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 साल में एक बार खुलता है आलोर मंदिर का पट | dharmpath.com

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साल में एक बार खुलता है आलोर मंदिर का पट

September 22, 2015 7:45 pm by: Category: धर्म-अध्यात्म Comments Off on साल में एक बार खुलता है आलोर मंदिर का पट A+ / A-

alorरायपुर/जगदलपुर, 22 सितम्बर (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ में आलोर, फरसगांव स्थित एक ऐसा दरबार है, जहां का दरवाजा साल में एक ही बार खुलता है। लिंगेश्वरी माता के मंदिर का पट खुलते ही पांच व्यक्ति रेत पर अंकित निशान देखकर भविष्य में घटने वाली घटनाओं की जानकारी देते हैं। रेत पर यदि बिल्ली के पंजे के निशान हों तो अकाल और घोड़े के खुर के चिह्न् हो तो उसे युद्ध या कलह का प्रतीक माना जाता है।

पीढ़ियों से चली आ रही इस विशेष परंपरा और लोकमान्यता के कारण भाद्रपद माह में एक दिन शिवलिंग की पूजा होती है। लिंगेश्वरी माता का द्वार साल में एक बार ही खुलता है। बड़ी संख्या में नि:संतान दंपति यहां संतान की कामना लेकर आते हैं। उनकी मन्नत पूरी होती है। इस साल 23 सितम्बर को इस मंदिर का द्वार खुलेगा।

यह मंदिर कोंडागांव जिले के विकासखंड मुख्यालय फरसगांव से लगभग नौ किलोमीटर दूर पश्चिम में बड़ेडोंगर मार्ग पर गांव आलोर स्थित है। गांव से लगभग दो किलोमीटर दूर पश्चिमोत्तर में एक पहाड़ी है, जिसे लिंगाई माता के नाम से जाना जाता है। इस छोटी-सी पहाड़ी के ऊपर एक विस्तृत फैला हुआ चट्टान है। चट्टान के ऊपर एक विशाल पत्थर है।

बाहर से अन्य पत्थर की तरह सामान्य दिखने वाला यह पत्थर अंदर से स्तूपनुमा है। इस पत्थर की संरचना को भीतर से देखने पर ऐसा लगता है, मानो कोई विशाल पत्थर को कटोरानुमा तराशकर चट्टान के ऊपर उलट दिया गया हो। इस मंदिर की दक्षिण दिशा में छोटी-सी सुरंग है, जो इस गुफा का प्रवेश द्वार है। प्रवेश द्वार इतना छोटा है कि बैठकर या लेटकर ही यहां प्रवेश किया जाता है। अंदर इतनी जगह है कि लगभग 25 से 30 आदमी आराम से बैठ सकते हैं।

गुफा के अंदर चट्टान के बीचो-बीच प्राकृतिक शिवलिंग है, जिसकी लंबाई लगभग दो या ढाई फुट होगी। प्रत्यक्षदर्शियों का मानना है कि पहले इसकी ऊंचाई बहुत कम थी। बस्तर का यह शिवलिंग गुफा गुप्त है। वर्षभर में दरवाजा एक दिन ही खुलता है, बाकी दिन ढका रहता है। इसे शिव और शक्ति का समन्वित नाम दिया गया है लिंगाई माता।

प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के बाद आने वाले बुधवार को इस प्राकृतिक देवालय को खोल दिया जाता है। दिनभर श्रद्धालु अाते रहते हैं, दर्शन और पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद पत्थर टिकाकर दरवाजा बंद कर दिया जाता है।

कहा जाता है यहां ज्यादातर नि:संतान दंपति संतान की कामना से आते हैं। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति नियमानुसार खीरा चढ़ाते हैं। चढ़ाए हुए खीरे को नाखून से फाड़कर शिवलिंग के समक्ष ही (कड़वा भाग सहित) खाकर गुफा से बाहर निकलना होता है।

यह प्राकृतिक शिवालय पूरे प्रदेश में आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पूजा के बाद मंदिर की सतह (चट्टान) पर रेत बिछाकर उसे बंद किया जाता है। अगले वर्ष इस रेत पर किसी जानवर के पदचिह्न् अंकित मिलते हैं। निशान देखकर भविष्य में घटने वाली घटनाओं का अनुमान लगाया जाता है।

साल में एक बार खुलता है आलोर मंदिर का पट Reviewed by on . रायपुर/जगदलपुर, 22 सितम्बर (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ में आलोर, फरसगांव स्थित एक ऐसा दरबार है, जहां का दरवाजा साल में एक ही बार खुलता है। लिंगेश्वरी माता के मं रायपुर/जगदलपुर, 22 सितम्बर (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ में आलोर, फरसगांव स्थित एक ऐसा दरबार है, जहां का दरवाजा साल में एक ही बार खुलता है। लिंगेश्वरी माता के मं Rating: 0
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