अमेरिका के एक जानेमाने न्यूज चैनल के एंकर ने इराक युद्ध की रिपोर्ट में मनगढ़ंत बातें जोड़ दी. ग्रैहम लूकस का कहना है कि यह मामला पत्रकारों की विश्वसनीयता और उनके मूल्यों पर सवाल खड़े करता है.
गंभीरता से काम करने वाले पत्रकार अपने पेशे को आधुनिक लोकतांत्रिक समाज के लिए बेहद अहम करार देने से नहीं हिचकिचाते. कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के साथ हम चौथा स्तंभ हैं. हम वे हैं जो उनसे सवाल पूछते हैं जो हम पर राज करते हैं, उन्हें हर मौके पर चुनौती देते हैं. हम दिन के अहम मुद्दों पर सार्वजिनक बहस करते हैं, जब निर्णय करने वाले गलती करते हैं तो हम उनकी आलोचना करते हैं और उन लोगों पर फैसला सुनाते हैं जिन्होंने हमें नाकाम किया. कभी कभार हमारा काम चुनाव के नतीजे तय करता है. हम यह बहस करते हैं कि हम ही सत्य को स्थापित करने की कोशिश करते हैं. हम यह भी दावा करते हैं कि हम ही वे हैं जो ऐसी प्रस्तावना तैयार करते हैं जो बाद में इतिहास की किताबों में जाती है. हालांकि ये बड़े ऊंचे लक्ष्य हैं. इन्हें हासिल करने के लिए हमें ऐसे सुशिक्षित पत्रकार चाहिए जो मौजूदा हालात को समझें और मौजूदा साधनों का इस्तेमाल करते हुए कड़ी प्रतिस्पर्धा वाले रोज के न्यूज एजेंडा में सटीकता और ईमानदारी से रिपोर्टिंग करें. हम उच्च नैतिक मूल्य तय करते हैं, इसे बड़े पब्लिकेशंस या प्रसारकों की पत्रकारिता नीति में भी देखा जा सकता है.
प्रेस का मतलब खबरिया मनोरंजन
इसके साथ ही हमें पश्चिमी पत्रकारिता जगत के प्रति ईमानदार होने की जरूरत है. ऐसे कई मीडिया संस्थान हैं जो इन मानकों को पूरा करने की परवाह नहीं करते. ऐसे पब्लिकेशन भी हैं जो आए दिन सटीकता से रिपोर्ट करने में नाकाम रहते हैं. उदाहरण के लिए हमने कितनी बार तथाकथित टेबलॉयड प्रेस की भद्दी हेडलाइंस और खबरें पढ़ी हैं. कितनी बार हमने सरकारों या मशहूर हस्तियों को यह कहते हुए सुना है कि उनसे जुड़ी खबरों से किसी निर्लज्ज पत्रकार से छेड़छाड़ की. क्या हम रोज अंतहीन शंकाओं और अफवाहों के विषय नहीं होते? हां, हम होते हैं. यह इसलिए होता है क्योंकि आधुनिक दुनिया में प्रेस का मतलब खबरिया मनोरंजन हो चला है. सत्य हमेशा प्राथमिकता नहीं रखता. प्रेस की आजादी के चलते तय हो चुका है कि मालिकों को फलां खबर छापने का अधिकार है. अगर वे बहुत आगे चले जाएं तो उनके पीड़ितों के पास अदालत के सहारे गलती को टटोलने का विकल्प है. लेकिन फ्री मीडिया लैंडस्केप में दर्शक या पाठक के सामने यह विकल्प है कि वे इस पब्लिकेशन को खरीदेगा या नहीं. यह उनकी पसंद है और ऐसा ही होना भी चाहिए.
एनबीसी का सही फैसला
सत्य को खोजना एक बहुत प्रतिस्पर्धा वाली स्थिति है. जैसा कि अखबार के मशहूर प्रकाशक विलियम रानडोल्फ हेर्स्ट ने 1909 में कहा, “खबर को सबसे पहले लाओ, लेकिन पहले खबर सही लाओ.” पश्चिमी मीडिया ने इसे आवर्ती विचार की तरह अपनाया. लेकिन जब हम इस लक्ष्य को पाने में नाकाम होते हैं तो उसके नतीजे भयानक होते हैं और यही होना भी चाहिए. इसीलिए अमेरिकी प्रसारक एनबीसी का अपने मुख्य न्यूज एंकर और सम्मानित पत्रकार ब्रायन विलियम्स को निलंबित करने का फैसला भले ही विलियम्स के लिए दुखद हो लेकिन यह सही है. इराक युद्ध की दिलचस्प कहानी सुनाने के दवाब ने विलियम्स को मौका दिया किया कि वह अपनी कल्पना को बेकाबू कर खुद को एक सच्ची घटना का केंद्र बना दें. मुश्किल यह है कि विलियम्स कभी वहां थे ही नहीं. हालांकि खुद को ऐक्शन के बीच में दिखाकर उन्होंने एक सही स्टोरी के प्रति लोगों की दिलचस्पी काफी बढ़ा दी. लेकिन उन्होंने इसका इस्तेमाल अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए भी किया.
मामला और खराब तब हुआ जब उन्होंने गलती करने के बाद भी तारीफ के चक्कर में अपनी कहानी फैलने दी. लेकिन अब सच सामने है और इस बात पर बहुत ज्यादा शक है कि विलियम्स शायद ही कभी न्यूज एंकर के तौर पर स्क्रीन पर वापल लौट पाएंगे. क्योंकि अब हमेशा इस बात की शंका जताई जाएगी कि क्या वे सच बोल रहे हैं. वह नैतिकता से खेल चुके हैं. उन्होंने एक जोखिम लिया और सोचा कि सच बाहर नहीं आएगा लेकिन वह आ गया. यही मीडिया की सफलता की कहानी है.
dw.de से