श्रीमद्भगवद्गीता, अर्थात भगवान श्रीकृष्णकी प्रत्यक्ष अमृतवाणी ! जिस प्रकार कुरुक्षेत्रके युद्धमें विजय प्राप्त करनेके लिए अर्जुनको गीताके उपदेशकी आवश्यकता थी, उसी प्रकार आज जीवनके कुरुक्षेत्रपर विजय प्राप्त करनेके लिए प्रत्येकको गीतामृतकी आवश्यकता है । यद्यपि भारतके निधर्मीवादियोंने ‘रामायण’ एवं ‘महाभारत’ समान महाकाव्योंको काल्पनिक घोषित कर, उनकी उपेक्षा की है, परन्तु प्राचीन कालसे ही अनेक विदेशी विद्वान गीताकी अद्वितीयताके आगे नतमस्तक होते रहे हैं । आजके तथाकथित निधर्मीवादियोंपर यह कहावत सौ प्रतिशत लागू होती है कि ‘बन्दर क्या जाने अदरकका स्वाद’ अर्थात ये तो गीताका महत्त्व तभी समझेंगे, जब पश्चिमी देशोंद्वारा गीताके महत्त्वका बखान होगा । गीता जयंतीके उपलक्ष्यमें गीताका महत्त्व इस लेखमें प्रस्तुत कर रहे हैं ।
- अठारह पुराण, नौ व्याकरण एवं चार वेदोंका सारांश है श्रीमद्भगवद्गीता !
अष्टादश पुराणानि नव व्याकरणानि च । निर्मथ्य चतुरो वेदान् मुनिना भारतं कृतम् ॥
भारतोदधिपज्र्स्य गीतानिर्मथितस्य च । सारमद्धत्य कृष्णेन अर्जुनस्य मुखे धृतम् ॥
(सन्दर्भ : अज्ञात)
अर्थ : अठारह पुराण, नौ व्याकरण एवं चार वेदोंका सम्यक् मन्थन कर, व्यास ऋषिने महाभारतकी रचना की । इस महाभारतका मन्थन कर सारा नवनीत (सारांश) भगवान श्रीकृष्णने श्रीमद्भगवद्गीताके रूपमें अर्जुनके सम्मुख रखा (सुनाया) ।
- देश–विदेशके विद्वानोंद्वारा श्रीमद्भगवद्गीताका किया गया अनुवाद !
अ. शेख अबुल रहमान चिश्ती (फारसी)
आ. फ्रेन्च विद्वान डुपर (फ्रेन्च)
इ. जर्मन महाकवि ऑगस्ट विल्येम श्लेगल (वर्ष 1823) (जर्मन एवं लैटिन)
ई. जर्मन विद्वान एम.ए. श्रेडर
उ. केमेथ सेन्डर्स एवं जे.सी. टामसन
ऊ. भारत भ्रमणपर आए हुए अमेरिकाके न्यायाधीश एवं लेखक विन्थ्रौप सार्जेट
ए. एल.डी. बार्नेट एवं डॉ. एनी बेसेन्ट (वर्ष 1905)
ऐ. डब्ल्यू. डगलस पी. हिल (वर्ष 1928)
ओ. फ्रेंकलिन एडजर्ट (वर्ष 1944)
औ. क्रिस्टोफर ईशरवुड (वर्ष 1945)
- श्रीमद्भगवद्गीताकी अहिन्दुओंद्वारा की गई स्तुति
अ. मुहम्मद गजनीद्वारा भारतमें लाकर कारागृहमें बन्दी बनाए बुखाराके अत्यंत बुद्धिमान राजकुमार ‘अल् बरूनी’ ने अपने कारावासकालमें संस्कृत भाषा सीखी तथा अपनी पुस्तकमें गीताकी अत्यधिक प्रशंसा की है ।
आ. देहलीके सम्राट अकबरने प्रकाण्ड पण्डित ‘अबुल फैजी’ द्वारा गीताका ‘फारसी’ भाषामें भाषान्तर करवाया तथा सम्राट शहाजहांके पुत्र दाराशिकोहने इस अनुवादित ग्रन्थकी प्रस्तावना ‘सरे अकबर’ यह शीर्षक देकर की । अपनी प्रस्तावनामें गीताकी अपूर्व प्रशंसा करते हुए वह कहता है कि ‘गीताका प्रभाव प्लेटोके गुरुपर भी था ।’
इ. जर्मन विद्वान ‘वॉल्टर शू ब्रिंग’ ने गीताकी विशेष स्तुति की है ।
ई. जर्मन तत्त्ववेत्ता ‘कान्ट’ तथा उसके प्रशंसक ‘शॉपेनहावर’ एवं ‘हिगल’ गीताके प्रशंसक थे ।
