Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/load.php on line 926

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826

Deprecated: Function get_magic_quotes_gpc() is deprecated in /home4/dharmrcw/public_html/wp-includes/formatting.php on line 4826
 लोकगीतों को पतन की ओर जाने से बचाना होगा : रंजना झा (साक्षात्कार) | dharmpath.com

Monday , 21 April 2025

Home » धर्मंपथ » लोकगीतों को पतन की ओर जाने से बचाना होगा : रंजना झा (साक्षात्कार)

लोकगीतों को पतन की ओर जाने से बचाना होगा : रंजना झा (साक्षात्कार)

नई दिल्ली, 27 दिसंबर (आईएएनएस)। लोकगीत वे हैं, जो पारंपरिकता के साथ गाए जाएं, जिसमें संस्कृति की खुशबू रची-बसी हो, लेकिन आजकल लोकगीतों को जिस तरह गाया जा रहा है, क्या वह लोकगायन की कसौटी पर खरा उतरता है? मैथिली लोकगीतों की चर्चित गायिका रंजना झा तो मानती हैं, बिल्कुल नहीं। वह कहती हैं कि लोकगीतों को पतन की ओर ले जाया जा रहा है, इसे बचाना होगा।

नई दिल्ली, 27 दिसंबर (आईएएनएस)। लोकगीत वे हैं, जो पारंपरिकता के साथ गाए जाएं, जिसमें संस्कृति की खुशबू रची-बसी हो, लेकिन आजकल लोकगीतों को जिस तरह गाया जा रहा है, क्या वह लोकगायन की कसौटी पर खरा उतरता है? मैथिली लोकगीतों की चर्चित गायिका रंजना झा तो मानती हैं, बिल्कुल नहीं। वह कहती हैं कि लोकगीतों को पतन की ओर ले जाया जा रहा है, इसे बचाना होगा।

रंजना कहती हैं कि 30 वर्ष पहले जब वह इस क्षेत्र से जुड़ी थीं, तब से लेकर अब तक लोकगायन में बहुत बदलाव आया है। उनकी नजर में लोकगायन अगर पतन की ओर जा रहा है, तो इसके कारण क्या हैं? यह पूछने पर उन्होंने कहा, “अब ज्यादातर मैथिली गीत बॉलीवुड धुनों पर गाए जा रहे हैं। पश्चिमी वाद्ययंत्रों का अंधाधुंध उपयोग हो रहा है।”

मूल रूप से बिहार के अररिया जिले से ताल्लुक रखने वाली रंजना झा ने फोन पर हुई बातचीत में आईएएनएस को बताया, “लोकसंगीत का पश्चिमीकरण करने की कतई जरूरत नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से इसकी मिठास खत्म हो रही है। मिथिला की अपनी खूशूब है, जो धीमे-धीमे चलती है। उसकी लय मद्धिम रहती है, लेकिन अब इसकी लय को दोगुना करके गाया जा रहा है, जिससे उसका भाव मर रहा है। बहुतायत संख्या में आधुनिक वाद्य उपकरणों का इस्तेमाल हो रहा है, जबकि लोकसंगीत को लोकसंगीत ही बने रहने देने की जरूरत है।”

वह कहती हैं, “इस क्षेत्र में स्त्री, पुरुष का अनुपात कोई मुद्दा नहीं है। यहां महिला गायिकाओं की संख्या बहुत है और बड़ी तादाद में महिलाएं इससे जुड़ भी रही हैं, लेकिन यहां मामला स्त्री या पुरुष का नहीं है। अभी जो लड़के, लड़कियां इस क्षेत्र में आ रहे हैं, वे बिना सीखे आ रहे हैं, जो सही नहीं है। मैं बस इतना कहना चाहूंगी कि लोग सीखकर इस क्षेत्र में आएं। ऐसे लोग आएं, जिनमें गाने की, संगीत की संभावना हो।”

लोकगायन के क्षेत्र में रंजना झा आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं, लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब गायकी को करियर के तौर पर शुरू करने के लिए उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था।

