ग्वालियर. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह और पत्रकार अमृता राय का रिश्ता है। बुधवार को यह बात पक्की हो गई। दोनों ने यह रिश्ता कबूल कर लिया। इससे पहले सोशल साइट पर दोनों के वीडियो वायरल हो रहे थे। इसके बाद दोनों ने रिश्ता भी सोशल साइट के जरिए ही कबूला। इस मामले में जब दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह से एक मीडिया समूह ने सवाल किया तो उन्होंने कहा कि वो उनका आपस का मामला है। इससे अतरिक्त कोई भी टिप्पणी करने से उन्होंने इनकार कर दिया। कौन हैं जयवर्धन सिंह दिग्विजय सिंह की पांच संतानों में सबसे छोटे जयवर्धन का जन्म 9 जुलाई 1986 में हुआ था। चार बहनों के बीच जयवर्धन इकलौते भाई हैं। इन्हें कुंवर के नाम से भी जाना जाता है। दून स्कूल से पढ़ाई करने के बाद जयवर्धन से दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए अमरीका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और वहां से डिग्री हासिल कर लौटने के बाद चुनाव मैदान में कूद गए। अपने पिता की परंपरागत विधानसभा सीट से उन्होंने 2013 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ा। वर्तमान में जयवर्धन राघोगढ़ के विधायक हैं। जयवर्धन सिंह कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के इकलौते बेटे हैं। अपने पिता की परंपरागत सीट राघौगढ़ से वे पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरे। जयवर्धन ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी बीजेपी उम्मीदवार राधेश्याम धाकड़ को 58,204 वोटों से पराजित किया। जयवर्धन को 98041 वोट मिले जबकि धाकड़ को 39837 वोट मिले। राजनीति की चमक-दमक से दूर रहे जयवर्धन जयवर्धन सिंह पिता की कड़ी निगरानी में पले बढ़े। दिग्विजय सिंह भले ही दिल्ली और भोपाल में सत्ता के गलियारों में बने रहे हों, लेकिन जयवर्धन सिंह को उन्होंने दिल्ली और भोपाल की चमक-दमक से दूर रखने की हर संभव कोशिश की। यही नहीं, चुनाव लड़ाने से पहले उन्होंने अपने बेटे से राघौगढ़ की पदयात्रा भी करवाई। दिग्विजय की तरह जयवर्धन भी कांग्रेस के प्रति अपनी वफादारी दिखाने से नहीं चूकते हैं। उनका कहना है कि उनके पिता या उनके काका लक्ष्मण सिंह आज जो भी हैं वो सिर्फ़ कांग्रेस पार्टी के आशीर्वाद से हैं। जयवर्धन ये भी कहते हैं कि उनके पिता दिग्विजय सिंह जब पहली बार प्रदेश के अध्यक्ष बने थे तो वो राजीव गांधी के आशीर्वाद से ही बने थे और आज उनका परिवार जो कुछ भी है वो सब कुछ नेहरू-गांधी परिवार की ही देन है। जयवर्धन की मानें तो उनके पिता दिग्विजय सिंह कभी नहीं चाहते थे कि वे राजनीति में आएं, लेकिन जयवर्धन की जिद के आगे वे भी झुक गए और इस तरह से जयवर्धन का राजनीति में आगमन हुआ। – See more at: http://indiaonesamachar.com/read_article.php?news_id=1508&page_id=np459#sthash.YTmuXi6D.dpuf
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