया.
सीआईसी ने अपने आदेश में कहा, ‘सुनवाई के दौरान प्रतिवादी (प्रवीण कुमार यादव) ने बताया कि जवाब इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि उन्हें लगा कि पीएम केयर्स फंड आरटीआई अधिनियम 2005 के दायरे में नहीं आता. आयोग को यह तर्क अस्वीकार्य लगा क्योंकि आरटीआई एक्ट के तहत कुछ जवाब दिए जाने चाहिए.’
इंडियन एक्सप्रेस द्वारा ही दायर शिकायत पर एक अलग आदेश में सूचना आयुक्त अमिता पांडव ने सीआईसी रजिस्ट्री को दुर्भावनापूर्ण मंशा से सूचना देने से इनकार करने के लिए सीपीआईओ और उत्तराखंड की एचएन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी के निदेशक को कारण बताओ नोटिस जारी करने का निर्देश दिया.
इस सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने भी आरटीआई के तहत पीएम केयर्स फंड में किए गए योगदान का कोई ब्योरा मुहैया नहीं कराया था.
मंगलवार को मामले पर हुई सुनवाई के बाद पांडव ने अपने आदेश में कहा, ‘आयोग बेंच की रजिस्ट्री को यह निर्देश देना उचित मानता है कि आरटीआई एक्ट के प्रावधानों का पालन करने में असफल रहने पर आरटीआई एक्ट की धारा 20(1) और 20(2) के तहत वित्त अधिकारी और सीपीआईओ डॉ. एके मोहंती और एचएन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी के निदेशक डॉ. आरसी सुंदरयाल के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से कार्रवाई क्यों नहीं शुरू की जाए?’
पांडव ने आदेश में कहा, ‘आयोग ने प्रतिवादी द्वारा उसके समक्ष बिना किसी तैयारी के पेश होने और मामले के तथ्यों से अनभिज्ञ होने को लेकर भी गंभीर नाराजगी जताई.’
आदेश में कहा गया, ‘आयोग ने पाया है कि प्रतिवादी (पब्लिक अथॉरिटी) ने फोरम की शुचिता की पूरी तरह से अवहेलना की और उसके प्रति उदासीनता दिखाई, जिससे मामले में कार्यवाही प्रभावित हुई.’
आदेश में कहा गया, ‘पब्लिक अथॉरिटी ने आरटीआई आवेदन का कोई जवाब नहीं दिया. उनका यह व्यवहार आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों का घोर उल्लंघन है. इससे यह संदेह भी पैदा होता है कि सूचना मुहैया कराए जाने से इनकार दुर्भावनापूर्ण मंशा से किया गया.’