रंजना कहती हैं, “आज लोग मुझसे कहते हैं कि आप पर गर्व है। लेकिन मुझे याद है कि आज से लगभग 30 साल पहले जब मैंने यह सब शुरू किया था, तो विशेष रूप से लड़कियों के लिए यह आसान नहीं था। आस-पड़ोस के लोग और रिश्तेदार मेरे माता-पिता से कहते थे कि अरे आपने अपनी बेटी को गाने-बजाने में डाल दिया। उन्हें बहुत कुछ बुरा-भला सुनने को मिलता था, लेकिन उन्होंने कभी भी आलोचनाओं पर ध्यान नहीं दिया और मुझे आगे बढ़ाया। मेरे माता-पिता दोनों रेडियो आर्टिस्ट थे और आज मैं कह सकती हूं कि मैं जो कुछ भी हूं, उसमें मेरे माता-पिता का पूरा योगदान है।”

रंजना ने पटना विश्वविद्यालय से संगीत में एमए की शिक्षा ग्रहण की है। वह कहती हैं, “मैंने शास्त्रीय संगीत सीखा है और अभी भी सीख रही हूं, लेकिन मेरे खून में लोकसंगीत है। मैथिली मेरी मातृभाषा है। लोकगीत तो गाती ही हूं, लेकिन अब मेरा ज्यादा ध्यान शास्त्रीय संगीत और गजलों पर रहता है।”

जीवन की कठिनाइयों के बारे में पूछने पर रंजना कहती हैं, “कठिनाइयां हर इंसान के जीवन में आती हैं, लेकिन उन कठिनाइयों को मौकों में बदलना आना चाहिए। मैं जो कुछ भी हूं, उसमें मेरे माता-पिता का बहुत बड़ा योगदान है। मुझे कई गुरु मिले, मेरे पिताजी मेरे प्रथम शिक्षक हैं, लेकिन किशोरी अमोनकर से बचपन से सीखने की इच्छा थी। बचपन में रेडियो पर उन्हें सुनती थी। मन करता था कि उनसे सीखूं और उन्हीं की तरह गाऊं। मैंने उनके पास जाकर सीखा। मुंबई में रहना मेरे लिए मुश्किल था, लेकिन वहां जाकर सीखती थी।”

रंजना लोकसंगीत की मिठास को बचाए रखने की पैरवी करते हुए कहती हैं, “लोकसंगीत को बचाए जाने की जरूरत है, तभी हम अपनी संस्कृति को बचा पाएंगे। हम फिल्मी धुनों पर गा रहे हैं तो नई पीढ़ी के लोग समझेंगे कि सबसे बड़ी चीज सिर्फ फिल्मी गीत ही हैं और वे समझेंगे कि यही लोकसंगीत है, लेकिन वास्तव में वह लोकसंगीत नहीं है। मेरा मानना है कि किसी धुन की नकल नहीं करनी चाहिए, जैसे फिल्मी धुन पर विद्यापति के गानों को गाया जा रहा है तो यह सरासर हमारी परंपरा और संस्कृति के साथ खिलवाड़ है।”

बॉलीवुड गीतों से जुड़े ग्लैमर से लोकगायन को मिल रही प्रतिस्पर्धा के बारे में पूछने पर वह कहती हैं, “वैसे, दोनों में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। लोकगायन एक अलग चीज है और इसके अलग श्रोता हैं। हां, बॉलीवुड गानों में चूंकि ग्लैमर ज्यादा है, इसलिए वे भीड़ को खींचने में कामयाब रहते हैं।”

रंजना आगे बोलीं, “..लेकिन एक बात बताऊं कि मेरा खुद का एक कला स्कूल है, जहां मैं बच्चों सहित युवक-युवतियों को सिखाती हूं और हमारे यहां बड़ी संख्या में युवा आ रहे हैं। मेरा मानना है कि जो अपनी संस्कृति से जुड़ा हुआ होगा, वह बॉलीवुड की नकल नहीं करेगा, उस ओर भागेगा नहीं।”

लोकगीतों को पतन की ओर जाने से बचाना होगा : रंजना झा (साक्षात्कार) Reviewed by on . नई दिल्ली, 27 दिसंबर (आईएएनएस)। लोकगीत वे हैं, जो पारंपरिकता के साथ गाए जाएं, जिसमें संस्कृति की खुशबू रची-बसी हो, लेकिन आजकल लोकगीतों को जिस तरह गाया जा रहा है नई दिल्ली, 27 दिसंबर (आईएएनएस)। लोकगीत वे हैं, जो पारंपरिकता के साथ गाए जाएं, जिसमें संस्कृति की खुशबू रची-बसी हो, लेकिन आजकल लोकगीतों को जिस तरह गाया जा रहा है Rating:
scroll to top