शिमला- भादो का महीना खत्म होते ही आश्विन महीना शुरू होता है। हिमाचल प्रदेश में इस संक्राति को जो उत्सव पड़ता है, उसे हिमाचलवासी सायर उत्सव के नाम से मनाते हैं। फसल कटाई के बाद सर्दी का महीना शुरू होने के पहले यह पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दौरान ईश्वर स्वर्ग से धरती पर आ जाते हैं। बड़े-बुजुर्गो के मुताबिक, सदियों पुराना सायर उत्सव मुख्य रूप से शिमला, मंडी, कुल्लू और सोलन जिले के अंदरूनी इलाकों में हर वर्ष सितंबर महीने के मध्य में मनाया जाता था।
मंडी और कुल्लू के इलाके में यह मंगलवार, जबकि शिमला और सोलन में बुधवार को मनाया जाता है।
स्पेन, पुर्तगाल या लैटिन अमेरिकी देशों की ही तरह इस उत्सव में बुलफाइट (सांढ़ों की लड़ाई) का प्रचलन है, जो इस पर्व का मुख्य आकर्षण है।
सोलन जिले के आकरी और शिमला जिले के माशोबरा इलाके में यह पर्व बुधवार को मनाया जाएगा।
माशोबरा निवासी शिव सिंह ने आईएएनएस को बताया, “यह पर्व अपना पारंपरिक चमक खो चुका है। इस पर आधुनिकता हावी हो गई है। हालांकि स्थानीय लोग अभी भी इस पर्व को बेहद उत्साह के साथ मनाते हैं। वे सांढ़ों की लड़ाई में हिस्सा लेते हैं तथा फसल ईश्वर को समर्पित करते हैं।”
उन्होंने कहा कि परंपरा के मुताबिक, परिवार के बड़े सदस्य छोटे सदस्यों को एक पवित्र घास ‘ध्रुव’ के साथ सूखा मेवा भेंट करते हैं।
पर्व के दौरान बर्तन, कपड़े खरीदे जाते हैं तथा लजीज पकवान बनाए जाते हैं।
उन्होंने कहा, “पर्व के दौरान बुलफाइट में 50 से ज्यादा सांढ़ हिस्सा लेंगे, जिन्हें स्थानीय लोगों द्वारा पाला गया है।”
लड़ाई के पहले सांढ़ों को शराब पिलाया जाता है, ताकि वे उन्मत्त होकर लड़ाई में भाग ले सकें।
मंडी और कुल्लू जिले में अगले मंगलवार को यह पर्व मनाया जाएगा। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस दौरान ईश्वर स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरते हैं और सर्दी का आगमन होता है।
अगली गर्मी में बेतहाशा फसल के उत्पादन की कामना से ईश्वर को फसल समर्पित करते हैं।
कुल्लू घाटी में उत्सव के दौरान स्थानीय लोग बुरी आत्माओं को दूर भगाने, परिवार की समृद्धि, प्राकृतिक आपदा से मवेशियों और फसलों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं।
कुल्लू जिले के नागर गांव के निवासी हेम सिंह ठाकुर ने कहा, “विभिन्न मंदिरों में ईश्वर के आगमन का गर्मजोशी से स्वागत करने के लिए हम ढोलक और तुरही बजाते हैं।”
मंडी जिले के बंजर इलाके की निवासी रश्मि देवी ने कहा, “चूंकि अब बीजों का अंकुरण नहीं होगा, इसलिए भीषण सर्दी के मद्देनजर हम खाद्यान्न और जलावन का भंडारण करेंगे”