विकासशील देशों में बीमारी नहीं, बल्कि प्रदूषण सबसे बड़ा हत्यारा है. हर साल इस कारण 84 लाख लोगों की मौत हो रही है. यह संख्या मलेरिया से होने वाली मौतों से तीन गुणा और एचआईवी एड्स के कारण होने वाली मौतों से करीब 14 गुणा अधिक है. हालांकि प्रदूषण को वैश्विक समुदाय से थोड़ा ही महत्व मिलता है. प्योर अर्थ ब्लैकस्मिथ इंस्टीट्यूट ने इस विश्लेषण को तैयार किया है. यह स्वास्थ्य और प्रदूषण (जीएएचपी) पर विश्वव्यापी गठबंधन का हिस्सा है. जीएएचपी द्विपक्षीय, बहुपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों, राष्ट्रीय सरकारों, शिक्षाविदों और समाज की सहयोगी संस्था है. इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष रिचर्ड फुलर के मुताबिक, “वायु और जल प्रदूषण के साथ टॉक्सिक साइटें विकासशील देशों की स्वास्थ्य प्रणाली पर भारी बोझ थोपती हैं.” फुलर ने समाचार एजेंसी आईपीएस को बताया कि वायु और रासायनिक प्रदूषण इन क्षत्रों में तेजी से बढ़ रहा है. और जब लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाले कुल प्रभाव पर ध्यान देना शुरु किया जाएगा, तब तक भयानक परिणाम सामने होंगे.
भविष्य की सोचें
फुलर का कहना है कि इस तरह के भयानक भविष्य को पूरी तरह से रोका जा सकता है. विकसित देशों ने काफी हद तक अपने प्रदूषण की समस्याओं को हल कर लिया है. वे कहते हैं बाकी की दुनिया को सहायता चाहिए, लेकिन प्रदूषण टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) के मौजूदा मसौदा के रडार पर नहीं है. एसडीजी अगले 15 वर्षों के लिए विकास सहायता के लिए संयुक्त राष्ट्र की नई योजना है. उम्मीद है कि इन लक्ष्यों के सितंबर 2015 में घोषणा होने के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय, सहायता एजेंसियां और दानदाता सहायता के लिए एक साथ खड़े होंगे.फुलर कहते हैं, “प्रदूषण को कभी कभी अदृश्य हत्यारा कहा जाता है. इसके प्रभाव को ट्रैक करना मुश्किल है क्योंकि स्वास्थ्य के आंकड़े बीमारी को मापते हैं, ना कि प्रदूषण को.” फुलर का कहना है कि परिणामस्वरूप प्रदूषण अक्सर एक छोटे मुद्दे के तौर पर प्रचारित किया जाता है, “वास्तव में अब इस पर गंभीर कार्रवाई की जरूरत है.”जीएएचपी के विश्लेषण में विश्व स्वास्थ्य संगठन और दूसरे अन्य डाटा को एकीकृत कर यह निर्धारित किया गया है कि 74 लाख लोगों की मौत की वजह वायु और जल से होने वाले प्रदूषण स्रोत हैं. गरीब देशों में दस लाख अतिरिक्त और मौतें छोटे और मध्यम आकार के उत्पादकों के औद्योगिक कचरे और जहरीले रसायन, वायु, जल, मिट्टी और भोजन में मिलने के कारण हुई.ब्लैकस्मिथ इंस्टीट्यूट के तकनीकी सलाहकार और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में पर्यावरणीय स्वास्थ्य के प्रोफेसर जैक कैरावानोस के मुताबिक इन देशों में संक्रामक रोग और ध्रुमपान के मुकाबले, पर्यावरण प्रदूषण का स्वास्थ्य पर ज्यादा बुरा प्रभाव है.
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