पेरिस, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि सभी समृद्ध देश पूर्व में किए गए कार्बन उत्सर्जन के एवज में भुगतान करें। भारत मानता है कि ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों का दुनिया पर कर्ज है, जो उन्हें चुकाना चाहिए।
यहां जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में रविवार को भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यह बात कही।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन प्रारूप संकल्प के तहत यहां हो रहे वार्ताकार पक्षों के सम्मेलन के 21वें सत्र में 195 देश शामिल हुए हैं।
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री के साथ यहां पहुंचे जावड़ेकर दूसरी बार शनिवार को पहुंचे हैं। सम्मेलन का यह दूसरा सप्ताह है।
प्रथम सप्ताह में सम्मेलन इस सहमति पर पहुंचा है कि वैश्विक तापमान की वृद्धि को अधिकतम दो डिग्री तक सीमित किया जाए। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, तापमान इससे अधिक बढ़ने पर प्राकृतिक विभीषिकाएं पैदा हो सकती हैं।
सम्मेलन की एक बड़ी चुनौती समृद्ध देशों को 2020 से कुल 100 अरब डॉलर देने के लिए तैयार करना है, जिसका उपयोग विकासशील देश जलवायु परिवर्तन से निपटने की अपनी योजनाओं को लागू करने में करेंगे।
अब तक समृद्ध देश सिर्फ करीब 10 अरब डॉलर देने के लिए तैयार हुए हैं।
अगले खंड में नौकरशाहों और मंत्रियों के सम्मेलन से पहले जावड़ेकर ने कहा, “पेरिस सम्मेलन पहले के अन्य सम्मेलन जैसा नहीं होना चाहिए, उस बार हम झूठे दिलासे के साथ घर लौटे थे।”
उन्होंने कहा कि भारत यहां यह सुनिश्चित करने के लिए आया है कि साझा और विविध जिम्मेदारियों (सीबीडीआर) का सम्मान किया जाना चाहिए।
सीबीडीआर सिद्धांत का तात्पर्य यह है कि पिछली गलतियों को ठीक करने के लिए विकसित और विकासशील देशों को अलग-अलग जिम्मेदारी निभानी चाहिए। पश्चिमी देशों से धन और प्रौद्योगिकी मांगी जा रही है, जिसका उपयोग तापमान वृद्धि से निपटने में किया जा सके।
यह ‘प्रदूषण फैलाने वाले भुगतान करें’ सिद्धांत पर आधारित है, जिसका तात्पर्य यह है कि विकास की खोज में विकसित देशों ने बहुत पहले भारी मात्रा में वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन किया है। इसलिए उन्हें इसके लिए भुगतान करना चाहिए।