क्राइस्टचर्च, 7 फरवरी (आईएएनएस)। आईसीसी विश्व कप में दक्षिण अफ्रीका की टीम ने हमेशा से एक मजबूत दावेदार के रूप में हिस्सा लिया है, लेकिन कई बार अपनी ही गलतियों तो कभी दबाव के कारण अहम मुकाबलों में यह टीम हमेशा नाकाम होती रही।
ऐसे में इस बार अब्राहम डिविलियर्स के नेतृत्व में विश्व कप अभियान पर निकली दक्षिण अफ्रीकी टीम की कोशिश खुद को ‘चोकर्स’ के तमगे से मुक्त करने और पहली बार विश्व चैम्पियन बनने की होगी।
विश्व कप में दक्षिण अफ्रीका की विफलता की कहानी उसके पहली बार 1992 में हिस्सा लेने से ही शुरू होती है जब बारिश ने उसकी उम्मीदों को धो डाला। इसके बाद 2011 में न्यूजीलैंड के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में जब टीम जीत की प्रबल दावेदार मानी जा रही थी तो दबाव में उसकी बल्लेबाजी बिखरती चली गईं।
इंग्लैंड में 1999 में हुए विश्व कप सेमीफाइनल को भी नहीं भूलना चाहिए जब आस्ट्रेलिया के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका का मैच टाइ रहा और ग्रुप मैच में मिली जीत के आधारा पर कंगारू टीम फाइनल में पहुंचने में कामयाब हुई।
इस मुकाबले में दक्षिण अफ्रीका को जीत के लिए चार गेंदों में एक रनों की जरूरत थी, लेकिन क्रिज पर मौजूद लांस क्लूजनर और एलन डोनाल्ड के बीच हुई गलतफहमी ने आस्ट्रेलिया को फाइनल में पहुंचा दिया।
ऐसे में इस बार भी दक्षिण अफ्रीका पर प्रतिद्वंद्वी टीमों से ज्यादा दबाव से जूझने की चुनौती होगी।
दक्षिण अफ्रीका के पास आक्रामक बल्लेबाजी के साथ-साथ धारदार तेज गेंदबाजी भी है जो उसे प्रबल दावेदार के रूप में पेश करती है।
गेंदबाजी की कमान जहां डेल स्टेन, मोर्ने मोर्कल और इमरान ताहिर पर होगी वहीं, बल्लेबाजी में टीम डिविलियर्स, हाशिम अमला, जेपी ड्यूमिनी, डेविड जैसे खिलाड़ियों पर निर्भर होगी।
हाल ही में वेस्टइंडीज के खिलाफ 31 गेंदों पर शतक बनाकर सबसे तेज सैकड़ा लगाने का कीर्तिमान अपने नाम कर चुके डिविलियर्स से टीम को सबसे ज्यादा उम्मीदें होंगी।
आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की तेज पिचें उसे घर जैसा अहसास दिलाएंगी और ऐसे में कई क्रिकेट प्रशंसकों का मानना है कि दक्षिण अफ्रीका इस बार कोई कमाल कर सकती है। इसके लिए हालांकि आखिरी मौकों पर चूक जाने की पुरानी आदत से अफ्रीकी टीम को जरूर बाहर आना होगा।