नई दिल्ली, 14 फरवरी (आईएएनएस)। दिल्ली सरकार के अधिकारियों के तबादले की शक्ति पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ और ‘दिल्ली के लोगों के साथ अन्याय’ बताते हुए, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को कहा कि यह आदेश संविधान और लोकतंत्र के विरुद्ध है।
फैसले के बाद यहां मीडिया से बात करते हुए केजरीवाल ने कहा कि इस फैसले के अनुसार चुनी हुई सरकार के पास अधिकारियों के तबादले की शक्ति नहीं है।
उन्होंने कहा, “एक सवाल उठता है कि अगर एक सरकार तबादले भी नहीं कर सकती तो फिर वह काम कैसे करेगी।”
फैसले पर उन्होंने कहा, “यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और दिल्ली के लोगों के साथ अन्याय है।”
उन्होंने कहा, “हम सर्वोच्च न्यायालय का सम्मान करते हैं, लेकिन फैसला उन लोगों के साथ अन्याय है जिन्होंने यहां (एक पार्टी को) 70 में से 67 सीटें देकर एक सरकार चुनी।”
उन्होंने कहा कि 67 सीटों वाली पार्टी को अधिकारियों के तबादले का हक नहीं है, लेकिन तीन सीटों वाली पार्टी को अधिकारियों का तबादला करने की शक्ति है।
2015 के विधानसभा चुनाव में आप ने दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीती थीं और भाजपा को तीन सीटों पर जीत मिली थी।
विधानसभा चुनाव में जबरदस्त जीत दर्ज करने के बावजूद खुद को शक्तिविहीन बताते हुए उन्होंने कहा कि विपक्षी पार्टी ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति करेगी जो काम नहीं करेंगे और काम करने नहीं देंगे।
केजरीवाल ने कहा, “हम बीते चार वर्षो से जूझ रहे हैं।”
उन्होंने कहा, “भ्रष्टाचार-रोधी ब्यूरो (एसीबी) बीते 40 वर्षो से दिल्ली सरकार के अधीन था। अब यह इसके अधीन नहीं है। मैं क्या करूं, अगर कोई मेरे पास आता है और यह कहता है कि कुछ भ्रष्टाचार हुआ है तो क्या मुझे विपक्षी पार्टी के पास जाना चाहिए और भाजपा से भ्रष्ट अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए पूछना चाहिए? विपक्षी पार्टी ही है जो सारी गड़बड़ कर रही है।”
आप प्रमुख ने कहा, “फैसले के अनुसार, संविधान की मूल संरचना से छेड़छाड़ नहीं किया जा सकता। लेकिन लोकतंत्र सबसे बड़ी संरचना है और अगर चुनी हुई सरकार के पास कोई शक्ति नहीं है, तो यह कार्य कैसे करेगी? यह किस प्रकार का लोकतंत्र है? फैसला संविधान और लोकतंत्र के खिलाफ है।”
उन्होंने कहा कि अगर हर फाइल के लिए हमें उपराज्यपाल के कार्यालय के बाहर धरना देना पड़े, तो यह सरकार कैसे चलेगी?
उन्होंने कहा, “दिल्ली को राज्य का दर्जा दिए जाने से ही इस समस्या का निदान होगा। आगामी लोकसभा चुनाव में, प्रधानमंत्री को चुनने के लिए मतदान न करें। सभी सात सीटें आप को दें। हम आने वाले पांच वर्षो में सरकार पर दिल्ली को राज्य का दर्जा देने के लिए दबाव बनाएंगे।”
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित द्वारा अदालत के आदेश का सम्मान करने पर केजरीवाल ने कहा, “मैं दीक्षित का बहुत आदर करता हूं। मैं उनसे आग्रह करना चाहता हूं कि इस समय मुद्दे बड़े हैं। देश बड़ा है, इसलिए अल्पकालीन राजनीति के लिए ऐसी टिप्पणियां सही नहीं हैं।”
मुख्यमंत्री ने कहा, “उनके(शीला दीक्षित) पास सारी शक्तियां थी। उनके पास केंद्र में कांग्रेस के होने का फायदा भी था, इसके बावजूद भी हमने चार वर्षो में उतने काम किए हैं, जितने उन्होंने 15 वर्ष में भी नहीं किए।”
उन्होंने कहा, “मैं आपसे आग्रह करना चाहता हूं कि, आज मेरी सरकार है। कल हो सकता है आपकी सरकार हो। आपको भी इन शक्तियों की जरूरत पड़ेगी। दिल्ली के बारे में बात कीजिए, इसके लोगों और इसकी सरकार के बारे में बात कीजिए।”
उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ ने दिल्ली सरकार के अधिकारों के मुद्दे पर खंडित फैसला दिया है। अब इस मुद्दे को बड़ी पीठ को भेजा जा रहा है।
न्यायमूर्ति ए.के.सीकरी ने कहा कि संयुक्त सचिवों व उनके ऊपर के रैंक के अधिकारियों का तबादला व तैनाती उप राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में आता है जबकि उनके नीचे की रैंक के अधिकारियों के लिए दिल्ली की निर्वाचित सरकार के मंत्रिपरिषद के जरिए सिफारिश की जाएगी।
लेकिन, न्यायमूर्ति अशोक भूषण की राय अलग थी। न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने कहा कि दिल्ली सरकार का नियुक्तियों पर कोई नियंत्रण नहीं है और ‘उच्च’ अधिकारियों के तबादले व नियुक्ति केंद्र के हाथ में होंगे।