काठमांडू, 16 जनवरी (आईएएनएस)। नेपाल के एक प्रमुख मधेशी नेता ने कहा है कि नए संविधान के लागू होने के तीन महीने के अंदर ही संशोधन विधेयक लाया गया है, जिससे यह साबित होता है कि सत्ताधारी अभिजात्य वर्ग ने यह स्वीकार कर लिया है कि संविधान में त्रुटियां हैं और उसे सुधारने की जरूरत है।
काठमांडू, 16 जनवरी (आईएएनएस)। नेपाल के एक प्रमुख मधेशी नेता ने कहा है कि नए संविधान के लागू होने के तीन महीने के अंदर ही संशोधन विधेयक लाया गया है, जिससे यह साबित होता है कि सत्ताधारी अभिजात्य वर्ग ने यह स्वीकार कर लिया है कि संविधान में त्रुटियां हैं और उसे सुधारने की जरूरत है।
संयुक्त लोकतांत्रिक मधेशी मोर्चा (एसएलएमएम) के वरिष्ठ नेता महंत ठाकुर ने आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में कहा, “हो सकता है कि संशोधन विधेयक हमारी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरे। यह देखना पड़ेगा कि इसमें हमारी चिंताओं पर क्या बदलाव किया गया है।”
ठाकुर नेपाल के दक्षिणपूर्वी तराई इलाके में आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। इस आन्दोलन में ठाकुर की तराई मधेश लोकतांत्रिक पार्टी के अलावा तीन और मुख्य पार्टियां भी शामिल हैं। संभावना पार्टी जिसके प्रमुख राजेंद्र महतो हैं, फेडरल सोशलिस्ट फोरम नेपाल जिसके प्रमुख उपेंद्र यादव हैं और तराई मधेश लोकतांत्रिक पार्टी जिसके प्रमुख महेंद्र यादव हैं।
इनका मुख्य विरोध नए संविधान में संघीय इकाइयों के सीमांकन समेत कई मुद्दे को लेकर है। उनकी मांग समावेशी संविधान और नागरिकता की है।
नेपाल में नया संविधान पिछले वर्ष 20 सितंबर को लागू किया गया। 215 पृष्ठों वाले इस दस्तावेज का 598 सदस्यीय संसद के 90 फीसदी सदस्यों ने समर्थन किया, जबकि 60 मधेशी सदस्यों ने इसके खिलाफ मतदान किया।
ठाकुर ने बताया कि नेपाल के प्रमुख राजनीतिक दल -नेपाली कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी) और एकीकृत सीपीएन (माओवादी) हमेशा से मधेशी पार्टियों और दक्षिणी मैदान के निवासियों की मांगों की उपेक्षा करते रहे हैं।
तराई मधेश लोकतांत्रिक पार्टी के नेता ठाकुर, जिन्होंने 2007 में नेपाली कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाई थी, बताते हैं कि प्रमुख राजनीतिक पार्टी के नेताओं ने बिना आम सहमति के ही संविधान पारित कर दिया था।
66 वर्षीय ठाकुर कहते हैं कि यह आन्दोलन हम अपने अधिकार, अवसर और समानता के लिए कर रहे हैं, ताकि लोगों के साथ पहचान के आधार पर भेदभाव न हो। ठाकुर 1990 में नेपाल की बहुदलीय सरकार के दौरान निचले सदन के अध्यक्ष थे।
उनका कहना है कि तीनों बड़ी राजनीतिक पार्टियां समझौते का नाटक कर रही हैं। सरकार लगातार मधेशियों की मांग को खारिज कर रही है। जबकि हमने बार-बार सरकार को बाकायदा लिखित रूप में अपनी मांगों से अवगत कराया है।
पिछले पांच महीने से चल रहे मधेशी आन्दोलन में अब तक 55 लोग मारे गए हैं, जिसमें प्रदर्शनकारी और पुलिसकर्मी दोनों शामिल हैं। इस मुद्दे पर नेपाल सरकार ने पहली बार 20 दिसंबर को कहा कि वे मधेशियों की दो प्रमुख मांगों पर विचार करने को तैयार है, जिसमें आनुपातिक प्रतिनिधित्व और निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन शामिल है।
उसके बाद कैबिनेट ने आपात बैठक बुलाई और एक कार्यदल के गठन की घोषणा की, जो तीन महीने के अंदर विवादों के समाधान की सिफारिश करेगी।
इसी प्रकार 25 दिसंबर को सरकार ने संविधान में संशोधन का प्रस्ताव दिया, जिसे मधेशी पार्टियों ने खारिज करते हुए कहा कि उन्हें भरोसे में नहीं लिया गया है।
इसके बाद से सरकार और मधेशी नेताओं के बीच 25 दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल पाया है।
वहीं, नौ जनवरी को मधेशी मोर्चा ने नए सिरे से आन्दोलन की घोषणा करते हुए कहा कि सरकार उनकी मांगों को लेकर गंभीर नहीं है और अबतक की सारी बातचीत बेनतीजा रही है।