हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि व्रत का विशेष महत्व है. नवरात्रि के इन नौ दिनों में मां भगवती के नौ दिव्य स्वरूपों की उपासना की जाती है. वैदिक पंचांग के अनुसार, आज यानी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन देवी चंद्रघंटा की उपासना का विधान है. शास्त्रों में यह बताया गया है कि देवी चंद्रघंटा देवी पार्वती की विवाहित स्वरूप हैं और उनकी उपासना करने से व्यक्ति की सभी मनोकामना पूर्ण होती है.
शास्त्रों में यह बताया गया है की देवी चंद्रघंटा बाघिन की सवारी करती हैं और वह अपने मस्तक पर अर्ध चंद्रमा धारण करती हैं. माता की 10 भुजाएं हैं, जिनमें बाएं भुजाओं में माता त्रिशूल, गधा, तलवार, कमंडल और वर मुद्रा धारण करती हैं और बाएं भुजाओं में कमल, पुष्प, तीर, धनुष, जप माला और अभय मुद्रा धारण करती हैं. देवी चंद्रघंटा का स्वरूप भक्तों के कल्याण करने वाला और शांतिपूर्ण है. साथ ही वह सभी अस्त्र और शास्त्रों से सुसज्जित हैं और युद्ध के लिए तत्पर रहती हैं. देवी चंद्रघंटा के मस्तक पर विद्यमान चंद्र-घंटी को भक्तों की रक्षा का प्रतीक माना जाता है.
शास्त्रों में यह बताया गया है कि भगवान शिव से विवाह होने के पश्चात माता पार्वती ने अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करना शुरू किया था, जिसके कारण देवी पार्वती को देवी चंद्रघंटा के नाम से भी जाना जाने लगा. इसलिए नवरात्रि पर्व के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की उपासना की जाती है. मान्यताओं के अनुसार, देवी चंद्रघंटा शुक्र ग्रह को शासित करती हैं और उनकी उपासना से इस ग्रह की स्थिति मजबूत होती है