गीता का उद्घोष है कि उस परम तत्व को पाने का प्रयास करो जिसे पाने के लिए यह मानव जीवन मिला है। जागे बिना उसे न जान सकोगे जिसे जानकर हम सभी दु:खों से पार हो जाते हैं। जागे बिना उसका लाभ न उठा सकोगे जिसका लाभ मिले बिना हमारा दुख न मिटेगा ओर न ही सुख मिलेगा। इसलिए जागना जरूरी है। जागो और नींद को त्यागो। मोह की नींद ही नींद है। मोह रूपी नींद में पड़ा हुआ मनुष्य मृत्यु तुल्य जीवन जीता है। मोह नींद से जाग जाना ही जागना है। गुरुनानक जी ने कहा है कि जिन्हें जागना है उनके लिए जागने का वक्त आ चुका है। अगर तुम पैर पसार कर सोओगे, तब फिर जाग नहीं सकोगे। इसलिए जाग जाओ। तभी जानो कि जीव जागा हुआ है जब उसका सब प्रकार के शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध आदि विषयों से वैराग्य हो चुका हो। इसके अलावा राग-द्वेष व आसक्ति का मिटना भी जरूरी है। जो जागता है, वही जागरूक और सावधान रहता है। इसलिए जागो और उठो। बिना जागे उसे नहीं जान सकोगे। ईश्वर ही आपको शरण दे सकता है। इसलिए ईश्वर की कृपा पाने के लिए हर प्रयास करना चाहिए। जिसे उनकी कृपा मिल गई उसका जीवन धन्य हो गया।
संत कबीर ने कहा है-जिन खोजा तिन पाईयां। वहीं वेदों की एक ऋचा का आशय है कि जो व्यक्ति जाग्रत हो जाता है उसे ही ईश्वर की अनुभूति होती है। कहने का आशय यह है कि ईश्वर को खोजने के लिए जागना होगा। जागे बिना उसे खोजा नहीं जा सकता है। जैसे सोया हुआ व्यक्ति अनेक प्रकार के स्वप्न देखता रहता है वही स्थिति मोह निद्रा से ग्रस्त व्यक्ति की भी होती है। मोह निद्रा में फंसकर आदमी माया लोक की दुनिया में विचरता रहता है। इसलिए आंखें खोलो, फिर देखो दिव्य प्रभु की दिव्यता और महिमा। अगर वास्तव में जागने का फैसला कर लिया तो फिर विकारों को त्यागने में तनिक भी देर नहीं करनी चाहिए। विकारों के प्रति आंखें जितनी शीघ्र खुल जाएं उतना ही अच्छा है।