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 शीना हत्याकांड : ये कहां जा रहे हम? | dharmpath.com

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शीना हत्याकांड : ये कहां जा रहे हम?

September 7, 2015 7:44 pm by: Category: फीचर Comments Off on शीना हत्याकांड : ये कहां जा रहे हम? A+ / A-

sheenaएक थी शीना और एक है इंद्राणी। इन दोनों पर कितना भी लिखा जाए, फिर भी एक सवाल बार-बार कुरेदती रहेगी कि क्या कोई मां ऐसा कर सकती है? यकीनन दिल नहीं मानता कि मां ऐसा करेगी, वह भी अपनी कोखजनी बेटी और बेटे के साथ, उसमें भी जो पहली औलाद हो! इसी औलाद के लिए लोग न जाने क्या-क्या जुगत करते हैं, मन्नते मांगते हैं, सपने देखते हैं।

मगर औलाद के कंधे तक पहुंचते-पहुंचते बेरहमी से कत्ल कर लाश का मेकअप करे, समाज की व्यवस्था और विधानों को चकमा देकर, अधजला मुर्दा जंगल में फेंके, अभिजात बन बिना शिकन, ग्लानि के बेखौफ होकर बूढ़ी होती देह संग हर दिन ग्लैमरस जिंदगी जिए, क्या ऐसी होती है मां?

इतने बड़े अधम पाप के बाद भी जिंदगी जस की तस पूरे ऐशो आराम और अय्याशी से भरी, रहस्य रोमांच के किस्से सी लेकिन सच भी। ये उस भारत में हुआ जो विश्वगुरु बनने को अग्रसर है, संस्कारों की धरती है, यहां से निकले धर्म विश्व में सुख, शांति और भाईचारा का संदेश फैला रहे हैं, जहां का योग दुनिया को रोग मुक्त बनाने तत्पर है, मानसिक और आध्यात्मिक शांति के लिए एक से एक शक्तिपुंज हैं।

ऐसे में पैसों की हवस, शरीर की भूख और पश्चिमी चकाचौंध से प्रेरित तथाकथित वो अभिजात्य जो संबंधों को लिबास की तरह बदले, गुमान बस इतना कि शारीरिक सुंदरता, सुडौल संचरना, चालाक दिमाग और उन्मुक्तता से भी आगे की सोच, लज्जाशीलता को तिलांजलि। मकसद राह का रोड़ा या पुराने पाप के राज खुलने का भय खत्म करना, अपनी कोखजनी पुराने मर्द की औलाद की हत्या और साजिश बहुत ही घृणित, जघन्यतम, क्रूरतम और भी जो-जो कहा जाए कम है!

प्रगतिशील समाज के तथाकथित और हकीकत में दबंग और प्रभावी आइकॉन का यह कृत्य उन परभक्षी जीव-जंतुओं से भी बदतर है जो दूसरे प्राणियों का शिकार कर अपना और परिवार का पेट भरता है। मानवता को तार-तार कर देने वाली घटना ने कई सवाल छोड़ दिए हैं।

कई सवाल स्वयमेव भी उठ रहे हैं। भरा पेट और अपार दौलत क्या सामाजिक व्यवस्था के लिए अभिशाप है? उन्मुक्तता सफलता की सीढ़ी है? क्या सर्वहारा वर्ग या बहुसंख्यक मध्यम, गरीब, मजदूर से भी बदतर हैं वो लोग जो पैसों के कारण अलग दिखते हैं, लगते हैं, कुछ भी अनाप-शनाप या वो करते हैं जो समाज की स्वीकृत मान्यताओं, समाज के पहरुओं की खींची लक्ष्मण रेखा को बेहिचक पार कर लें, क्योंकि उनका पैसा बोलता है।

विकृतियां, हवस, शारीरिक भूख के इनके लिए कोई मायने नहीं? जब जिसकी जरूरत उसे पूरी करो। बस तिकड़म ही तिकड़म। शीना बोरा हत्याकांड अलग इसलिए भी बन गया, क्योंकि उसका संबंध वैश्विक मीडिया मुगल रूपक माडरेक के भारतीय प्रमुख पीटर मुखर्जी की पत्नी इंद्राणी मुखर्जी से जुड़ा है।

भले ही पीटर जाहिर तौर पर इंद्राणी के तीसरे पति हों, इसमें कोई शक नहीं कि पीटर मुखर्जी ने भारतीय इलेक्टॉनिक मीडिया में बहुत ही कम समय में अद्वितीय क्रांति की कामयाबी का झंडा गाड़ा, तहलका मचा दिया। इससे दूसरे मीडिया घराने उनसे घबरा भी गए, तभी बैठे-बिठाए ये जबरदस्त मामला हाथ लग गया। इसी कारण मीडिया ट्रायल बनते देर नहीं लगी और घर-घर यह मामला चर्चा का विषय बन गया।

संबंधों के ताने-बाने की जो गुत्थी और पेंच नित नए रूप में सामने आ रहे हैं, वे जरूर अविश्वसनीय हैं। इंद्राणी से विधिवत तलाक ले चुके पूर्व पति संजीव खन्ना का कंपनी में डायरेक्टर होना, शीना की हत्या से लेकर लाश को ठिकाने लगाने में साथ-साथ होना बहुत ही उलझा हुआ सा है सब कुछ।

भारतीय परिवेश में तो बस किस्सा सा लगता है इंद्राणी का सच जो समाज के सामने बड़ी चुनौती है। दौलत बनाना, ऊंचाइयों तक पहुंचना, प्रभावशाली महिलाओं में शुमार होना बेशक फक्र की बात है। लेकिन इंद्राणी के जो सच सामने आ रहे हैं वह कहीं से भी भारतीय क्या पश्चिमी समाज को भी स्वीकार्य नहीं होगा, क्योंकि वहां भी ऐसे संबंधों से पैदा हुई संतानों के संरक्षण और एक उम्र तक सुरक्षा व मातृत्व का फर्ज पूरा करने के स्पष्ट प्रावधान हैं।

16 साल की उम्र में प्रेग्नेंट हो घर से भागी इंद्राणी, भले ही अपने सौतेले पिता पर यौन शोषण का आरोप लगाए, बाइपोलर डिप्रेशन डिसऑर्डर का शिकार बताई जाए, सच ये है कि रिश्तों को सीढ़ी समझ कब, कहां, कैसा इस्तेमाल करना है, कब छोड़ना है, रुतबा, दौलत और शोहरत हासिल करने वाली इंद्राणी को सब पता है।

हो सकता है कि बेटी शीना और बेटा मिखाइल का राज उसकी उड़ान के लिए खतरा हो? माना कि लिव इन रिलेशनशिप दंपति की सहमति पर स्वीकार्य है, नित नए संबंधों में से भी गुरेज नहीं लेकिन, इससे पैदा संतान का क्या कुसूर, उसके भविष्य का निर्धारण कौन करेगा?

सीधे शब्दों में अय्याशी से पैदा संतान, नाजायज होने का दंश झेल, घुटे, तड़पे और उसी समाज से लड़े जो परिणितियों पर आंख मूंदे बैठा है? लगता नहीं कि बहुत हो चुका है यह सब और अब इस बारे में स्पष्ट कानून की सख्त और तुरंत जरूरत है!

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