शिमला, 14 जनवरी (आईएएनएस)। ऐसा लगता है कि हिमाचल प्रदेश सरकार विकलांगों और मनोरोगियों से जुड़े मुद्दों पर गंभीर नहीं है। पिछले एक महीने से भी कम समय में ऐसी लापरवाही के तीन मामले सामने आ चुके हैं।
शिमला, 14 जनवरी (आईएएनएस)। ऐसा लगता है कि हिमाचल प्रदेश सरकार विकलांगों और मनोरोगियों से जुड़े मुद्दों पर गंभीर नहीं है। पिछले एक महीने से भी कम समय में ऐसी लापरवाही के तीन मामले सामने आ चुके हैं।
सभी मामलों में मुख्य न्यायाधीश को मिली लिखित सूचना के आधार पर उच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया है, जिसमें विकलांगों लोगों के लिए विशेष सुविधाएं प्रदान करने की मांग की गई है।
मुख्य न्यायाधीश मंसूर अहमद मीर और न्यायाधीश तारलोक सिंह चौहान की पीठ ने पिछले सप्ताह शिमला के मशोबरा में बेघर महिलाओं के लिए चलाए जा रहे सरकारी संस्थान ‘नारी सेवा सदन’ में रह रही मानसिक रोगों से पीड़ित 30 महिलाओं की मांग पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है।
एक गैर सरकारी संगठन ‘उमंग फाउंडेशन’ के मानद चेयरमैन अजय श्रीवास्तव की शिकायत के आधार पर न्यायालय ने नौ जनवरी को इस मामले पर संज्ञान लिया।
आईएएनएस के पास इस पत्र की प्रति मौजूद है, जिसमें कहा गया है कि सभी 30 लोगों की हालत गंभीर है। इनमें दो लड़कियां हैं और अपनी मां के साथ रह रहे एक छह साल के लड़के में भी मानसिक बीमारी के लक्षण दिखाई देने लगे हैं।
पत्र के अनुसार, “ज्यादातर मानसिक रूप से कमजोर महिलाओं को अपने मासिक धर्म के बारे में भी जानकारी नहीं है। इनमें से किसी को भी सैनिटरी नैपकिन मुहैया नहीं कराया जाता। इन महिलाओं की दयनीय व्यक्तिगत स्वच्छता का यह सबसे बड़ा कारण है।”
पत्र में सदन में रहने वाले लोगों की सुरक्षा व्यवस्था में कमी पर भी सवाल उठाए गए हैं।
पत्र में कहा गया है, “चूंकि यहां रहने वाले सभी सदस्यों की मानसिक हालत ठीक नहीं है, इसलिए पूरी तरह चारदीवारी और तार की बाड़ के न होने से किसी भी अप्रिय घटना की पूरी संभावना है।”
पत्र में यह भी बताया गया है कि कुछ वर्ष पहले सदन से एक मुस्लिम महिला रहस्यमय तरीके से गायब हो गई थी और आज तक उसके बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई है।
पत्र में सदन में रह रही एक यूरोपीय महिला की दशा को भी उजागर किया गया है।
पत्र में कहा गया है, “सरकार ने एक विदेशी महिला के मूल आवास के बारे में पता लगाने की दिशा में कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। इससे पहले वह महिला शिमला के मानसिक अस्पताल में भर्ती थी।”
न्यायालय ने प्रधान सचिव सहित वरिष्ठ अधिकारियों को चार सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है।
दो दिन पहले मुख्य न्यायाधीश मीर और न्यायाधीश पी एस राणा की खंडपीठ ने वृद्धाश्रम में रह रहे विकलांगों की दशा पर भी रिपोर्ट मांगी थी।
श्रीवास्तव का पत्र मिलने के बाद न्यायालय ने यह आदेश जारी किया। श्रीवास्तव ने अपने पत्र में विकलांगों के लिए पेंशन और वृद्धाश्रम में रह रहे सभी विकलांगों और मानसिक रोगियों के लिए अलग से पुनर्वास की मांग की है।
न्यायालय ने राज्य सरकार को स्थिति रिपोर्ट पेश करने और 25 फरवरी से पहले अपना जवाब देने को कहा है।
श्रीवास्तव ने आईएएनएस को बताया कि हिमाचल सरकार विकलांगों के लिए परीक्षा का संचालन करने वाली नीति लागू करने में विफल रही है। यहां तक कि हिमाचल प्रदेश राज्य सार्वजनिक सेवा आयोग ने भी इस नीति को लागू नहीं किया है।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय ने नवंबर में दृष्टिहीन व्यक्तियों और विकलांगों के लिए एक लेखक रखने का निर्देश दिया है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस