मुस्लिम बहुल देश तुर्की में यह आज भी बहुत विवाद का विषय है कि महिलाएं सिर ढकें या नहीं. 1923 में सख्त धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों का प्रभाव देश पर लागू हुआ. हालांकि सार्वजनिक रूप से धार्मिक भावना के प्रदर्शन की इच्छा हाल के वर्षों में लोगों के अंदर जगी है. सरकारी संस्थानों में सिर ढक कर जाने पर लगी पाबंदी में छूट प्रधानमंत्री ने लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए शुरू किए सुधार कार्यक्रम के तहत दी है. यह कार्यक्रम इसी साल सितंबर में शुरू किए गए. हालांकि जज, अभियोजन, सेना और सुरक्षा अधिकारियों के लिए यह पाबंदी अभी भी कायम है.
सिर ढक कर जाने वाली चारों सांसद सेवदे बेयाजीत काकर, गुलाय समानाची, नुर्कान दालबुदाक और गोनुल बेकिन साकुलुबे, एर्दोआन की जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी यानी एकेपी की सदस्य हैं. इस्लामी जड़ों वाली इस राजनीतिक पार्टी की करीब 7.4 करोड़ की आबादी वाले देश में जबर्दस्त पकड़ है. एकेपी के सुधार कार्यक्रम की तुर्की के बहुत से लोग आलोचना कर रहे हैं. उन्हें डर है कि इससे इस्लाम का आधिकारिक स्तर पर उदय होगा. हालांकि प्रमुख विपक्षी पार्टी सीएचपी ने चारों सांसदों की हरकत पर प्रतिक्रिया न देने का फैसला किया है. विपक्षी दल के कुछ सदस्य सत्ताधारी पार्टी पर राजनीतिक फायदे के लिए इस मुद्दे का इस्तेमाल करने के आरोप लगा रहे हैं. सीएचपी का गठन तुर्की के संस्थापक माने जाने वाले मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने किया था और 1920 में सिर ढकने पर पाबंदी भी उन्होंने ही लगाई थी. गुरुवार को धर्मनिरपेक्षों की तुलनात्मक रूप से ठंढी प्रतिक्रिया से कुछ लोगों को थोड़ी हैरानी भी हुई है. इससे पहले इस तरह की घटनाओं पर खासा बवाल मचा था.
1999 में नई सांसद चुनी गईं मरने कावाकी ने सिर ढक कर शपथ लेने की कोशिश की थी. उस वक्त के वामपंथी रुझान वाले प्रधानमंत्री बुलेंट एचेवित ने तब सांसदों से कहा, “इस महिला को उसकी जगह पहुंचा दो.” इसके बाद वहां मौजूद सांसद “बाहर जाओ” के नारे लगाने लगे और कावाकी इमारत से बाहर निकल गईं. 2001 में कावाकी ने अपनी सीट गंवा दी.
एकेपी के सांसद मानते हैं कि सिर ढकने पर लगी रोक नागरिक अधिकार का मुद्दा है जिसने धार्मिक महिलाओं को तुर्की की राजनीति में आने से रोक रखा है. सत्ताधारी पार्टी के सदस्य ओजनुर कालिक ने कहा, “मैंने हमेशा कहा है कि हमने महिलाओं और पुरुषों के बीच बराबरी की अनदेखी की है, लेकिन आज मेरा ख्याल है कि कह सकते हैं कि हमने यह समस्या हल कर ली है.”
मुस्लिम बहुलता वाले ईरान में महिलाओँ को सार्वजनिक जगहों पर अपना सिर ढक कर रखना होता है. उधर फ्रांस 2011पहला ऐसा देश बन गया जिसने सार्वजनिक रूप से चेहरा ढकने पर रोक लगा दी. इस कदम का मुस्लिमों ने काफी विरोध किया और कहा कि इसके जरिए उनके समुदाय को भेदभाव का निशाना बनाया जा रहा है.fromdw.de