उ. जर्मन विद्वान ‘हम्बोल्ट’ने गीता पढकर कहा कि ‘उनका जीवन कृतार्थ हो गया है तथा यह एकमात्र उत्तम दर्शनकाव्य है ।’
ऊ. गीताका अनुवाद अनेक यूरोपीय भाषाओंमें बार-बार होने लगा । अनेक यूरोपीय तथा अमेरिकी विद्वानोंने गीताकी अत्यधिक प्रशंसा की है ।
ए. अमेरिकी लेखक ‘राल्फ वाल्डो एमरसन’ जो थोरोके महान भक्त थे, वे भी गीताके विशेष प्रशंसक थे ।
ऐ. आयरिश कवि ‘जी. डब्ल्यू रसल’ (रसेल)ने भी गीताकी अत्यधिक स्तुति की है ।
ओ.‘यीट्स’, ‘फ्रेजर’, ‘मेकनिकल’ इत्यादि विदेशी विद्वानोंने भी गीताकी स्तुति की है ।
औ.‘टी.एस.इलियट’ ने ‘मानवीय साहित्यको प्राप्त अमूल्य देन’ कहकर गीताको सम्मानित किया है ।
अं.‘फरक्यूहर’ने गीताको ‘विलक्षण’ कहा था ।
क.‘बुक्स’ गीताको ‘मानव जातिके उज्जवल भविष्यके लिए की गई निर्मिति’ मानते थे ।
ख. गवर्नर जनरल ‘वॉरन हेस्टिंग्स’ स्तुतिमें कहते हैं, ‘गीताका उपदेश किसी भी जातिको एवं राष्ट्रको प्रगतिके शिखरपर ले जानेके लिए अद्वितीय है ।’
- यूरोपीय विद्वानोंने जाना गीताका महत्त्व
अ. गीताका प्रभाव बौद्ध ‘महायान’ नामक ग्रन्थोंमें भी दिखाई देता है ।
आ. अंग्रेजी कवि कार्लायल गीताके उपासक थे ।
इ. संस्कृतविशेषज्ञ ‘सर जॉन वुडरूफ’ गीताके भक्त थे ।
ई. भारतकी ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’के विद्वान अंग्रेज अधिकारी ‘चार्ल्स विल्किन्स’ने अत्यन्त परिश्रमपूर्वक संस्कृतका अध्ययन कर गीताका अंग्रेजीमें अनुवाद किया । यद्यपि, कम्पनीने यह अनुवाद अपने लाभके लिए करवाया था; तब भी यह एक क्रान्तिकारी घटना थी । इस घटनासे यूरोपीय देशोमें खलबली मच गई थी ।
उ.‘सर हेन्री टामस कोलब्रुक’ गीताके प्रशंसक थे । कोलब्रुकने वर्ष 1765 से वर्ष 1837 में संस्कृतका प्रचार किया । उन्होंने वेदोंपर विद्वत्तापूर्ण लेख लिखे तथा यूरोपमें वेदोंका प्रसार प्रारम्भ किया ।
ऊ. गीता तथा संस्कृतको वैभव प्राप्त करवानेमें ‘सर विल्यम जोन्स’का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । इसके लिए उन्होंने कोलकाताके विद्वान पण्डित, ‘रामलोचनजी’के पास उनके कठोर आदेशका पालन करते हुए (जैसे की गंगाजलसे कक्ष धोना) वहांके पण्डितोंसे संस्कृत सीखी ।
ए. जर्मन विद्वान ‘विन्टरनित्स’, ‘पालडायसन’ तथा ‘मैक्समूलर’ने वैदिक साहित्य एवं गीताका प्रसार करनेमें अपना बहुमूल्य योगदान दिया ।
ऐ. अंग्रेजी कवि ‘सर एडविन आरनोल्ड’ द्वारा गीताका प्रसिद्ध अनुवाद ‘दिव्य संगीत’ लंदनमें पढनेसे ही ‘गांधी’ गीतासे परिचित हुए ।
ओ. प्रसिद्ध अंग्रेजी विद्वान ‘एल्डुअस हक्सले’ ने अपने ‘गीता शाश्वत दर्शन’ नामक ग्रन्थमें गीतापर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भाष्य किया है । उन्होंने स्पष्ट एवं संक्षेपमें वर्णित ‘गीता शाश्वत दर्शन’ यह सर्वाधिक क्रमबद्ध आध्यात्मिक कथन है ।
(सन्दर्भ : ‘गीता स्वाध्याय’, दिसम्बर 2010)