फल पट्टी के नाम से महशूर मलिहाबाद सहित माल, काकोरी, रहीमाबाद में दशहरी व चौसा की पैदावार बारिश व ओलावृष्टि की भेंट चढ़ गए हैं। मंडी परिषद की तरफ से ‘नवाब ब्रांड’ के तहत निर्यात होने वाला दशहरी व चौसा भी इस बार विदेशों में अपनी दस्तक नहीं दे पाएगा। दशहरी व चौसा सहित अन्य आमों पर आए इस संकट से निजात पाने के लिए आम उत्पादकों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिख कर उचित मुआवजा देने की मांग की है।
प्रदेश में ही नहीं विदेशों में भी दशहरी, चौसा, लंगड़ा, सफेदा आमों की मांग हमेशा रहती है। आम के शौकीन किसी भी कीमत पर इन आमों का लुत्फ उठाते हैं। लेकिन इस बार जिस तरीके से दिसंबर माह से लेकर मार्च तक लगातार बारिश होती रही उससे आम की फसलों को सबसे अधिक नुकसान हुआ है। आम के पेड़ों में नवंबर माह से ही बौर आना शुरू हो जाता है। जनवरी माह तक यह बौर अमिया की शक्ल तैयार कर लेते हंै। जून से लेकर जुलाई तक बाजारों में दशहरी व चौसा की आमद शुरू हो जाती है, जो तीन माह तक लगातार बनी रहती है।
मलीहाबाद सहित माल, काकोरी, रहीमाबाद का दशहरी नवाब ब्रांड के तहत अमेरिका, चीन, मलेशिया, जापान, आस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात, इग्लैंड सहित अन्य देशों में निर्यात किया जाता है। इन देशों में आमों का निर्यात किए जाने से सरकार को बहुत बड़ी धनराशि प्राप्त होती है। जिससे सरकार को तो फायदा होता ही है, साथ में आम उत्पादकों को भी फायदा हो जाता है।
विदेश निर्यात किए जाने वाला आम 300 रुपये से लेकर 700 रुपये तक बिकता है, लेकिन इस बार जिस तरीके से शुरू में ही आमों पर बारिश-ओलावृष्टि का कहर बरपा है, उससे आम की 35 से लेकर 40 प्रतिशत ही फसल बची है। बाकी की फसल तबाह हो गई है।
इस बार बाजारों में एक जून के बाद दशहरी अपनी दस्तक देगा, लेकिन महंगा होने के करण उसे खरीदने के लिए ग्राहक को सोचना पड़ेगा।
मलीहाबाद के नवीपना गांव में रहने वाले आम के बड़े काश्तकार बरातीलाल का कहना है कि दिसंबर से लेकर अप्रैल माह तक लगातार आंधी व तेज बारिश के साथ ओलावृष्टि से आम के बौरों का जबरदस्त नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि बौर के नुकसान होने से आम पेड़ों पर आया ही नहीं। उन्होंने कहा कि रही-सही कसर हाल ही के दिनों में आई आंधी ने पूरी कर दी। बौर ने जैसे ही आमिया की शक्ल ली वैसे ही जबरदस्त आंधी आ गयी इससे कच्चा आम पेड़ों से गिर गया।
उन्होंने कहा कि पेड़ों पर मात्र पच्चीस प्रतिशत ही आम बचा है। यह आम आगे बचा रहेगा कह पाना मुश्किल है। बरातीलाल ने कहा कि आम की पैदावार की कमी के चलते विदेशों में आम का निर्यात नहीं किया जा सकेगा। उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग है कि आम को भी कृषि का दर्जा दिए जाने समेत इसके नुकसान का मुआवजा दिया जाए।
माल के अशोक कनौजिया ने कहा कि पिछले साल उत्तर प्रदेश में 43 लाख टन का आम का उत्पादन हुआ था जो देश के आम उत्पादन का करीब 23 प्रतिशत था। उन्होंने कहा कि इस बार पन्द्रह लाख टन भी हो जाए तो बड़ी बात है। उन्होंने कहा कि विदेशों में आमों के निर्यात होने का सबसे अधिक फायदा आम उत्पादकों को होता था लेकिन आम की पैदावार कम होने के कारण उनमें मायूसी छाई हुई है।
माल के ही राहुल मिश्रा ने बताया कि पिछले साल उन्होंने पांच लाख में आम की खड़ी बाग ही बेच दी थी, लेकिन इसबार जिस तरीके से बारिश व ओलावृष्टि हुई है उससे आम की बाग का कोई खरीदार ही नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि इसबार एक लाख में आम का बाग बिक जाएं तो बड़ी बात है।