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वर्ष 2013 में हुए वन विकास, समृद्धि और रख-रखाव के उल्लेखनीय प्रयास

4906भोपाल :छह टाईगर रिजर्व से गौरवान्वित मध्यप्रदेश के वन देश में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। वनों के विकास, समृद्धि और रख-रखाव के लिये वन विभाग ने वर्ष 2013 के दौरान अनेक प्रयास किये, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

  • शहडोल वन वृत्त में 22 जुलाई को एक दिन में 50 लाख पौध-रोपण कर विश्व कीर्तिमान स्थापित किया गया। इसमें तकरीबन डेढ़ लाख लोगों ने भाग लिया।

  • मई, 2013 में तेन्दूपत्ता संग्राहकों को मिलने वाला पारिश्रमिक 750 रुपये प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर 950 रुपये प्रति मानक बोरा किया गया।

  • प्रदेश के 32 लाख तेन्दूपत्ता संग्राहकों को 244 करोड़ 55 लाख रुपये का प्रोत्साहन पारिश्रमिक उपलब्ध करवाया गया।

  • मध्यप्रदेश का पहला गिद्ध प्रजनन केन्द्र भोपाल जिले के केरवा में स्थापित किया गया। दिसम्बर से प्रारंभ इस केन्द्र में प्रथम चरण में 25 गिद्ध के जोड़े लाये गये हैं।

  • बाँस की उपलब्धता में कमी तथा बाँस एवं बाँस उत्पादों के विपणन में हो रही कठिनाइयों को दूर करने के लिये जुलाई में मध्यप्रदेश राज्य बाँस मिशन का गठन किया गया।

  • बाँस उत्पादकों के लिये राज्य बाँस मिशन के अंतर्गत मध्यप्रदेश बाँस एवं बाँस शिल्प विकास बोर्ड का भी गठन किया गया।

  • जून में भोपाल में बाँस शिल्पी पंचायत का आयोजन किया गया।

  • राज्य बाँस मिशन की साधारण सभा समिति और कार्यकारिणी समिति का गठन किया गया।

  • वन लक्ष्मी योजना में 16 वन वृत्त में संयुक्त वन प्रबंध समितियों के माध्यम से 70 लाख से अधिक पौध-रोपण किया गया।

  • कौशल विकास कार्यक्रम के जरिये 10 हजार 336 ग्रामीण युवा को विभिन्न विधाओं में प्रशिक्षण उपलब्ध करवाया गया।

  • वन रक्षकों के 2017 पद पर भर्ती की गई।

  • पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में 2 बाघिन द्वारा 3-3 शावक को जन्म दिये जाने से अब यहाँ बाघों की संख्या 22 हो गई है।

  • हरियाली महोत्सव में 8 करोड़ 78 लाख पौधे रोपे गये।

  • वन्य-प्राणियों की चिकित्सा सुविधा में विस्तार के लिये पशु वन्य-प्राणी चिकित्सकों का नया संवर्ग बनाते हुए 10 पद स्वीकृत किये गये।

  • हुनर से रोजगार योजना में मध्यप्रदेश ईको पर्यटन विकास बोर्ड द्वारा 30 ग्रामीण युवक को भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंध संस्थान ग्वालियर में गाइड का प्रशिक्षण दिलवाकर रोजगार से जोड़ा गया।

  • नेशनल कार्बन प्रोजेक्ट के तहत कान्हा वन क्षेत्र में कार्बन फ्लक्स टॉवर लगाये जाने के लिये प्रधान मुख्य वन संरक्षक द्वारा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन को सहमति-पत्र सौंपा गया।

  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा बारहसिंघों के संरक्षण के लिये वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से 2 नर तथा 3 मादा बारहसिंघा लाने की अनुमति दी गई। इसके लिये वन विहार में विशेष बाढ़ा बनाया जा रहा है।

  • प्रदेश के नेशनल पार्कों में बाघों की सुरक्षा के लिये स्पेशल टाईगर प्रोटेक्शन फोर्स की एक-एक कम्पनी कान्हा, पेंच एवं बाँधवगढ़ टाइगर रिजर्व में स्थापित करने का निर्णय लिया गया।

  • कान्हा नेशनल पार्क में 150 केमरों की मदद से बाघों की गिनती की गई, जिसमें 61 बाघ और 17 शावक कुल 78 बाघ पाये गये।

  • पन्ना टाइगर रिजर्व में विलुप्तप्राय गिद्ध प्रजातियों की गणना की गई, जिसमें स्थानीय 4 प्रजाति लाग बिल्ड, व्हाइट बैक, इजीप्सियन तथा रेड हेडेड गिद्धों की कुल संख्या 1015 और प्रवासी गिद्ध प्रजातियों यूरेशियन ग्रिफान, हिमालय ग्रिफान तथा सिनेरियस की संख्या 254 पाई गई।

  • बाघों की निगरानी के लिये गुप्त केमरे लगाने के साथ ही कर्मचारियों को पीडीए मोबाइल उपलब्ध करवाकर ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम से लैस किया गया।

  • सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के अलग-अलग स्थानों पर लगाये गये केमरों में 5 नये बाघ शावक अपनी माँ के साथ दिखे।

  • संरक्षित क्षेत्रों से ग्रामों के पुनर्वास कार्यक्रम के तहत माधव राष्ट्रीय उद्यान, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व तथा ओरछा अभयारण्य के 919 परिवार का पुनर्वास किया गया। इस कार्य पर 84 करोड़ 31 लाख की राशि व्यय की गई।

  • प्रदेश में सौर ऊर्जा के बेहतर उपयोग के लिये 639 स्थान पर 900 के.व्ही. के सोलर फोटो वोल्टिक सिस्टम लगाये गये। यह सिस्टम 366 परिक्षेत्र कार्यालय, 60 वन डिपो, 131 वन चौकी, 13 उत्पादन वन मण्डल, 9 वन विद्यालय, 42 ईको स्थल तथा वन विकास निगम के 12 डिपो एवं 6 विश्राम गृह में लगाये गये।

  • नील गाय एवं कृष्ण मृग द्वारा फसल क्षति करने पर किसानों को दिये जाने वाले मुआवजे के लिये वन सीमा के भीतर स्थित ग्रामों अथवा वन सीमा से 5 किलोमीटर की परिधि का प्रावधान समाप्त किया गया।

  • वन, वन्य-प्राणी और वन अधिकारी की सुरक्षा के लिये पहली बार 136 वन परिक्षेत्र अधिकारी को सर्विस रिवाल्वर प्रदान की गईं।

  • वानिकी को कृषि के साथ जोड़कर आर्थिक क्रांति लाने के उद्देश्य से पीपीपी आधारित प्रक्षेत्र वानिकी कार्यशाला आयोजित की गई। इसमें किसानों और अंतर्राष्ट्रीय वन विशेषज्ञों ने भाग लिया।

  • इमारती लकड़ी और बाँस को अंतर्राष्ट्रीय बाजार उपलब्ध करवाने के लिये भोपाल में बैठक की गई, जिसमें अमेरिका, चीन के भी विशेषज्ञों ने भाग लिया।

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