नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार (20 सितंबर) को एक ऐतिहासिक फैसले में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) संशोधन नियम 2023 को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है. अदालत ने इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन बताया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, आईटी नियमों के इन संशोधनों के जरिये केंद्र सरकार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने कामकाज के बारे में ‘फर्जी और भ्रामक’ सूचनाओं की पहचान करने और उन्हें खारिज करने के लिए फैक्ट चेक यूनिट बनाने की अनुमति दी गई थी.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस अतुल चंदुरकर ने अपने फैसले में कहा कि इन नियमों ने संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया है. इससे पहले जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने इस मुद्दे पर जनवरी 2024 में खंडित फैसला सुनाया था.
याचिका स्टैंड-अप कॉमेडियन और राजनीतिक व्यंग्यकार कुणाल कामरा, एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा दायर की गई थी.
जनवरी 2024 में जस्टिस पटेल और जस्टिस गोखले की खंडपीठ द्वारा सुनाए गए फैसले में जहां जस्टिस पटेल ने नियमों को पूरी तरह से रद्द कर दिया था, वहीं जस्टिस गोखले ने उनकी वैधता को बरकरार रखा था. इसके बाद अदालत ने फरवरी में बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंदुरकर को निर्णायक न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया था.
लाइव लॉ के अनुसार, जस्टिस चंदुरकर ने कहा, मेरा मानना है कि ये संशोधन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करते हैं. साथ ही ये अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन करते हैं.
इसके अलावा, उन्होंने जोड़ा कि ‘फ़र्ज़ी, झूठे या भ्रामक’ शब्द के अर्थ ‘अस्पष्ट’ हैं. जस्टिस चंदुरकर ने आगे कहा कि संशोधित नियम को रद्द किया जाए और सभी याचिकाओं को निर्णय के लिए खंडपीठ के समक्ष रखा जाएगा.’
बता दें कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम-2023 में एक फैक्ट-चैकिंग इकाई का प्रावधान है जो केंद्र सरकार से संबंधित ऐसी सूचनाओं को चिह्नित करेगी, जिन्हें वह गलत, फर्जी या भ्रामक मानती है.
कई विश्लेषकों ने इसे प्रेस की स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा बताया है.
ज्ञात हो कि संशोधित नियमों के तहत एक बार अगर सरकार की फैक्ट-चेक इकाई किसी सामग्री (Content) को फ़र्ज़ी, गलत या भ्रामकबताने पर एक्स (पूर्व में ट्विटर), इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया मंचों को या तो उसे हटाना होगा या एक अस्वीकरण (Disclaimer) जोड़ना होता.
हालांकि, याचिकाकर्ताओं का दावा था कि ये नियम नागरिकों के समान सुरक्षा और फ्री स्पीच के अधिकार का उल्लंघन करते हैं, जिसकी गारंटी भारतीय संविधान द्वारा दी गई है.
नियमों के खिलाफ अदालत पहुंचे स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने चिंता जताई थी कि ये नियम उनकी सामग्री को मनमाने ढंग से सेंसर कर सकते हैं, जिससे पोस्ट ब्लॉक या हटाए जा सकते हैं, या यहां तक कि उनके एकाउंट को भी निलंबित किया जा सकता है.
इससे पहले इसी साल मार्च महीने में सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी नियमों के तहत प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की फैक्ट-चेक शाखा को फैक्ट-चेकिंग इकाई (एफसीयू) के रूप में नामित करने वाली केंद्र सरकार की अधिसूचना पर रोक लगाने का आदेश दिया था.
गौरतलब है कि 2019 में स्थापित पीआईबी की फैक्ट-चेकिंग इकाई, जो सरकार और इसकी योजनाओं से संबंधित खबरों को सत्यापित करती, पर वास्तविक तथ्यों पर ध्यान दिए बिना सरकारी मुखपत्र के रूप में कार्य करने का आरोप लगता रहा है.
मई 2020 में न्यूज़लॉन्ड्री ने ऐसे कई उदाहरण बताए थे, जहां पीआईबी की फैक्ट-चेकिंग इकाई वास्तव में तथ्यों के पक्ष में नहीं थी, बल्कि सरकारी लाइन पर चल रही थी. फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज के संस्थापक प्रतीक सिन्हा का भी कहना है कि समस्या यह भी है कि पीआईबी किन खबरों का फैक्ट-चेक करने का फैसला करता है और किनको नजरअंदाज करता है.
उन्होंने न्यूजलॉन्ड्री से कहा था, ‘मुद्दा यह है कि पीआईबी फैक्ट चेक इकाई क्या सत्यापित करने का फैसला करती है. यदि आप पीआईबी द्वारा किए गए फैक्ट-चेक देखते हैं तो कुछ अपवादों को छोड़कर वे सरकार की छवि को नुकसान पहुंचने से बचाने की कोशिश करते हैं. वे उन चुनिंदा खबरों का फैक्ट-चेक करते हैं, जो स्वभाव से राजनीतिक हैं और सत्तारूढ़ पार्टी के लिए आलोचनात्मक हैं.’
उन्होंने कहा था, ‘यह कहना कि केवल पीआईबी फैक्ट-चेकिंग इकाई ही यह तय करेगी कि क्या सच है और क्या झूठ है, बताता है कि केवल सरकार के खिलाफ गलत सूचना को हटाया जाएगा. अन्य सभी गलत सूचनाओं को ऑनलाइन बने रहने की अनुमति होगी.’
इस संबंध में प्रेस एसोसिएशन समेत कई प्रेस संगठनों ने सरकार की आलोचना की थी.
प्रेस एसोसिएशन का कहना था कि प्रेस काउंसिल पहले से ही फ़र्ज़ी समाचार की कई शिकायतों पर फैसला कर रही है. पीआईबी जैसी विशुद्ध रूप से सरकारी संस्था को फेक न्यूज़ को निर्धारित करने और कार्रवाई करने की शक्ति मिलने से प्रेस काउंसिल का अधिकार, स्वतंत्रता कम हो जाएगी, जो 1966 से सुचारू रूप से काम कर रही है.
ज्ञात हो कि इससे पहले डिजिटल मीडिया संगठनों के संघ ‘डिजीपब’ ने कहा था कि आईटी नियमों में प्रस्तावित संशोधन संभावित रूप से प्रेस की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचाने के लिए एक सुविधाजनक संस्थागत तंत्र बन सकता है.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी सरकार से आग्रह किया था कि सोशल मीडिया कंपनियों को पीआईबी द्वारा फर्जी माने जाने वाले समाचारों को हटाने के लिए निर्देश देने वाले आईटी नियमों में संशोधन के मसौदे को हटाया जाए.
गिल्ड ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि फर्जी समाचारों के निर्धारण का जिम्मा केवल सरकार के हाथों में नहीं हो सकता है. गिल्ड को लगता है कि यह (ड्राफ्ट संशोधन) प्रेस की सेंसरशिप के समान है.