नई दिल्ली, 27 अप्रैल (आईएएनएस)। अस्थमा जैसी बीमारी में कई मरीज दवाइयों का खर्च बचाने के लिए बीमारी के लक्षणों में सुधार देखते ही दवाई खाना बंद कर देते हैं जो काफी खतरनाक हो सकता है। यह कहना है अस्थमा विशेषज्ञों का। इस साल विश्व अस्थमा दिवस के मौके पर अस्थमा के उन मरीजों के साथ जश्न मनाया जा रहा है जो अस्थमा व इसकी भ्रांतियों के खिलाफ विजेता बनकर उभरे हैं।
अगर आपको अस्थमा की समस्या है तो घबराने की कोई जरूरत नहीं है, ये कोई ऐसी बीमारी नहीं है कि आप अपनी जिंदगी को खत्म समझें बल्कि अगर इस बीमारी को सही तरीके से नियंत्रित किया जाएं तो आप आसानी से अपने रोजमर्रा के काम कर सकते है। सही इलाज के साथ अस्थमा को आसानी से नियंत्रित कर परिवार व दोस्तों के साथ बेहतरीन जिंदगी बिताई जा सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है इस बीमारी के इलाज के दौरान लक्षण न दिखने का मतलब अस्थमा मुक्त होना नहीं है। अस्थमा को मैनेज करने में ये सबसे बड़ी चुनौती है कि जब दवाइयों को रोक दिया जाता है तो इसके लक्षण कुछ समय के लिए सामने नहीं आते। ये अकसर दवाइयों की लागत बचाने के लिए किया जाता है। लेकिन इसका परिणाम ये होता है कि बीमारी काफी गंभीर रूप में सामने आती है और लक्षण किसी भी समय दोगुने प्रभाव के साथ उभरकर सामने आती है। इसलिए ये समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि लक्षण न दिखने पर अस्थमा बीमारी ठीक नहीं होता है। इसलिए दवाइयों को छोड़ने से पहले डॉक्टर का परामर्श अवश्य ले।
इस बारे में एम्स (अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान) अस्पताल के पल्मोलोजी व निंद्रा विकार विभाग के हेड डॉ. रनदीप गुलेरिया कहते हैं, “अस्थमा दीर्घकालिक बीमारी है जिसे लंबे समय तक इलाज की जरूरत होती है। कई रोगी जब खुद को बेहतर महसूस करते हैं तो वह इनहेलर लेना छोड़ देते हैं। ये खतरनाक भी हो सकता है क्योंकि आप उस इलाज को बीच में छोड़ रहे हैं जिससे आप फिट और स्वस्थ रहते हो। रोगियों को इंहेलर छोड़ने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। अपनी मर्जी से इंहेलर छोड़ना जोखिमभरा हो सकता है। “
सफदरजंग अस्पताल के सीनियर चेस्ट फिजिशयन डॉ. एम.के. सेन कहते हैं, “मैं रोजाना 10-15 रोगियों से मिलता हूं जिन्हें न सिर्फ बीमारी बल्कि दवाई को जारी रखने जैसी सलाह की जरूरत होती है। ये देखा गया है कि अस्थमा की दवाइयांे के अनुपालन की स्थिति बहुत दयनीय है और अकसर कुछ महीनों तक दवाइयां लेने के बाद बच्चे व वयस्क दवाइयां लेने में आनाकानी करने लगते है और ये दर तकरीबन 70 फीसदी है।”
इंहेलर न लेने की वजह के बारे में बताते हुए डॉ. एम. के. सेन कहते हैं, “रोगियों के इंहेलर न लेने के कई कारण है। इसमें दवाइयों की कीमत, साइड इफैक्ट्स, इंहेलर को लेकर भ्रांतियां और सामाजिक अवधारणाएं शामिल है। इसके साथ साथ मनोवैज्ञानिक बाधाएं भी अवरोध पैदा करती है जैसे कि स्वस्थसेवा से जुड़े प्रशिक्षक से असंतोष, अनुचित उम्मीदें, हालत के प्रति गुस्सा आना, स्थिति की गंभीरता का अहसास न होना और अपनी सेहत के प्रति लापरवाही बरतना सम्मिलित है।”
इस तरह की भ्रांतियों और अवरोधकों को रोकने के लिए लोगांे को इंहेलेशन थेरेपी के बारे में समझाना बहुत महत्वपूर्ण है जिससे वह इस इलाज को बीच में न रोके। अस्थमा के खिलाफ लड़ना यानी कि इंहेलेशन थेरेपी अपनाना ही सबसे प्रभावी इलाज है। अब भारत में ये इलाज बहुत ही सस्ती कीमत यानी कि चार रुपए से लेकर 6 रुपये प्रतिदिन की कीमत पर उपलब्ध है।