पटना, 8 नवंबर (आईएएनएस)। अब तक मिल रहे रुझानों से स्पष्ट है कि सत्ताधारी महागठबंधन में शामिल तीनों दलों में सबसे अधिक सीटें राजद के खाते में ही रहेगी। ऐसे में बिहार की राजनीति के हाशिये पर पहुंच गए लालू प्रसाद ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे राजनीति में मंझे हुए न केवल खिलाड़ी हैं बल्कि बिहार की राजनीति को वे बखूबी जानते हैं।
पटना, 8 नवंबर (आईएएनएस)। अब तक मिल रहे रुझानों से स्पष्ट है कि सत्ताधारी महागठबंधन में शामिल तीनों दलों में सबसे अधिक सीटें राजद के खाते में ही रहेगी। ऐसे में बिहार की राजनीति के हाशिये पर पहुंच गए लालू प्रसाद ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे राजनीति में मंझे हुए न केवल खिलाड़ी हैं बल्कि बिहार की राजनीति को वे बखूबी जानते हैं।
बिहार की सत्ता का केंद्र रहे लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को पिछले विधानसभा चुनाव में मात्र 22 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। इसके बाद यह माने जाने लगा था कि लालू बिहार की राजनीति में चुके हुए नेता हैं, लेकिन इस चुनाव में उन्होंने नीतीश कुमार के स्वच्छ छवि को देखते हुए नीतीश के रूप में न केवल नया दोस्त ढूंढ़ा, बल्कि उनके सुशासन और विकास के एजेंडे को भुनाते हुए जातीय समीकरण को दुरुस्त कर एक महागठबंधन के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई और केंद्र में सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का बिहार में सूफड़ा ही साफ कर दिया।
पिछले लोकसभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी की लहर के बीच राजद ने जद (यू) से दो सीटें अधिक लाकर यह साबित कर दिया था कि राजद के परंपरागत वोट बैंक अभी भी उसके साथ हैं। ऐसे में केवल एक स्वच्छ छवि के नेता की जरूरत थी, जिसे लालू ने नीतीश के रूप में खोज लिया।
लालू यह भी जानते थे कि बिहार की राजनीति विकास की ओर चल पड़ी है। यही कारण है कि उन्होंने प्रत्येक चुनावी सभा में यह बात कहते रहे कि लालू की पार्टी को चाहे जितनी सीटें मिले, लेकिन अगर महागठबंधन सत्ता में आता है तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे। लालू ने अपनी हर सभा में भी यह बात कही थी। नीतीश की साफ छवि को लालू ने बखूबी भुनाया।
चुनाव के पूर्व से ही लालू एक रणनीति के तहत जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी करने की मांग को लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोलते रहे। इसी क्रम में चुनाव के दौरान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के मोहन भागवत द्वारा ‘आरक्षण समीक्षा’ के संबंध में दिया गया बयान लालू की रणनीति के लिए ‘सोने पर सुहागा’ साबित हुआ। लालू ने इस बयान को चुनाव के दौरान जमकर भुनाया और पिछड़ा समाज गोलबंद होकर महागठबंधन की ओर आशा भरी निगाह से देखने लगा।
अपने ठेठ गंवई और चिरपरिचित अंदाज से मतदाताओं को आकर्षित करने वाले लालू ने इस चुनाव में सोशल मीडिया का भी जमकर प्रयोग किया। बिहार की राजनीति का नब्ज जानने में माहिर लालू ने गंवई अंदाज में इस चुनाव में न केवल बिहार के लोगों को बिहार के स्वाभिमान से जोड़ दिया, बल्कि लगातार बिहारियों के सम्मान को ठेस पहुंचाने के आरोप लगाकर भाजपा के नेताओं पर हमला बोला।
बहरहाल, लालू चुनाव ने पूर्व में ही खुद को किंगमेकर’ बताया था और चुनाव परिणाम ने यह सच साबित कर दिया कि लालू आज बिहार के ‘किंगमेकर’ हैं।